Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
सादगी और समर्पण के प्रतीक थे पंजवार के कर्मयोगी! - श्रीनारद मीडिया

सादगी और समर्पण के प्रतीक थे पंजवार के कर्मयोगी!

सादगी और समर्पण के प्रतीक थे पंजवार के कर्मयोगी!

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

सिवान में शिक्षा का अलख जगाने के लिए सदियों तक याद किए जाएंगे स्वर्गीय घनश्याम शुक्ला जी मास्टर साहब

✍️ गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया *

‘सादा जीवन उच्च विचार’ की संकल्पना सिवान की धरोहर रही है। चाहे वो देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद हों या मौलाना मजहरूल हक साहब, सिवान के इन महान सपूतों ने साधारण जीवन शैली को तरजीह दी परंतु उनके विचार ऊंचे रहे, उनकी त्याग की बानगी बेमिसाल रही, उनके समाज के प्रति समर्पण का भाव भी अदभुत रहा। इसी कड़ी में एक नाम और जोड़ना जरूरी हो जाता है। यह नाम है सिवान के रघुनाथपुर प्रखंड के पंजवार निवासी स्वर्गीय घनश्याम शुक्ला जी का। कोई उन्हें सिवान का गांधी कहता है तो कोई उन्हें सिवान का मालवीय। किसी को वे सिवान में लोहिया के अवतार दिखते हैं तो कोई उन्हें सिवान का विनोबा भावे मानता है। उस कर्मयोगी का समाज के प्रति योगदान इतना बड़ा है कि उन्हें सम्मान के भाव से संबोधित करने के लिए गांधी, लोहिया, मालवीय, विनोबा जी का याद आना एक स्वाभाविक तथ्य है। परंतु सिवान के पिछड़े क्षेत्र में प्रतिभाओं के लिए बेहतर परिस्थितियों के निर्माण के संदर्भ में उनका शानदार योगदान, उन्हें सिवान के इतिहास की शोभा बना जाता है।

एक शिक्षक, जो छात्रों के सर्वांगीण विकास को समर्पित थे

स्वर्गीय घनश्याम शुक्ला जी, वैसे तो एक माध्यमिक स्कूल के शिक्षक रहे। सिवान जिले के कई मध्य विद्यालयों में वे न सिर्फ अध्यापन के तौर पर जुड़े रहे अपितु छात्रों के सर्वांगीण विकास के प्रति भी सदैव समर्पित रहे। सीमित संसाधनों के बूते और तमाम चुनौतियों के बीच रघुनाथपुर के पिछड़े माने जाने वाले क्षेत्र में उन्होंने कस्तरूबा गांधी बालिका इंटर कॉलेज, प्रभा प्रकाश डिग्री कॉलेज, भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान संगीत विद्यालय, मैरीकॉम स्पोर्ट्स एकेडमी जैसे संस्थाओं की स्थापना में अहम योगदान दिया। ये संस्थान क्षेत्र के प्रतिभाओं को निखारने में महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं। विचार को उज्जवल और प्रेरक बनाने में पुस्तक सबसे मददगार साबित होते हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए शुक्ला जी ने अपने सीमित संसाधनों के बूते एक पुस्तकालय की भी स्थापना कर डाली। शिक्षा के अलख जगाने के लिए वे अपने वेतन और रिटायरमेंट के बाद मिली राशि तक को भी समाज के प्रति योगदान हेतु समाहित करते रहे। कभी निजी हित के बारे में सोचते नहीं दिखाई दिए।

साइकिल पर घूम-घूम कर देते रहे समाज को संदेश

साइकल पर गांव-गांव घूमना स्वर्गीय घनश्याम शुक्ला जी का प्रिय शगल था। लेकिन यह भ्रमण कुछ सामाजिक संदेशों के प्रसार को लक्षित भी रहता था। अभिभावकों को बेटियों को पढ़ने के लिए प्रेरित करने में वे सदैव आगे रहते थे। क्षेत्र की प्रतिभाओं को खेल कूद में आगे बढ़ाने के लिए भी वे सदैव प्रयासरत रहते थे। साथ ही, लोहिया विचार मंच, समाजवादी जन परिषद, स्वराज अभियान में उनकी भागीदारी, उनके समाज के प्रति संवेदनशील और जागरूक सोच को ही संदर्भित दिखती है। राजद नेता श्री शिवानन्द तिवारी उनके बारे में बताते हैं कि स्वर्गीय घनश्याम शुक्ला जी मुसहर और अन्य कमजोर वर्गों के लिए एक आवासीय विद्यालय भी खोलने का सपना संजोए रखे थे। लेकिन गंभीर व्याधि से ग्रसित उनका जीवन अपनी सीमाओं को पहचान रहा था। आज के अमर्यादित सियासी बयानबाजी के दौर में उनकी सोच एक बड़ा संदेश देती दिख जाती है। जे पी आंदोलन और किसान आंदोलनों में भी इनकी सहभागिता रही है।

भोजपुरी के लिए वे व्यक्ति नहीं संस्था समान रहे

पैरों में चप्पल, शरीर पर खदर का कुर्ता और अंगौछी, चेहरे पर आत्मीय मुस्कान से लैस, उनके शरीर में उनकी आत्मा भोजपुरी के प्रति अपार श्रद्धा रखती दिखती है। स्वर्गीय घनश्याम शुक्ला जी भोजपुरी स्वाभिमान सम्मेलन से तकरीबन एक दशक तक जुड़े रहे। भोजपुरी आयोजनों में वे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते रहते थे। ख्यात भोजपुरी व्यक्तित्व श्री मनोज भावुक उन्हें प्रेरणा के प्रबल पुंज मानते हुए उन्हें व्यक्ति की बजाय संस्था तक स्वीकार कर डालते हैं। सिने अभिनेता पंकज त्रिपाठी भी स्वर्गीय घनश्याम शुक्ला जी के संदर्भ में बताते हैं कि एक बेहतर शिक्षक समाज को कैसे दिशा दिखा सकता हैं?
बानगी थे शुक्लाजी मास्टर साहब।

सीमित संसाधनों में बड़े कार्य

स्वर्गीय घनश्याम शुक्ला जी के पास सदैव संसाधन सीमित तौर पर उपलब्ध रहे। लेकिन उनकी संसाधन प्रबंधन की काबिलियत बेहद उम्दा स्तर की रही। सामान्य तौर पर बेहद नकारात्मक माने जाने वाले चंदा के फलसफे को उन्होंने अपने व्यक्तित्व की निर्मलता और विश्वनीयता से बेहद प्रतिष्ठित मुकाम पर पहुचांया। सिर्फ चंदा में प्राप्त धनराशि का सही और सार्थक उपयोग करके अज्ञान के समंदर में ज्ञान की रोशनी फैलाई। उन्होंने समाज सेवको को सबक दिया कि यदि आपका व्यक्तित्व ईमानदार है तो आपको समाज भरपूर सहयोग देगा।

जब कंठ सूख रहे थे पर उत्साहवर्धन का उत्साह चरम पर था

महाराजगंज के महात्मा गांधी गौर उच्च विद्यालय में एक सामाजिक संस्था द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में सिवान गौरव पुरस्कार से नवाजे जाने के दौरान, उनका उद्बोधन, एक यादगार लम्हा बन गया, जो शायद ही कभी भूला जा सके। गंभीर व्याधि से जूझ रहे स्वर्गीय घनश्याम शुक्ला जी के कंठ मंच से बोलते समय सूख सूख जा रहे थे। पर मंच के सामने मौजूद प्रतिभाओं के उत्साहवर्धन का उनका जोश देखने लायक था। शरीर उनके उत्साहवर्धन के ऊर्जा से तारतम्य नहीं बैठा पा रहा था। फिर भी वे बोले जा रहे थे। यही तो उनकी जीवटता थी। और शायद यहीं उनकी जिंदगी का फलसफा भी।

कुछ माह पूर्व ही घनश्याम शुक्ला जी पटना के पीएमसीएच में देवलोक गमन कर गए। परंतु उनका व्यक्तित्व और कृतित्व सिवान के इतिहास का अनमोल पन्ना बन चुका है। उनके प्रयासों से रोशन हो रही जिंदगियां उनके स्मृति को सदियों सदियों तक श्रृंगारित करती रहेगी।

यह भी पढ़े

माध्यमिक शिक्षक संघ के सारण प्रमंडल स्तरीय चुनाव की तैयारी में लगी सुजीत की टीम

यूरिया की किल्लत से नाराज प्रमुख रहीमा खातून के नेतृत्व में हुई धरना

जनता दरबार में 6 में से 3 मामलों का हुआ निष्पादन

Leave a Reply

error: Content is protected !!