फिरंगी दहशत तले कराह रहे सिवान में बहाई थी शिक्षा, सेवा, संगीत की त्रिवेणी !
कोई कहता उन्हें मालवीय, कोई कहता उन्हें दयानन्द, परंतु उन्हें मिलता था मानवता की सेवा में आनंद
दाढ़ी बाबा की 140 वीं जयंती पर विशेष आलेख
✍️ गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सीवान के दाढ़ी बाबा यानी बैद्यनाथ प्रसाद जी एक समर्पित् शिक्षाविद्, संवेदनशील समाज सेवक, संगीत के अनुरागी थे। वे शिक्षा के प्रभाव से वक़िफ् थे। वे समाज के प्रति संवेदनशील सोच रखते थे। नारी शिक्षा के महत्व को समझते थे। संगीत के स्वाभाव को जानते थे। उस दौर में जब देश फिरंगी दासता के तले कराह रहा था । उस समय शिक्षा के प्रसार, समाज की सेवा और संगीत की अविरल धारा की त्रिवेणी बहाकर दाढ़ी बाबा ने पीड़ित मानवता की सेवा में मिसाल कायम किया। सिवान मेधा की धरती रही है। यहाँ की मेधा शक्ति को निखारने में दाढ़ी बाबा का योगदान ऐतिहासिक रहा है।
कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना में रहा अहम् योगदान
सिवान में कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना में अपना अहम् योगदान देकर दाढ़ी बाबा ने ज्ञान के प्रकाश को फैलाया। वी एम उच्च विद्यालय में शिक्षक और प्राचार्य रहने के दौरान वहाँ के बुनियादी संरचना को सुधारने के साथ ही दाढ़ी बाबा ने डी ए वी हाई स्कूल और कॉलेज की स्थापना में अहम् योगदान किया। वैद्यनाथ पाण्डेय संस्कृत महा विद्यालय और दयानन्द आयुर्वेदिक कॉलेज की स्थापना में भी दाढ़ी बाबा का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
महिला शिक्षा के प्रति विशेष झुकाव
दाढ़ी बाबा महिला शिक्षा के प्रति भी विशेष रूचि रखते थे। इसलिए उन्होंने आर्य कन्या मिडिल स्कूल और आर्य कन्या उच्च विद्यालय की स्थापना की। तत्कालीन समाज में महिलाओं की बदहाल स्थिति में सुधार के लिए शिक्षा को दाढ़ी बाबा विशेष महत्वपूर्ण मानते थे। संगीत को भी जीवन के लिए महत्वपूर्ण मानने वाले दाढ़ी बाबा ने आर्य समाज मंदिर परिसर में खाकी संगीत महाविद्यालय की स्थापना की।
शैक्षाणिक गुणवत्ता के प्रति विशेष आग्रही
दाढ़ी बाबा शैक्षणिक गुणवत्ता के प्रति विशेष तौर पर आग्रही थे। उनके अनुसार शिक्षा से ही व्यक्ति के सोच में व्यापकता आती है। शिक्षा के प्रसार से ही व्यक्तित्व बहुआयामी बनता है। इसलिए सिवान में शिक्षा के प्रसार के लिए दाढ़ी बाबा ने भरपूर जतन किये। दर्जनों शिक्षण संस्थाओं की स्थापना इसी प्रयास के हिस्सा थे।
शिक्षा के सृजनात्मक कलेवर के हिमायती
दाढ़ी बाबा की तुलना कभी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना करने वाले महामना मदन मोहन मालवीय से की जाती है तो कभी आर्य समाज के जनक दयानन्द सरस्वती से। लेकिन दाढ़ी बाबा ने अपने प्रयासों से जो ज्ञान का प्रकाश फैलाया उससे राष्ट्रीय आंदोलन और राष्ट्रीय संचेतना को भी भरपूर ऊर्जा मिला। दाढ़ी बाबा शिक्षा के रचानात्मक, सृजनात्मक, मौलिक कलेवर के हिमायती थे। जिससे ज़िन्दगी को सर्जनात्मक आयाम मिलता है।
सीवान में राजेंद्र विश्व विद्यालय का सपना रह गया अधूरा….
हालांकि दाढ़ी बाबा का बड़ा सपना सिवान में एक राजेंद्र विश्वविद्यालय की स्थापना का था। इसके लिए उन्होंने अपने स्तर पर प्रयास भी किये लेकिन अभी तक वह सपना अधूरा ही है। उनके देवलोकगमन के तक़रीबन 5 दशक बाद भी उनका सपना का पूरा नहीं हो पाना राजनितिक, प्रशासनिक नेतृत्व पर प्रश्न चिन्ह् तो लगाता ही है।
उनके कार्य आज के लिए नसीहत
दाढ़ी बाबा स्वतंत्रता के पूर्व सिवान नगरपालिका के अध्यक्ष भी रहे। उस समय शहर की साफ सफाई के लिए उनके द्वारा किये गए प्रयास आज के राजनितिक संस्कृति को एक विशेष संदेश देते भी दिखते हैं। दलितोद्धार और विधवा कल्याण के सन्दर्भ में उनके योगदान महत्वपूर्ण रहे हैं।
समय की आवश्यकता यह है कि दाढ़ी बाबा जैसे महान व्यक्तित्व के बारे में आनेवाली पीढियों को बताया जाए ताकि वे भी शिक्षा के रचानात्मक और सृजनात्मक आयाम के आग्रही बन सके ताकि सदियों तक मानवता का कल्याण होता रहे।
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