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विश्व में सबसे आगे आने के क्या तरीके है ? - श्रीनारद मीडिया

विश्व में सबसे आगे आने के क्या तरीके है ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मुझे पता नहीं कि मुझे इस अवसर पर नए दशक की शुभकामनाएं भी देनी चाहिए या नहीं, क्योंकि इस दशक के शुरुआती तीन साल तो कमोबेश महामारी की भेंट चढ़ गए। नया साल अपनी जांच-परख करने का एक मौका होता है, फिर चाहे हम वैसा खुद के लिए करें या देश के लिए।

साल की शुरुआत पर लोग रिजॉल्यूशंस भी लेते हैं, अलबत्ता उनमें से बहुतेरे 18 जनवरी तक इस संकल्प को तोड़ भी देते हैं, जिसे क्विटर्स डे कहा जाता है। लेकिन हमें समय-समय पर अपने जीवन के प्रयोजन के बारे में सोच लेना चाहिए और नया साल इसका सबसे अच्छा अवसर है। तो बताएं, बीते साल आपका जीवन कैसा रहा?

इससे भी जरूरी यह कि आने वाले साल में आप स्वयं को किस जगह पर देखते हैं या देखना चाहते हैं? इसके लिए हमें एक प्रयोजन की दरकार होती है, जिसके बिना जीवन का कोई लक्ष्य नहीं रह जाता। इसी तरह अगर हम पूछें कि अगले साल या अगले दशक में भारत किस मुकाम पर होगा, तो पहले हमें यह जानना चाहिए कि आज दुनिया में भारत का प्रयोजन क्या है?

हम इस पर चाहे जितनी बातें कर लें, लेकिन संक्षेप में भारत का प्रयोजन एक ही है : दुनिया के अग्रणी देशों में से एक होना। आज भारत में दुनिया की पंद्रह प्रतिशत से भी ज्यादा आबादी रहती है, वैसे में यह तभी हो सकेगा जब हम एक शांतिपूर्ण समाज का निर्माण करें, जिसमें लोग अस्मिता से रह सकें, उन्हें विकास करने का अवसर मिले और वे अपना जीवन जैसे जीना चाहते हैं, उस तरह से जी सकें।

दुनिया में अग्रणी होने के लिए किसी देश को चार चीजों की जरूरत होती है- उच्च आय वाली इकोनॉमी, मजबूत डिफेंस एंड टेक्नोलॉजी, नैतिक उच्चता और सोच के स्तर पर दुनिया का नेतृत्व करने की क्षमता। यह इस तरह से हो सकता है :

उच्च आय वाली इकोनॉमी पैसों से निर्मित होती है। बहुत सारे पैसों से। केवल अमीर देशों को ही मान-सम्मान मिलता है। भारत जितना समृद्ध होगा, उतना ही दुनिया में उसका रसूख बढ़ेगा। तभी दुनियाभर की कम्पनियां हमें गम्भीरता से लेंगी और हमारी ओर आकृष्ट होंगी। जहां तक हमारी सांस्कृतिक विरासत, ऐतिहासिक स्थलों, संगीत, सिनेमा, खानपान का सवाल है तो वह सॉफ्ट पॉवर के दायरे में आता है और उसकी एक सीमा है। दबदबा तो हार्ड पॉवर से ही बनता है।

इकोनॉमिक ग्रोथ हमारा नम्बर वन एजेंडा होना चाहिए और हमारे द्वारा हर नीति इसी को ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए। दूसरे, अमीर होना ही काफी नहीं है। एक ताकतवर देश के पास मजबूत प्रतिरक्षा तंत्र और तकनीक भी होनी चाहिए। मजबूत प्रतिरक्षा तंत्र केवल सैनिकों की राष्ट्रभक्ति और जोश-जज्बे से ही नहीं बनता, इसके लिए संसाधनों, आधुनिकतम हथियारों और विश्वस्तरीय तकनीक की भी जरूरत है, ताकि दुनिया में कोई भी आपसे लड़ाई मोल लेने से पहले दो बार सोचे।

साथ ही एक ताकतवर देश के पास तकनीक-आधारित इंडस्ट्रीज़- जैसे सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और फार्मा- में भी मजबूती होनी चाहिए। इसके लिए साइंटिफिक और इनोवेशन-आधारित मानसिकता की जरूरत है, साथ ही बहुत सारे पैसों की भी। इसीलिए तो हमें अमीर देश होना चाहिए, ताकि इस सब पर खर्च कर सकें।

तीसरी बात, अगर अपने आसपास देखें तो पाएंगे कि जिन देशों का दुनिया पर सबसे ज्यादा दबदबा है, वे लोकतांत्रिक, सेकुलर, खुले दिमाग वाले, स्वतंत्रता-प्रेमी और व्यक्ति का सम्मान करने वाले हैं। वह अमेरिका हो या चाहे यूरोप के दूसरे देश, इसी के चलते वे दुनिया के सामने एक उच्चतम नैतिक आदर्श रखते हैं। भारत में भी यह क्षमता है।

हम लोकतांत्रिक हैं और दुनिया के सबसे अधिक बहुलतावादी देशों में से हैं। लेकिन अगर राजनीति के कारण हम बंट गए तो अपना महत्व गंवा देंगे और तब दुनिया का सम्मान अर्जित करना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा। अगर हमने दूसरों पर एक जैसी संस्कृति, धर्म या भाषा को थोपा तो हम बहुत लम्बी दूरी तक का सफर नहीं तय कर सकेंगे। भारत को अपने लोकतंत्र, विविधता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कायम रखते हुए ही अमीर देश बनना होगा।

और चौथा, पैसा हो, ताकतवर फौज हो, तकनीक हो, लोकतंत्र हो, इसके बावजूद एक देश को जो चीज अग्रणी बनाती है, वह है आगे की सोच। अपने लोगों का ख्याल रखना अच्छी बात है, लेकिन दुनिया को देने के लिए हमारे पास क्या है? क्या हम दुनिया के सामने मौजूद बड़े सवालों जैसे जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, ऊर्जा संकट, हिंसक टकराव आदि का सामना करने के लिए अपनी ओर से कोई योगदान दे रहे हैं? एक महाशक्ति बनने के लिए हमें इस दिशा में भी काम करना होगा।

ये चारों चीजें मुश्किल जरूर हैं, पर नामुमकिन नहीं। अगर हम सभी भारतीय साथ आएं और इस दिशा में सोचें तो आने वाले कुछ दशकों में इसे हासिल कर सकते हैं। लेकिन अगर हम छोटी-मोटी लड़ाइयों में ही उलझे रहे, गैरप्रासंगिक बातें करते रहे या सोशल मीडिया पर समय जाया करते रहे तो बात नहीं बनने वाली है।

अगर भारत निम्न आय वाला देश बना रहता है तो इससे दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। दुनिया में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए हमें ही अपनी अर्थव्यवस्था, प्रतिरक्षा, तकनीक, सोच और नैतिकता को मजबूत बनाना होगा। मौजूदा दशक में एक देश के रूप में भारत का यही प्रयोजन होना चाहिए!

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