क्या भारत की प्रतीक हाथी है जिसकी चाल धीमी है ?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
साल 2023 से एक महत्वपूर्ण वैश्विक करवट की शुरुआत हो सकती है, जिसके केंद्र में भारत है। अनेक दशकों से भारत की तुलना एक गजराज से की जाती रही थी, जिसमें शक्ति तो बहुत है, लेकिन जिसकी चाल धीमी है। पर अब भारत ने शेर की तरह दहाड़ते हुए वैश्विक परिदृश्य पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी है।
ऐसे में आश्चर्य नहीं कि जहां दुनिया की मुख्य अर्थव्यवस्थाएं मंदी और महंगाई से जूझ रही हैं, वहां भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत की विकास दर 6.9% के इर्द-गिर्द रह सकती है, वहीं ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स ने तो भारत से और बड़ी आशाएं लगाते हुए 2026 तक 7.6% की विकास-दर और 2030 की शुरुआत तक 8.5% का पूर्वानुमान लगाया है।
2022 में भारत यूके को पीछे करके दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गया। यह एक दशक पहले की स्थिति से बहुत लम्बी छलांग है, जब भारत 11वें स्थान पर मंडरा रहा था। यह गति अभी थमने नहीं वाली है और अगर आईएमएफ की मानें तो 2028 तक भारत जर्मनी और जापान को पीछे करते हुए दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन सकता है।
इनवेस्टमेंट बैंक मोर्गन स्टैनले को उम्मीद है कि वैसा 2027 तक ही हो जाएगा और 2030 तक भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टॉक बाजार होगा। भारत के इकोनॉमिक बूम को अवश्यम्भावी और आसन्न बताते हुए मोर्गन स्टेनले ने हाल की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2031 तक भारत की जीडीपी आज से दोगुनी हो सकती है। अभी यह 3.5 ट्रिलियन डॉलर है और आने वाले आठ सालों में 7.5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है। वहीं बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज 11% की सालाना दर के साथ 10 ट्रिलियन डॉलर के मार्केट कैपिटलाइजेशन तक पहुंच सकता है।
ये उम्मीदें बेबुनियाद नहीं है कि साल 2026 तक भारत की इकोनॉमी 4.55 ट्रिलियन डॉलर की होकर जर्मनी के बराबर पहुंच जाएगी। अगर पर्चेसिंग पॉवर पैरिटी के हिसाब से देखें- जो कि जीवनयापन की लागत पर आधारित होती है- तो भारत पहले ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन चुका है।
विश्व बैंक इसका श्रेय भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन को देता है, जो चुनौतियों का सामना करने में सफल रही है। जहां चीन, मेक्सिको, ब्राजील लड़खड़ा रहे हैं, वहीं भारत उनके जैसी स्थिति में आकर भी सम्भल गया है। इसका मुख्य कारण भारत का विशालकाय घरेलू बाजार और विदेशी व्यापार के फ्लो पर अपेक्षाकृत कम निर्भरता है।
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद भारत ने तटस्थ रहने का साहसपूर्ण निर्णय लिया। वह पश्चिमी ताकतों के दबाव के आगे झुका नहीं। इस कारण वह रूस से एक डील करने में कामयाब रहा, जिससे उसे किफायती दरों पर तेल मिलता रहा। इसकी मदद से भारत मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रख पाया है, जबकि दूसरी अर्थव्यवस्थाएं ऊर्जा की बढ़ी लागतों से बेहाल हो चुकी हैं।
आज भारत के पास 500 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार है, जो दुनिया के बाकी देशों की तुलना में अच्छी स्थिति में है। चालू खाते के घाटे को बढ़ते विदेशी निवेश से राहत मिल रही है। दूसरी अर्थव्यवस्थाओं में मंदी से भी विदेशी निवेशकों ने भारत जैसी स्थिर इकोनॉमी में पैसा लगाना बेहतर समझा है।
कोविड वैक्सीन की वैश्विक मांग पर भारत ने जैसा बेहतरीन प्रदर्शन किया, उससे उसके फार्मास्यूटिकल्स को भी बहुत बढ़ावा मिल गया है और 2022 में वह भारत का सबसे तेजी से बढ़ता एफडीआई सेक्टर बन गया है। भारत का निर्यात आज दुनिया के कुल निर्यात का 2% ही है, लेकिन भारत की जीडीपी में मैन्युफेक्चरिंग की सहभागिता बढ़कर 15.6% हो गई है और 2031 तक इसके 21% तक पहुंचने की अपेक्षा है। अब जब भारत सरकार दुनिया के अनेक देशों से कारोबारी सौदे करने जा रही है तो इसमें और इजाफा ही होना है। भारत ने बीते समय में 13 महत्वपूर्ण फ्री ट्रेड करारनामों पर दस्तखत किए हैं।
2023 में जो एक बड़ी बात होने जा रही है, वह है भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलना। इसकी मदद से पूरे एक साल तक भारत विशेषकर विकासशील दुनिया के महत्वपूर्ण मसलों को सामने रखता रहेगा और वैश्विक नीतियों का एजेंडा सेट करता रहेगा।
अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों में स्थिरता, क्लाइमेट फाइनेंसिंग की ओर झुकाव और महामारी के बाद बेहतर रिकवरी ने भारत को अग्रणी स्थिति में ला दिया है। 2023 में भारत दुनिया के एजेंडों को तय करेगा और न केवल अपने, बल्कि दूसरे विकासशील देशों के लिए भी अच्छे सौदों के लिए निगोशिएट करेगा। दुनिया बदल रही है और भारत इस बदलाव के मोर्चे पर आगे बना हुआ है।
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