जोशीमठ का अस्तित्व खतरे में,लगातार चौड़ी हो रहीं दरारें
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
धार्मिक एवं पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चमोली जिले का जोशीमठ नगर विशेष अहमियत रखता है। खतरे से निपटने के लिए सरकार ने विशेषज्ञों की आठ सदस्यीय टीम हो अध्ययन के लिए जोशीमठ भेजा हुआ है।
आदि शंकराचार्य ने किशोरावस्था में यहीं कल्पवृक्ष के नीचे घोर तप कर ज्ञान प्राप्त किया था। यहीं से उन्होंने देश के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की। तभी से इसे ज्योतिर्मठ कहा जाने लगा।
बदरीनाथ धाम व हेमकुंड साहिब यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है। विश्व धरोहर फूलों की घाटी और विश्व प्रसिद्ध स्कीइंग स्थल औली का रास्ता से भी यहीं से होकर जाता है।
चीन सीमा से लगी नीती व माणा घाटी के लिए सेना व आइटीबीपी की समस्त गतिविधियों का संचालन भी यहीं से होता है। यहीं से होकर विश्व प्रसिद्ध लार्ड कर्जन ट्रैक, नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क, चेनाप घाटी, भविष्य बदरी धाम का रास्ता भी जाता है।
चमोली जिले के जोशीमठ शहर में भूधंसाव थमने का नाम नहीं ले रहा है। जमीन भी जगह-जगह फट रही है। 800 से अधिक भवन दरारें आने से असुरक्षित हो चुके हैं। इन भवनों की दरारें लगातार चौड़ी हो रही हैं।
जिन परिवारों का घर दरारें पड़ने से असुरक्षित हो गया है, उन्हें किराये के भवन में रहने के लिए प्रशासन चार हजार रुपये प्रति माह की सहायता देने की तैयारी कर रहा है।
जोशीमठ में भूधंसाव को देखते हुए जिला प्रशासन यहां सभी निर्माण कार्यों पर रोक लगा चुका है। चारधाम आलवेदर रोड प्रोजेक्ट के तहत बदरीनाथ हाईवे पर छह किमी लंबे हेलंग-मारवाड़ी बाईपास का निर्माण के साथ ही तपोवन विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना का काम भी बंद कर दिया गया है।
शनिवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जोशीमठ का हवाई और स्थलीय निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि हमारा मकसद सभी को बचाना है और सरकार इस मामले पर अलर्ट है। सीएम ने प्रभावितों से मुलाकात भी की।
वहीं इससे पहले शुक्रवार को जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव से संकटग्रस्त परिवारों को बचाने और राहत देने के मकसद से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सचिवालय में उच्चाधिकारियों के साथ बैठक कर जोशीमठ की स्थिति का समीक्षा की।
चीन सीमा से सटे चमोली जिले के जोशीमठ शहर में हो रहे भूधंसाव को लेकर यदि तंत्र 47 साल पहले ही चेत जाता तो आज ये नौबत नहीं आती।
उत्तर प्रदेश के दौर में वर्ष 1976 में तत्कालीन गढ़वाल मंडलायुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञों की कमेटी ने जोशीमठ में ऐसे खतरों को लेकर सचेत किया था।
दिए थे नदी से भूकटाव की रोकथाम के लिए प्रभावी कदम उठाने के सुझाव
साथ ही पुराने भूस्खलन क्षेत्र में बसे इस शहर में पानी की निकासी को पुख्ता इंतजाम करने और अलकनंदा नदी से भूकटाव की रोकथाम के लिए प्रभावी कदम उठाने के सुझाव दिए थे। तब इक्का-दुक्का नालों का निर्माण हुआ, लेकिन बाद में इस तरफ आंखें मूंद ली गईं। इस अनदेखी का नतीजा आज सबके सामने है।
समुद्रतल से 2500 से लेकर 3050 मीटर की ऊंचाई पर बसे जोशीमठ शहर का धार्मिक और सामरिक महत्व है। यह देश के चारधामों में से एक बदरीनाथ का शीतकालीन गद्दीस्थल है तो सेना व अद्र्धसैनिक बलों के लिए महत्वपूर्ण पड़ाव भी है। इन दिनों यह खूबसूरत पहाड़ी शहर वहां हो रहे भूधंसाव और भवनों में निरंतर पड़ रही दरारों को लकर चर्चा में है।
अलकनंदा की बाढ़ ने जोशीमठ समेत अन्य स्थानों पर मचाई थी तबाही
- शहर पर मंडराते अस्तित्व के खतरे को देखते हुए स्थानीय लोग आंदोलित हैं।
- सरकार भी समस्या के समाधान के लिए पूरी ताकत झोंके हुए है।
- प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जा रहा है और स्थिति से निबटने को कार्ययोजना का खाका खींचा जा रहा है।
- इस परिदृश्य के बीच बड़ा प्रश्न यह भी तैर रहा है कि जिस तरह की सक्रियता तंत्र अब दिखा रहा है, यदि इसे लेकर वह वर्ष 1976 में ही जाग जाता तो आज ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती। दरअसल, अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में अलकनंदा नदी की बाढ़ ने जोशीमठ समेत अन्य स्थानों पर तबाही मचाई थी। तब कई घरों में दरारें भी पड़ी थीं।
- इसके बाद सरकार ने आठ अप्रैल 1976 को गढ़वाल के तत्कालीन मंडलायुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में कमेटी गठित की।
- इसमें लोनिवि, सिंचाई विभाग, रुड़की इंजीनियरिंग कालेज (अब आइआइटी) के विशेषज्ञों के साथ ही भूविज्ञानियों के अलावा स्थानीय प्रबुद्धजनों को भी शामिल किया गया।
भूस्खलन से आए मलबे के ऊपर बसा है शहर
- 18 सदस्यीय मिश्रा कमेटी के सदस्य रहे प्रसिद्ध पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट के अनुसार तब कमेटी ने जोशीमठ समेत पूरे क्षेत्र का गहनता से अध्ययन किया।
- ये बात सामने आई थी कि यह शहर पूर्व में कुंवारी पास के नजदीक हुए भूस्खलन से आए मलबे के ऊपर बसा है।
- यह क्षेत्र 10 किलोमीटर लंबा, तीन किलोमीटर चौड़ा और तीन सौ मीटर ऊंचा है।
- कमेटी ने यह स्पष्ट किया था कि ऐसे क्षेत्र में हुई बसागत के लिए पानी की निकासी की उचित व्यवस्था न होना भविष्य के लिए खतरे की घंटी हो सकता है।
मिश्रा कमेटी ने ये दिए थे सुझाव
- पर्यावरणविद् भट्ट ने बताया कि मिश्रा कमेटी ने तत्कालीन सरकार को सौंपी रिपोर्ट में जोशीमठ में वर्षा और घरों से निकलने वाले पानी की निकासी के उचित प्रबंध करने, अलकनंदा नदी से होने वाले कटाव की रोकथाम के लिए बाढ़ सुरक्षा को कदम उठाने, निर्माण कार्यों को नियंत्रित करने जैसे सुझाव दिए थे।
- साथ ही सिंचाई, लोनिवि समेत अन्य विभागों के लिए गाइडलाइन तय की थी।
- उन्होंने बताया कि तब पानी की निकासी के दो-चार नाले अवश्य बने, लेकिन इसके बाद कोई कदम नहीं उठाए गए।
- जोशीमठ के प्रति इस तरह की अनदेखी अब भारी पड़ रही है।
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