एक और हिल स्टेशन में बिगड़ सकते हैं हालात
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
उत्तराखंड के जोशीमठ में भवन व भूमि की तरह ही नैनीताल की पहाड़ियों व सड़कों पर दरारें भी खतरे का संकेत दे रही हैं।समय रहते सरकार नहीं चेती और पहाड़ियों का ट्रीटमेंट नहीं किया तो यहां भी हालात बिगड़ सकते हैं। नैनीताल की सुरक्षा के लिए ब्रिटिशकाल में ही अंग्रेजों ने ड्रेनेज सिस्टम बना दिया था लेकिन अब झील में गिरने वाले नाले बड़े पैमाने पर अतिक्रमण की चपेट में हैं।
नैनीताल में 10-15 सालों से चौतरफा खतरे बढ़ रहे
विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी नैनीताल में 10-15 सालों से चौतरफा खतरे बढ़ रहे हैं। 2018 में बलियानाला में भूस्खलन के बाद कृष्णापुर बस्ती की हजारों की आबादी का सड़क संपर्क भंग हो गया जो अभी भी नहीं जुड़ सका है। बलियानाला के मुहाने पर लगातार धंसाव से दर्जनों परिवार खतरे की जद में हैं। जीआइसी भवन के मैदान सहित कई भवनों तक खतरा पहुंच गया है।
जिला प्रशासन ने बलियानाला ट्रीटमेंट कार्यों को देखते हुए जीआइसी को अन्यत्र शिफ्ट करने की योजना बनाई है। शहर की माल रोड पर वाहनों का लगातार बढ़ता दबाव खतरा बना है। लोअर माल रोड में 2007-08 में भी दरार पड़ी और सड़क धंसकर झील में समा गई। इसके बाद 2018 में भी लोअर माल रोड का 25 मीटर हिस्सा टूटकर झील में समा गया।
लोनिवि ने अस्थायी ट्रीटमेंट किया मगर रोड में दरारें कम नहीं हो रही हैं। अब लोनिवि ने ट्रीटमेंट के लिए करीब चार करोड़ का प्रस्ताव बनाकर भेजा है लेकिन शासन से अब तक बजट नहीं मिला है।
टिफिनटाप व चायनापीक पर भी दरारें
सरोवर नगरी के टिफिनटाप में भूस्खलन से विशालकाय बोल्डरों तक में दरारें पड़ गई हैं। जिससे इस पर्यटन स्थल पर खतरा बरकरार है लेकिन अब तक ट्रीटमेंट कार्य शुरू नहीं हो सका है।
चायनापीक की पहाड़ी में धंसाव हुआ तो वन विभाग ने खंतियों के माध्यम से ट्रीटमेंट कार्य किया मगर वहां अटके बोल्डर भी तबाही मचा सकते हैं। 1987 में चायनापीक की पहाड़ी से भूस्खलन की वजह से तमाम परिवारों को शिफ्ट करना पड़ा था। शहर के सात नंबर क्षेत्र को भी भूगर्भीय दृष्टि से अतिसंवेदनशील माना जाता है।
दरार की वजह से पड़ गया क्रेकलैंड नाम
शहर के लोंगव्यू इलाके में सबसे पुरानी दरार पड़ी है। इस दरार की वजह से क्षेत्र का नाम आज भी क्रेकलैंड कहा जाता है। कुमाऊं विवि के केनफील्ड के पास ड्रम हाउस में भी पुरानी दरार का अभी तक ट्रीटमेंट नहीं हुआ है।
राजभवन क्षेत्र के गोल्फ ग्राउंड के पीछे की पहाड़ी निहालनाला में दशकों से दरक रही है। गोल्फ ग्राउंट के समर हाउस के पास भी दरारें हैं, जिसका स्थायी उपचार नहीं किया जा सका।
जोशीमठ जैसी स्थिति तो नैनीताल की नहीं है। नैनीताल में ड्रेनेज सिस्टम बहुत पुराना है। बलियानाला क्षेत्र में टूटी फूटी चट्टानें हैं जो गिरेंगी ही। मगर पहाड़ों में वैज्ञानिक तरीके से निर्माण नहीं करने के खतरे हैं। इसलिए प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर ही नीतियां बनानी होंगी, तभी खतरा टलेगा।
-प्रो राजीव उपाध्याय, भू वैज्ञानिक, कुमाऊं विवि
नैनीताल में वाहनों का दबाव कम करना ही होगा, दीर्घकालिक योजना के तहत शहर से बाहर रानीबाग तक पार्किंग बनानी होंगी। ग्रीन बेल्ट व असुरक्षित क्षेत्र में निर्माण पर प्रतिबंध है। जो भी इन क्षेत्रों में निर्माण कर रहा है उसे तत्काल सील किया जा रहा है। पहाड़ियों के ट्रीटमेंट के लिए बजट दिलाया जाएगा।
-दीपक रावत, कुमाऊं कमिश्नर
चमोली जिले के जोशीमठ शहर में भूधंसाव से उत्पन्न स्थिति से शासन ने सबक लिया है। इस कड़ी में सभी जिलों से जोशीमठ जैसे संवेदनशील स्थलों के संबंध में रिपोर्ट मांगी गई है। इसके बाद संबंधित क्षेत्रों में उपचारात्मक कदम उठाने को कार्ययोजना तैयार की जाएगी।
प्रदेश में जोशीमठ जैसे संवेदनशील स्थल कई जिलों में हैं। जोशीमठ के अलावा अल्मोड़ा और नैनीताल के संबंध में पूर्व में विशेषज्ञ कमेटियों ने पड़ताल कर रिपोर्ट शासन को सौंपी थी। यही नहीं, उत्तरकाशी जिले में वरुणावत पर्वत ट्रीटमेंट का विषय किसी से छिपा नहीं है।
मसूरी, पौड़ी जिले में किमसार के पास भी पूर्व में हुआ था भूधंसाव
देहरादून जिले में मसूरी, पौड़ी जिले में किमसार के पास भी पूर्व में भूधंसाव हुआ था। अन्य जिलों में भी भूधंसाव की बातें छिटपुट रूप से सामने आती रही हैं।
इसके अलावा आपदा की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड में भूस्खलन समेत अन्य आपदाओं के कारण आपदा प्रभावित गांवों की संख्या बढ़कर चार सौ के आसपास पहुंच चुकी है।
आपदा प्रबंधन टास्क फोर्स से ऐसे स्थलों की रिपोर्ट मांगी
जोशीमठ जैसी स्थिति अन्य क्षेत्रों में उत्पन्न न हो, इसे लेकर शासन सतर्क हो गया है। अपर सचिव आपदा प्रबंधन सबिन बंसल के अनुसार सभी जिलों की जिला आपदा प्रबंधन टास्क फोर्स से अपने-अपने क्षेत्र के ऐसे स्थलों की रिपोर्ट मांगी गई है, जो जोशीमठ की तरह संवेदनशील हैं। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद ऐसे स्थलों के लिए कार्ययोजना तैयार की जाएगी।
अल्मोड़ा का ड्रेनेज प्लान स्वीकृत
कुमाऊं क्षेत्र के अल्मोड़ा शहर में भी जोशीमठ की तरह ड्रेनेज सिस्टम न होने से दिक्कतें आ रही थीं। इसे देखते हुए सरकार ने वहां ड्रेनेज सिस्टम के लिए आपदा मद से 21 करोड़ रुपये की डीपीआर स्वीकृत की है। अब जल्द ही अल्मोड़ा का ड्रेनज सिस्टम भी आकार लेगा।
उत्तराखंड के सीमांत जिले चमोली के जोशीमठ में भू-धंसाव को लेकर केंद्र सरकार भी सतर्क हो गई है।भूमि धंसने के कारण, इससे उत्पन्न स्थिति और आबादी क्षेत्र पर पड़ रहे प्रभाव के त्वरित अध्ययन के लिए केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने छह सदस्यीय समिति गठित की है। यह समिति तीन दिन में अपनी अध्ययन रिपोर्ट नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा (एनएमसीजी) को सौंपेगी।
इसी क्षेत्र से होकर गुजरती है गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी
जोशीमठ क्षेत्र सामरिक और धार्मिक महत्व के साथ ही पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी अलकनंदा इसी क्षेत्र से होकर गुजरती है। भूमि धंसने की गंभीर समस्या सामने आने के बाद खतरे को कई स्तर पर महसूस किया जा रहा है।
तत्परता दिखाते हुए अध्ययन समिति का गठन
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय भी लगातार राज्य सरकार से जोशीमठ में भूधंसाव को लेकर अपडेट ले रहा है। प्रदेश सरकार समस्या के समाधान के लिए हाथ-पांव मार ही रही है, तो केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने भी तत्परता दिखाते हुए अध्ययन समिति का गठन कर दिया है।
प्रोजेक्ट डायरेक्टर को समन्वय स्थापित करने का दायित्व
समिति में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय जल आयोग, जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया, देहरादून और एनएमसीजी के एक-एक प्रतिनिधि, उत्तराखंड स्टेट प्रोग्राम मैनेजमेंट ग्रुप के प्रोजेक्ट डायरेक्टर, नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हाइड्रोलाजी के प्रतिनिधि सम्मिलित किए गए हैं। उत्तराखंड से प्रोजेक्ट डायरेक्टर को समन्वय स्थापित करने का दायित्व दिया गया है।
रिपोर्ट तैयार कर एनएमसीजी को तीन दिन के भीतर सौंपेगी समिति
समिति तेजी से अध्ययन करेगी और भूमि धंसने के कारण और प्रभाव पर अपनी रिपोर्ट तैयार कर एनएमसीजी को तीन दिन के भीतर सौंपेगी। जोशीमठ क्षेत्र के निवासियों, भवनों और अवस्थापना सुविधाओं पर प्रभाव का जायजा लिया जाएगा।
साथ में वर्तमान में जारी जलविद्युत व हाइवे परियोजनाओं से पडऩे वाले असर को भी समिति देखेगी। विशेष रूप से नदी क्षेत्र और गंगा नदी के बहाव पर भी किसी तरह के प्रभाव दिखने का भी आकलन रिपोर्ट में किया जाएगा। भू-धंसाव का अन्य गतिविधियों पर हो रहे प्रभाव का अध्ययन भी किया जाएगा।
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