मुख्यमंत्री अपनी पसंद की एक पंचायत या गांव घूमकर दिखाएं-प्रशांत किशोर
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जन सुराज पदयात्रा के 95वें दिन पूर्वी चंपारण के चकिया प्रखंड के हरपुर गांव में प्रशांत किशोर ने मीडिया से संवाद करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को खुली चुनौती दी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी पसंद की एक भी पंचायत अथवा गांव पैदल घूमकर दिखा दें। प्रशासनिक कार्यक्रम को यात्रा का नाम देना कहीं से भी उचित नहीं है।
समाधान यात्रा पर तंज कसते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि यह कागज में उनकी 14वीं यात्रा होगी। सरकारी बंगले से निकलकर जिलों का दौरा करने को यात्रा नहीं कहा जा सकता। इस यात्रा का जनता से कोई सरोकार नहीं। सिर्फ अधिकारियों एवं खास लोगों से मिलने को यात्रा बताया जाना हास्यास्पद नहीं तो और क्या? नीतीश कुमार के शासन काल में अफसरशाही, भ्रष्टाचार व पीसी का दौर चल रहा है।
अधिकारियों का जंगलराज कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं
इसे अधिकारियों का जंगलराज कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं। सरकार को लेकर जनता उदासीन है। मनरेगा सहित अन्य योजनाओं में राशि का 40 प्रतिशत तक पीसी कट जाता है। किसानों को समय से बीज व खाद उपलब्ध नहीं हो रहे। यूरिया की कालाबाजारी एक मुख्य समस्या बनी हुई है। खेतों में पहले नहर व नलकूपों से सिंचाई के लिए पानी मिलता था अब वह भी बंद हो गया है।
खाद-बीज की कालाबाजारी से किसान परेशान
किसान सड़कों पर खाद बीज के लिए सर्द रातों में लाइन में खड़े होते हैं और सुबह उन्हें पुलिस का डंडा मिलता है। सीमावर्ती क्षेत्रों में खाद की कालाबाजारी सरकारी तंत्र की विफलता का परिणाम है। अपनी पदयात्रा का अनुभव साझा करते हुए प्रशांत किशोर ने बिहार की बेरोजगारी और मजदूरों का दूसरे प्रदेशों में अधिकाधिक पलायन की विकरालता पर चिंता प्रकट करते हुए बताया कि पिछले तीस से चालीस वर्षों में यहां के नेताओं ने लोगों को पीढ़ी दर पीढ़ी मजदूर बनाने का काम किया है।
स्कूलों में खिचड़ी और कालेजों में डिग्री बांटी जा रही
यहां के परिश्रमी मजूदरों की मेहनत से अन्य प्रदेशों में उद्योग धंधे फल फूल रहे हैं। ज्ञान की भूमि बिहार में स्कूलों में खिचड़ी व कालेजों में सिर्फ डिग्री बांटी जा रही है। शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है। कार्यक्रम की दूसरी कड़ी में उन्होंने गांव के ब्रह्मस्थान समीप स्थानीय लोगों के साथ जन समस्याओं पर चर्चा की। इस दौरान लोगों ने अपनी समस्याओं से उन्हें अवगत कराया।
केंद्र सरकार द्वारा संचालित मनरेगा, प्रधामनंत्री आवास योजना, स्वच्छ भारत मिशन राज्य की योजनाओं में नल जल व पक्की गली-नाली की जमीन पर कार्यरूप को लेकर चर्चा गर्म रही। उन्होंने किसानों को जानकारी देते हुए बताया कि पंजाब व हरियाणा के 70 प्रतिशत धान, गेहूं व अन्य फसल सरकारी समर्थन मूल्य पर बेचा जाता है।
बिहार के किसानों को 25 हजार करोड़ का नुकसान
जबकि बिहार में पिछले दस वर्षों में सिर्फ 13 प्रतिशत धान व मात्र 1 प्रतिशत गेहूं ही समर्थन मूल्य पर खरीदा गया है। जिससे बिहार के किसानों को 25 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। इसी प्रकार मनरेगा में बिहार सरकार केंद्र से 12 हजार करोड़ की राशि ले सकती है लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा सिर्फ 4 हजार करोड़ ही लिया गया। बिहार में मजदूरों की बहुतायत संख्या होते हुए भी मनरेगा में मजदूरी नहीं मिलना दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।
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