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मकर संक्रान्ति। सूर्य महाराज के मकर राशि में प्रवेश का दिन। - श्रीनारद मीडिया

मकर संक्रान्ति। सूर्य महाराज के मकर राशि में प्रवेश का दिन।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हजारों वर्ष पूर्व, जब सभ्यताओं में सम्प्रदायवाद की शुरुआत नहीं हुई थी, तब मनुष्य पूर्णतः प्रकृति की ही अराधना करता था। भारत से मिस्र तक, ईरान से यूनान तक… प्राकृतिक किन्तु अलौकिक शक्तियों को देवता के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त थी, जैसे सूर्य, वायु, वरुण। सहज रूप से प्राप्त प्राकृतिक शक्तियां देवियां थीं, जैसे नदी, भूमि… भौतिक भावों की स्वामिनी भी स्त्री शक्ति ही थी, जैसे ज्ञान की देवी, सौंदर्य की देवी, शक्ति की देवी… गङ्गा से नील तक सबकुछ पूर्णतः प्राकॄतिक, कहीं कोई प्रदूषण नहीं।

तब मानुस की समस्त गतिविधियां सूर्य देव की गति/दिशा के आधार पर तय होती थीं। खेती किसानी से लेकर पर्व त्योहार तक, सबकुछ। देवों में सबसे स्पष्ट दर्शन उन्ही का होता, सो उन्ही का आदेश देवों का आदेश माना जाता।
मानुस तब जितनी श्रद्धा अपने देवताओं के प्रति रखता था, लगभग उतना ही सम्मान पितरों का भी होता था। उन्ही दिनों भारत के आध्यात्मिक जन ने वर्ष को दो भागों में बांटा। आधा हिस्सा पितरों का और आधा हिस्सा देवों का…

मकर संक्रान्ति से कर्क संक्रान्ति तक, जब धरणी पर ऊर्जा के एकमात्र स्रोत सूर्य देव का प्रभाव तीव्र होता था, देवों का काल माना गया। कर्क संक्रान्ति के बाद जब सूर्य देव दक्षिण की ओर मुड़ते, उनका ताप कम होता, तो यह समय उनके विश्राम का मान लिया गया और यह समय निर्धारित हुआ पितरों के लिए।
सामान्य जन के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का भौतिक अर्थ है शीत से मुक्ति मिलना। सिकुड़े-सहमें कृषक जन के दुबारा ऊर्जावान होने का समय, अपनी खेती किसानी में लग जाने का समय। खेतों में सरसो के खिलने का समय, प्रकृति के श्रृंगार का समय। तो क्या यह उत्सव का समय नहीं है? है!

तो हर ओर के लोगों ने अपनी उपलब्धता के आधार पर अपनी परम्परा गढ़ ली। कहीं जल में नावों पर खेलने की शुरुआत हुई तो कहीं अग्नि के पास नाचने की। जिन्हें आनन्द में रुचि थी उन्होंने मनोरंजन की परम्पराएं गढ़ीं, जो अधिक आध्यात्मिक थे उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद देने और पुण्य प्राप्त करने पर जोर दिया। देवी मानी गयी नदियों में स्नान, सूर्य देव को अर्घ, दरिद्रों को दान… अपने सबसे प्रिय देव के शीत के प्रभाव से मुक्ति पाने की खुशी मानते भारत जन में जिसे जो अच्छा लगा उसने वह अपनाया। धर्म बांधता नहीं है, मुक्त करता है।

तो आनन्दित होइये। आज से देवों का दिन प्रारम्भ हो रहा है। शनिदेव की कथा फिर कभी, आज विशुद्ध देहाती भाव से मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं।

आभार-सर्वेश तिवारी श्रीमुख, गोपालगंज, बिहार।

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