क्या हमें अपना निजी अनुभव साझा नहीं करना चाहिए?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक पुरानी सूक्ति है- ‘सत्यं ब्रूयात् प्रियम् ब्रूयान्नब्रूयात् सत्यमप्रियम्। प्रियम् च नानृतम् ब्रूयादेषः धर्मः सनातनः॥’ इसका अर्थ है, ‘सत्य बोलें। प्रिय बोलें। पर अप्रिय सत्य न बोलें। प्रिय हो पर तब भी झूठ न बोलें। यही सनातन धर्म है।’ इस मंगलवार को मुझे ये सूक्ति याद आई, जब मुंबई के बल्लेबाज सरफराज खान ने अपनी टीम को मुश्किल हालात से निकाला।

दिल्ली के खिलाफ खेलते हुए मुंबई 66 पर 4 विकेट गंवा चुकी थी पर सरफराज के 125 (चार छक्के और 16 चौके) रनों की बदौलत पहले दिन का खेल खत्म होने तक टीम ने 293 रन बनाए। ऑस्ट्रेलिया टेस्ट दौरे के लिए चयन नहीं होने पर हाल ही में उन्होंने अपनी निराशा जाहिर की।

मुंबई के पूर्व कप्तान व चीफ सिलेक्टर मिलिंद रेगे ने कहा, ‘सरफराज बैटिंग में लगातार अच्छा कर रहे हैं, उनकी तुलना किसी से नहीं, लाइन-अप में फिलहाल जगह नहीं है, जब अवसर बनेगा, उसे मौका मिलेगा। पर फिलहाल उसे प्रदर्शन करते रहना होगा और टिप्पणी नहीं करना चाहिए( चयनकर्ताओं पर)।’ हालांकि हरेक को इंतजार करना पड़ता है और देखते हैं इस टिप्पणी का असर उनके करिअर पर कितना पड़ेगा, इस पूरे प्रकरण से हमें कुछ सबक सीखने की जरूरत है।

1. सीमा बनाएं : ये खुद को सुरक्षित करने का नियम है। सारी भावनाएं हरेक से कहने की जरूरत नहीं- अविवेकपूर्ण ईमानदारी, सबको सब बताना, काम नहीं आता। सीमाएं पहचानकर अलग माहौल के लिए अलग रूप बना सकते हैं जैसे काम, मित्र, परिवार। ये मेंटल हेल्थ के लिए अच्छा है। जब हम बिना किसी पर्दे के भावनाएं अंधाधुंध व्यक्त करते हैं तो लोगों को हर्ट कर सकते हैं (जैसे सरफराज ने सिलेक्टर्स को किया) और फिर जैसी हमदर्दी चाहिए, नहीं मिल सकती।

2. खतरा देखें : इंसान के तौर पर हम हमेशा खतरा देखने के आदी होते हैं और भावनाएं संक्रामक होती हैं। अप्रिय शब्द दिमाग के खतरे की प्रणाली जगा सकते हैं जो कि दिमाग को ‘कोड रेड’ बना देगी (जिसका मतलब है लड़ना व थम जाना) जो तनाव-विवाद बढ़ा सकते हैं। ऐसे में जब कोई संवेदनशील प्रतिक्रिया या गहरी सोच की बात आएगी तो हम वहां से जाने या ऑफलाइन होने के लिए प्रेरित होंगे। आक्रामकता पर काबू हो जाता है क्योंकि सर्वाइवल का तरीका चरम पर होता है।

3. काम की जरूरत है, आपकी नहीं : हमें मशीन नहीं होना है पर कार्यक्षेत्र पर अपना सबसे दृढ़ रूप सामने लाना है। खुलकर कहूं तो मैनेजर्स को हमारी नहीं, हमारे काम की जरूरत है। अपनी भावनाएं व अंदरुनी तनाव को काम पर जाहिर नहीं करना आगे बढ़ने का हेल्दी तरीका है। अपनी परेशानियां नजदीकी लोगों के साथ साझा करें।

4. स्थायित्व का अभ्यास : यह ऐसा है जैसे सड़क पर खतरा देखकर आप उसी समय क्लच व ब्रेक दबाएं। अगर बाहरी घटना की पहली प्रतिक्रिया में आप नियंत्रण नहीं रख पाते तो गहरी सांस लें और दूसरी चीज पर ध्यान लगाएं। खुद को शांत रखने के इस तरीके का जितना इस्तेमाल करेंगे, अगली बार आपका संचार उतना प्रभावी होगा।

5. आकलन करें- कितने कमजोर व अजेय हैं : यह बहुत कठिन है। भावनात्मक रूप से उपस्थित होने के साथ उसी वक्त अपनी भावनाओं को एक अलग जगह रख देना, ताकि बाद में एकांत में देखें, यह आसान काम नहीं है। पर जिन्होंने ऐसा किया, उनका करियर सफल रहा।

फंडा यह है कि हमें सच बोलना चाहिए, पर निजी अनुभव हद से ज्यादा साझा नहीं करना चाहिए, जो कि सच का हिस्सा हो सकते हैं पर करिअर ग्रोथ पर असर डाल सकते हैं। कुछ देर रुकें और देखें कि क्या इससे आपके काम के माहौल पर कोई फर्क पड़ता है। फिर निर्णय लें।

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