ग्रामीण समुदायों के जीवन स्तर में सुधार के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
UNDP के बहुआयामी गरीबी सूचकांक, 2022 में कहा गया है कि पिछले 15 वर्षों के दौरान ग्रामीण आवास, शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य, बैंक खातों, महिला समूहों, टेलीकनेक्शन, प्रौद्योगिकी, रोज़गार सृजन, कौशल प्रशिक्षण, सामाजिक सहायता और ग्रामीण सड़कों ने भारत के लिये अपने 415 मिलियन लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकालने में सक्षम होने में योगदान दिया है। बहुआयामी गरीबी सूचकांक में ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे तेज़ गिरावट दर्ज की गई है जहाँ वर्ष 2015-16 से 2019-21 के बीच स्वच्छता, रसोई ईंधन और आवास के अभाव में सबसे अधिक गिरावट आई है।
वर्ष 2019-21 में गरीबी में जी रहे 228.9 मिलियन व्यक्तियों के लिये गरीबी को दूर करने की चुनौती अब भी उल्लेखनीय बनी हुई है, विशेष रूप से जबकि डेटा एकत्र किये जाने की अवधि के बाद से गरीबों की संख्या में वृद्धि हुई है।
भारत मुख्यतः एक ग्रामीण देश है जिसकी दो-तिहाई आबादी और 70% कार्यबल ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय आय में 46% का योगदान करती है। इस प्रकार, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आबादी की प्रगति और विकास देश के समग्र विकास एवं समावेशी वृद्धि की कुंजी है।
भारत में ग्रामीण विकास से संबंधित मुद्दे
- गरीबी:
- भारत में ग्रामीण आबादी का एक बड़ा भाग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करता है और भोजन, आश्रय एवं स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुँच का अभाव रखता है।
- बुनियादी ढाँचे की कमी:
- भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में उपयुक्त सड़कों, बिजली और संचार सुविधाओं की कमी है जो आर्थिक विकास में बाधक है।
- कृषि संबंधी मुद्दे:
- अधिकांश ग्रामीण आबादी कृषि पर निर्भर है, जो मृदा के क्षरण, घटती उत्पादकता और आधुनिक तकनीक की कमी जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है।
- शिक्षा:
- ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर कम है और शैक्षिक संस्थानों एवं योग्य शिक्षकों की कमी की स्थिति है जो शैक्षिक अवसरों को सीमित करता है।
- स्वास्थ्य देखभाल:
- ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं और प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवरों की कमी है, जिसके कारण अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बनती है।
- लैंगिक असमानता:
- ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और बालिकाओं को लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है तथा प्रायः उन्हें शिक्षा एवं रोज़गार के समान अवसरों से वंचित रखा जाता है।
- पर्यावरणीय क्षति:
- असंवहनीय कृषि अभ्यासों और तीव्र औद्योगीकरण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरणीय क्षति एवं प्राकृतिक संसाधनों की हानि की स्थिति बनी है।
- ग्रामीण मुद्रास्फीति:
- अनाज जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिये उच्च मुद्रास्फीति दर के साथ ग्रामीण क्षेत्र शहरी क्षेत्रों की तुलना में मुद्रास्फीति के प्रभाव को अधिक तीव्रता से महसूस कर रहे हैं।
- सीमित वित्तीय स्वायत्तता:
- ग्राम पंचायतें (जो गाँव की परिषदें हैं) सीमित वित्तीय स्वायत्तता रखती हैं और कर दरों एवं राजस्व आधारों के निर्धारण में राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित की जाती हैं, जो उधार ले सकने और विकास करने की उनकी क्षमता को सीमित करता है।
संबंधित पहलें
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)
- दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन
- प्रधानमंत्री आवास योजना
आगे की राह
- स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाना:
- स्वयं सहायता समूहों से संलग्न महिलाएँ अभूतपूर्व सामाजिक पूंजी प्रदान करती हैं, विविध आजीविका साधनों के माध्यम से मानव विकास, ऋण तक पहुँच, उद्यम और स्थायी रूप से गरीबी में कमी लाने के अवसर प्रदान करती हैं।
- स्थानीय स्वशासन के 3.3 मिलियन निर्वाचित प्रतिनिधियों (जिनमें से 43% महिलाएँ) के साथ मिलकर उनका कार्य करना परिवर्तनकारी सिद्ध होगा यदि राज्य विधानसभाओं द्वारा संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची के अनुरूप पंचायतों को सौंपे गए 29 क्षेत्रों के धन, कार्य और कर्मियों का हस्तांतरण पंचायतों को किया जाए।
- कौशल प्रदान करना:
- इन 29 क्षेत्रों का उत्तरदायित्व सँभालने के लिये स्थानीय सरकारों को ऐसे कौशल समूहों की आवश्यकता होगी जो नागरिकों के लिये बेहतर शासन परिणामों को सुविधाजनक बना सके।
- प्रभावोत्पादकता के लिये मानव संसाधन, प्रौद्योगिकी, सहयोग और साझेदारी सभी क्षेत्रों पर बल देना आवश्यक होगा।
- आशा सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आजीविका मिशन के सामुदायिक संसाधन व्यक्ति (Community Resource Persons) जैसे सामुदायिक संवर्ग आगे बढ़ने के साधन बन सकते हैं।
- सुमित बोस समिति (जिसका गठन भारत में ग्रामीण विकास संबंधी मुद्दों पर विचार करने और सुधार हेतु अनुशंसा करने के लिये किया गया था) की अनुशंसाएँ मार्गदर्शक सिद्धांत का कार्य कर सकती हैं।
- इसकी कुछ प्रमुख अनुशंसाओं में ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के योजना निर्माण एवं कार्यान्वयन का विकेंद्रीकरण, पंचायती राज संस्थाओं का सशक्तीकरण, कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करना, ग्रामीण अवसंरचना में सुधार लाना आदि शामिल हैं।
- मनरेगा का उपयोग:
- यह उपयुक्त समय है कि मनरेगा को गरीबी कम करने, ग्लोबल वार्मिंग के शमन और मानव कल्याण में सहायता के लिये एक विकेंद्रीकृत संसाधन के रूप में देखा जाए।
- ग्रामीण संकट को दूर करने के लिये मनरेगा का उपयोग ग्रामीण श्रमिकों को गारंटीकृत रोज़गार प्रदान करने के लिये किया जा सकता है, जिससे आय का एक स्थिर स्रोत सुनिश्चित हो सके।
- गंभीर संकट के समय में, मनरेगा को प्रभावित समुदायों को अतिरिक्त रोज़गार और सहायता प्रदान करने के लिये अतिरिक्त सक्षम भी बनाया जा सकता है।
- कई अध्ययनों ने अभिसरण के माध्यम से जल संरक्षण, अवसंरचना और पशु संसाधनों से आय प्राप्त करने में इसकी प्रभावकारिता स्थापित की है।
- अन्य उदाहरण:
- राजस्थान में मनरेगा का उपयोग राजस्थान के चुनिंदा गाँवों में जल सुरक्षा मुद्दों के समाधान के लिये किया जा रहा है।
- महाराष्ट्र में जल संबंधी कार्य।
- बिहार का हरियाली मिशन।
- तेलंगाना में प्रत्येक ग्राम पंचायत में पौध नर्सरी एवं वनीकरण पर बल; कई अन्य राज्यों में पृथक्करण शेड, सोख्ता गड्ढा, रिसाव टैंक, खेल मैदान, श्मशान घाट, ग्रामीण हाट आदि का निर्माण।
- छत्तीसगढ़ में वन अधिकार अधिनियम के लाभार्थियों के लिये मनरेगा का उपयोग।
- पेयजल, दुधारू पशुओं के लिये शेड और उच्च मूल्य जैविक खेती जैसे क्षेत्रों में मनरेगा के माध्यम से सिक्किम राज्य ने वृहत उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं।
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