नकल हो तो सिर्फ अनुशासन की, इसके कारण मूल गुण न भूलें
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
मनुष्य काफी हद तक पैदाइशी नकलची होता है। बच्चा जन्म से ही आस-पास के लोगों की नकल कर बोलना सीखता है। दूसरों को देखकर उठने-बैठने का प्रयास करता है। यह प्रक्रिया जीवन भर किसी न किसी रूप में चल रही होती है। लोग जिस छोटे या बड़े माहौल में होते हैं, वहां के समाज की, वहां के सफल लोगों की चाल-ढाल अपनाने का प्रयास करते हैं। कई लोग दिल्ली या बंबई पहुंचने के महीने भर में अपनी जबान बदल लेते हैं। अमेरिका पहुंचकर वहां के तौर-तरीके अपनाने लगते हैं।
कई बार अभिभावक भी प्रेरित करते हैं कि अमुक छात्र की नकल करो, वह टॉप करता है। अखबारों-पत्रिकाओं में टॉपर के साक्षात्कार छपते हैं। छोटे व्यवसायी बड़े व्यवसायियों की नकल करना चाहते हैं। लेखक बेस्टसेलर लेखकों की। युवा नए फैशन पर नजर रखते हैं कि लोग कैसे कपड़े पहन रहे हैं, क्या ट्रेंड चल रहा है।
यह सब स्वाभाविक है और कुछ हद तक सफलता के लिए आवश्यक भी। लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना है कि अपनी विशेषता या अपने गुण इस नकल में न खो जाएं। ऐसा कहा जाता है कि संजय मांजरेकर बेहतरीन क्रिकेटर थे, लेकिन आखिरी दिनों में सचिन तेंदुलकर की तरह खेलने के प्रयास में अपना खेल ही खोने लगे।
एक संगीत महाविद्यालय के गुरु पर तंज किया गया- ‘आपने कितने तानसेन पैदा कर दिए?’ उन्होंने कहा- ‘यह विद्या नकल से नहीं मिलती। दूसरा तानसेन तो स्वयं तानसेन ने नहीं पैदा किया।’ मशहूर गायक किशोर कुमार के विषय में एक किंवदंती है कि उन्होंने शुरुआत कुंदनलाल सहगल की नकल से की।
इसकी तस्दीक उनके गाए गीत ‘मरने की दुआएं क्या मांगू’ (फिल्म- जिद्दी) से की जा सकती है। एक दिन सचिन देव बर्मन ने किशोर कुमार को बाथरूम में ‘योडलिंग’ करते सुना। उन्होंने समझाया कि आप सहगल की नकल करना त्याग दें, अपनी इस योडलिंग वाली आवाज को ही पहचान बनाएं। उसके बाद इतिहास गवाह है। किशोर कुमार ऐसी आवाज बने कि कई चार्टबस्टर गीत दिए!
अगर नकल से टॉपर बन सकते तो दुनिया एक ही मॉडल पर चल रही होती। टॉपर्स ने चीजें अलग की, तभी सफल हुए। हमें भी कुछ ऐसा अलग करने का प्रयास करना है, जो हम अपने गुणों के माध्यम से कर सकते हैं। एक गुरु को इस बात से खुशी नहीं होती कि शिष्य उनकी नकल बन गए। जैसा उन्होंने सिखाया, वैसा ही कर गए। बल्कि वह अपने हर विद्यार्थी को उसके गुणों के हिसाब से अलग-अलग ढालते हैं। तभी एक विद्यार्थी व्यवसायी बनता है, एक शिक्षक, एक चिकित्सक, एक बैंक कर्मी इत्यादि।
अगर मनुष्य की एक जन्मजात विशेषता है कि वह नकल करता है, तो दूसरी यह है कि वह हर चीज की नकल नहीं करता। वह आस-पास की दुनिया को सुनता है, देखता है, महसूस करता है, मगर करता वही है जो उसके लिए उपयुक्त होता है। टॉपर से अनुशासन और अन्य चीजें अवश्य सीखी जा सकती है, लेकिन हू-ब-हू नकल कर टॉपर नहीं बना जा सकता। अगर ऐसा होता तो टॉपर भी किसी की नकल कर ही टॉपर बने होते।
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