क्या हम सबकी सोशल मीडिया प्रोफाइल बन चुकी हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हम सबकी सोशल मीडिया प्रोफाइल हैं। कभी सोचा है, वह प्रोफाइल हमारे बारे में क्या बताती है? जो हम ऑनलाइन दिखाते हैं, क्या वह सच है? हम अपनी असुरक्षा को सोशल मीडिया/ कैमरा फिल्टर के पीछे क्यों छिपाते हैं? दरअसल यह बेहतर दिखाने की सनक है।

अगर यह सनक हमारे शरीर को लेकर हो, तो इसके मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं। डिजिटल मीडिया अक्सर हमें परफेक्ट शरीर पर जानकारी देता है। न चाहने पर भी आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से बॉडी शेपिंग के बारे में मोबाइल पर जानकारियों की पुनरावृत्ति होती रहती है। महिलाओं के लिए पतले और युवा बने रहने के परफेक्शन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। पुरुषों के लिए परफेक्ट बॉडी शेप, सपाट पेट। समस्या यह है कि सुंदरता के ये आदर्श मानक बन गए हैं। और हम तुलना करने के आदी बन गए हैं।

फैशन और अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म में डिजिटल माध्यम से इंप्रूव की गई इमेज का प्रभाव कहीं न कहीं देखने वाले के अवचेतन रूप में बदल दिया जाता है। जब हम इसे देखते हैं, तो अपने शरीर के बारे में खराब सोचते हैं। हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य हमारे शरीर की अन्य प्रक्रियाओं की तरह आपस में जुड़ा हुआ है।

हम कैसा महसूस करते हैं यह अक्सर शरीर में दिखता है। हम अपने शरीर को कैसे बनाए रखते हैं, यह अक्सर हमारी मानसिक स्थिति को निर्धारित करता है। हाल के दिनों में दुनिया को अधिक समावेशी समुदाय बनाने के लिए पर्सनली और यहां तक कि सोशल मीडिया पर भी बॉडी शेमिंग के खिलाफ कई तरह के आंदोलन चलाए जा रहे हैं। यह कहना अतिरेक नहीं होगा कि आज एक ऐसा बाजारवाद खड़ा किया जा रहा है जो बॉडी शेपिंग को बॉडी शेमिंग की तरफ ले जा रहा है।

किसी के शरीर के बारे में कुछ निगेटिव कहना या कमेंट करना जैसे किसी व्यक्ति की लंबाई, उम्र, बालों व कपड़ों का रंग, मोटा, पतला आदि बॉडी शेमिंग के दायरे में आते हैं, जिसका हर वर्ग शिकार होता है, लेकिन महिलाएं अधिक।

अक्सर देखा जाता है आप बहुत दिनों बाद किसी से मिलो तो सबसे पहले वो आपका वेलकम इन्हीं शब्दों से करेगा, अरे कितनी मोटी हो गई? पतली हो गई? क्या बात है कोई प्रॉब्लम है क्या? क्यों बड़ी कमजोर नजर आ रही हो? कई टीवी शो और फिल्में भी इस पैटर्न में आ गई हैं जहां मोटा चरित्र अक्सर हास्य और आलोचना का विषय होता है। हाल ही में आई डबल एक्सल फिल्म इसका ताजा उदाहरण है। एक दर्पण के सामने खड़े होने से सुंदरता की पारंपरिक धारणाओं में वृद्धि हो सकती है। परिणामस्वरूप गहरे आत्मसम्मान की भावना जाग सकती है।

सुंदरता का कोई मानक नहीं है। सोशल मीडिया जहां हम रोजाना कई घंटे समय बिताते हैं वहां पर परफेक्ट बॉडी के कई पैमाने तय किए गए हैं, लेकिन अगर आप अपने बारे में अच्छा महसूस करते हैं तो आपको ध्यान देने की जरूरत नहीं है। एक बार जब आप अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना सीख जाते हैं तो आपका जीवन बेहतर हो जाएगा।

बॉडी शेमिंग झेलने से मानसिक स्वास्थ्य जैसी समस्याएं हो सकती हैं। जिसमें खाते रहना, डिप्रेशन, चिंता, आत्मसम्मान की कमी और बॉडी डिस्कंफर्टिंग के साथ-साथ नफरत की भावना पैदा हो जाती है।

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