ASI ने 1300 वर्ष पुराना बौद्ध स्तूप को ढूढ निकला है।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) ने ओडिशा के जाजपुर ज़िले में खोंडालाइट खनन स्थल पर 1,300 वर्ष पुराने स्तूप की खोज की है।
- यह वह स्थान है जहाँ से पुरी में 12वीं शताब्दी के श्री जगन्नाथ मंदिर के सौंदर्यीकरण परियोजना हेतु खोंडालाइट पत्थरों की आपूर्ति की गई थी।
प्रमुख बिंदु
- यह स्तूप 4.5 मीटर ऊँचा हो सकता है और प्रारंभिक आकलन से पता चला है कि यह 7वीं या 8वीं शताब्दी का हो सकता है।
- यह परभदी में पाया गया था जो ललितगिरि के पास स्थित है, एक प्रमुख बौद्ध परिसर है जिसमें बड़ी संख्या में स्तूप और मठ हैं।
- एक पत्थर के ताबूत के अंदर बुद्ध के अवशेष वाले एक विशाल स्तूप की खोज के कारण ललितगिरि बौद्ध स्थल को तीन साइटों (ललितगिरि, रत्नागिरि और उदयगिरि) में सबसे पवित्र माना जाता है।
खोंडालाइट चट्टान:
- खोंडालाइट एक प्रकार की कायांतरित चट्टान है जो भारत के पूर्वी घाट में विशेष रूप से ओडिशा राज्य में पाई जाती है। इसका नाम चट्टानों के खोंडालाइट समूह के नाम पर रखा गया है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह लगभग 1.6 अरब वर्ष पहले प्रोटेरोज़ोइक युग के दौरान बनी थी।
- खोंडालाइट मुख्य रूप से फेल्डस्पार, क्वार्ट्ज़ और अभ्रक से बनी है एवं गुलाबी-ग्रे रंग इसकी विशेषता है। इसे सामान्यतः निर्माण में एक सजावटी पत्थर के रूप में उपयोग किया जाता है तथा विशेष रूप से स्थायित्व और अपक्षय के प्रतिरोध हेतु बेशकीमती है।
- प्राचीन मंदिर परिसरों में खोंडालाइट पत्थरों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था। कुछ परियोजनाओं जैसे- विरासत सुरक्षा क्षेत्र, जगन्नाथ बल्लभ तीर्थ केंद्र आदि के सौंदर्य को बनाए रखने हेतु उनका व्यापक रूप से उपयोग करने का प्रस्ताव है।
स्तूप:
- परिचय: स्तूप वैदिक काल से भारत में प्रचलित शवाधान टीले थे।
- वास्तुकला: स्तूप में एक बेलनाकार ड्रम होता है जिसमें शीर्ष गोल अंडाकार, हर्मिका एवं छत्र होता है।
- अंडाकार: बुद्ध के अवशेषों को ढँकने के लिये मिट्टी के टीले का प्रतीकात्मक गोलार्द्ध टीला (कई स्तूपों में वास्तविक अवशेषों का उपयोग किया गया था)।
- Anda: Hemispherical mound symbolic of the mound of dirt used to cover Buddha’s remains (in many stupas actual relics were used).
- हरमिका: टीले के ऊपर चौकोर रेलिंग।
- छत्र: ट्रिपल छत्र को सहारा देने वाला केंद्रीय स्तंभ।
- प्रयुक्त सामग्री: स्तूप का मुख्य भाग कच्ची ईंटों से बना था, जबकि बाहरी सतह पकी हुई ईंटों का उपयोग करके बनाई गई थी, जिन्हें बाद में प्लास्टर और मेढ़ी (Medhi) की एक मोटी परत से ढक दिया गया था और तोरण को लकड़ी की मूर्तियों से सजाया गया था।
- उदाहरण:
- मध्य प्रदेश में सांची स्तूप अशोक स्तूपों में सबसे प्रसिद्ध है।
- उत्तर प्रदेश में पिपरहवा स्तूप सबसे पुराना स्तूप है।
- बुद्ध की मृत्यु के बाद बनाए गए स्तूप: राजगृह, वैशाली, कपिलवस्तु, अल्लकप्पा, रामग्राम, वेथापिडा, पावा, कुशीनगर और पिप्पलिवन।
- बैराट, राजस्थान में स्तूप: एक गोलाकार टीला और एक प्रदक्षिणा पथ के साथ भव्य स्तूप।