क्या भारतीय जल संकट का सामना कर रहे हैं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत की जनसंख्या बढ़ती ही जा रही है और अधिकांश लोग अभी भी कृषि कार्य से संलग्न हैं, जल की कमी की समस्या और चिंताजनक बन सकती है। अमेरिका में अवस्थित विश्व संसाधन संस्थान (World Resources Institute) की एक रिपोर्ट (वर्ष 2015) के अनुसार, भारत में रहने वाले लगभग 54% लोग पहले से ही जल की कमी का सामना कर रहे हैं।
- इसी प्रकार, विश्व बैंक की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि उपलब्ध प्रति व्यक्ति औसत जल वर्ष 2030 तक 1588 क्यूबिक मीटर से घटकर आधे से भी कम रह जाएगा। वर्ष 2016 में विश्व बैंक द्वारा जलवायु परिवर्तन और जल की स्थिति पर किये गए एक अन्य अध्ययन ने चेतावनी दी थी कि जल की कमी वाले देश वर्ष 2050 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 6% तक खो देंगे।
- चूँकि देश के कई हिस्सों में सिंचाई की कमी बढ़ती जा रही है, किसानों को फसलों की खेती में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है; कुछ राज्यों में किसानों द्वारा फसल खराब होने की स्थिति में आत्महत्या जैसे चरम कदम तक उठाए गए हैं। ऐसी घटनाएँ देश की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर सकती हैं।
- चूँकि हमारे देश का समग्र आर्थिक विकास अभी भी कृषि क्षेत्र पर बहुत अधिक निर्भर है (जो जल की खपत में लगभग 90% हिस्सेदारी रखता है), भारत के लिये अन्य देशों की तुलना में जल की कमी को दूर करने की तत्काल आवश्यकता है।
भारत में जल की कमी के प्रमुख कारण
- जल संग्रहण में परिवर्तन:
- यद्यपि बड़े सिंचाई बाँधों की संख्या वर्ष 1960 में 236 से बढ़कर वर्ष 2020 में 5,334 तक पहुँच गई है, ग्रीष्मकाल के दौरान बाँधों की सकल जल उपलब्धता घट जाती है।
- अध्ययन दिखाते हैं कि गंगा, गोदावरी और कृष्णा जैसी बारहमासी नदियाँ गर्मियों के दौरान कई जगहों पर सूख जाती हैं।
- आकलन किया जाता है कि गंगा और ब्रह्मपुत्र (जिन्हें विश्व में सबसे भूजल समृद्ध नदी बेसिन माना जाता है) में भूजल के स्तर में प्रतिवर्ष 15-20 मिमी की गिरावट आती है।
- जलग्रहण क्षेत्र में मानव गतिविधियों और अन्य हस्तक्षेपों के कारण बड़े एवं मध्यम बाँधों के जल संग्रहण क्षेत्र में गाद का जमाव बढ़ गया है, जिससे कुल जल संग्रहण कम हो रहा है।
- कृषि संबंधी मांग:
- जल संसाधन मंत्रालय ने अनुमान लगाया है कि तेज़ आर्थिक विकास और बढ़ती जनसंख्या के कारण देश की कुल जल की मांग वर्ष 2050 तक उपयोग के लिये उपलब्ध जल की मात्रा से अधिक हो सकती है।
- अधिक जल-गहन फसलों की खेती:
- आय और बाज़ार से संबंधित कारणों से हाल के वर्षों में अधिक जल-गहन फसलों की खेती की प्रवृत्ति बढ़ी है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 1990-91 और 2020-21 के बीच जल-गहन फसलों गन्ना, धान और केले के तहत शामिल बुवाई क्षेत्रों में क्रमशः 32%, 6% और 129% की वृद्धि हुई।
- इससे हाल के समय में जल की मांग में तेज़ वृद्धि हुई है।
- आय और बाज़ार से संबंधित कारणों से हाल के वर्षों में अधिक जल-गहन फसलों की खेती की प्रवृत्ति बढ़ी है।
- असमान वितरण:
- देश के विभिन्न क्षेत्रों में जल संसाधनों का असमान वितरण भी एक प्रमुख समस्या है। कुछ क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में जल संसाधन उपलब्ध हैं जबकि कुछ अन्य में जल की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ता है।
- भूजल का अतिदोहन:
- कृषि, उद्योगों और घरेलू उद्देश्यों के लिये भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण देश के कई हिस्सों में भूजल स्तर में कमी आई है।
- इससे लोगों के लिये अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिये भी जल तक अभिगम्यता रखना कठिन हो गया है।
- प्रदूषण:
- नदियों, झीलों एवं अन्य जल निकायों के प्रदूषण ने पेयजल, सिंचाई और अन्य उद्देश्यों के लिये जल का उपयोग करना कठिन बना दिया है।
- उद्योग और शहरी क्षेत्र अनुपचारित अपशिष्ट को जल निकायों में बहा देते हैं, जो न केवल जल को प्रदूषित करता है बल्कि इसकी उपलब्धता को भी कम करता है।
संबंधित कदम
- राष्ट्रीय जल नीति, 2012
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
- जल शक्ति अभियान – ‘कैच द रेन’ अभियान
- अटल भूजल योजना
भारत जल संरक्षण के मुद्दे को कैसे संबोधित कर सकता है?
- वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करना:
- भारत को प्रत्येक वर्ष, विशेष रूप से मानसून के मौसम में भारी मात्रा में वर्षा जल प्राप्त होता है।
- उदाहरण के लिये, महज एक दिन में, वर्ष 2005 में मुंबई ने 950 मिमी, वर्ष 2015 में चेन्नई ने 494 मिमी और वर्ष 2017 में माउंट आबू ने 770 मिमी वर्षा प्राप्त की थी। नवंबर 2022 में तमिलनाडु में सिरकाज़ी में एक दिन में 420 मिमी वर्षा प्राप्त हुई थी।
- भारत वर्षा जल संचयन प्रणालियों को लागू करके बाद के उपयोग के लिये वर्षा जल को एकत्र और भंडारित कर सकता है। छत पर वर्षा जल संचयन, अंतःस्रवण गड्ढों और पुनर्भरण कुओं जैसी वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण कर इसे संभव किया जा सकता है।
- भारत को प्रत्येक वर्ष, विशेष रूप से मानसून के मौसम में भारी मात्रा में वर्षा जल प्राप्त होता है।
- छोटे जल निकायों का रखरखाव:
- भारत में तालाबों, झीलों और पोखरों जैसे छोटे जल निकायों का एक विशाल नेटवर्क मौजूद है, जो भूजल का पुनर्भरण करने और सिंचाई के लिये जल उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- 5वीं लघु सिंचाई गणना में उल्लेख किया गया है कि भारत में कुल 6.42 लाख छोटे जल निकाय मौजूद हैं। उचित रख-रखाव के अभाव में इनकी भंडारण क्षमता घटती जा रही है।
- इसके परिणामस्वरूप, पोखरों द्वारा सिंचित क्षेत्र वर्ष 1960-61 में 45.61 लाख हेक्टेयर से घटकर वर्ष 2019-20 में 16.68 लाख हेक्टेयर रह गया है।
- इन छोटे जल निकायों के जीर्णोद्धार एवं रखरखाव से भारत जल के संरक्षण और आस-पास के समुदायों के लिये जल की उपलब्धता में सुधार लाने में मदद कर सकता है।
- भारत में तालाबों, झीलों और पोखरों जैसे छोटे जल निकायों का एक विशाल नेटवर्क मौजूद है, जो भूजल का पुनर्भरण करने और सिंचाई के लिये जल उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- गाद हटाना:
- भारत में कई नदियों, झीलों और तालाबों में गाद का जमना एक प्रमुख समस्या है।
- समय के साथ गाद/तलछट एवं मलबे जल निकायों के तल पर जमा हो जाते हैं, जिससे उनकी भंडारण क्षमता कम हो जाती है और जल की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
- भारत गाद और मलबे को हटाकर जल निकायों की भंडारण क्षमता को पुनर्बहाल कर सकता है तथा जल की गुणवत्ता में सुधार ला सकता है।
- कुशल सिंचाई अभ्यासों को लागू करना:
- भारत में कृषि क्षेत्र जल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इस परिदृश्य में, सरकार को ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी कुशल सिंचाई विधियों को बढ़ावा देना चाहिये, जो जल की बर्बादी को कम कर सकता और फसल पैदावार में सुधार ला सकता है।
- जल-कुशल तकनीकों को अपनाना:
- सरकार को लो-फ्लो शौचालयों, जल-कुशल वाशिंग मशीन एवं डिशवॉशर जैसी जल-कुशल तकनीकों को अपनाने के लिये प्रोत्साहन देना चाहिये, जो जल के उपयोग में पर्याप्त कमी ला सकते हैं।
- जागरूकता का प्रसार:
- सरकार को जल संरक्षण के महत्त्व और जल के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान चलाना चाहिये।
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