कर्म और हुनर के प्रति संजीदगी का संदेश दे गए दोन के कर्मयोगी
87वे जयंती पर कर्मयोगी कुमार बिहारी पांडेय को शत शत नमन
✍️गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आपने ताजिंदगी कर्म की पूजा की। उन्होंने सदैव हुनर के महत्व को समझाया। मां नारायणी के प्रति अगाध आस्था से युक्त एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व। खेती किसानी के प्रति श्रद्धा भाव रखने वाले पर्यावरण के पुजारी । महाभारत कालीन गुरु द्रोण की नगरी माने जानेवाली दोन के लाडले बेटे। एक कर्मठ उद्योगपति। एक संवेदनशील साहित्यकार। एक व्यवहारकुशल व्यक्तित्व के स्वामी कर्मयोगी कुमार बिहारी पांडेय सदियों तक हमारे लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।
ढाबों में काम करनेवाला किशोर बना बिहारी सेठ
बचपन में ही माता के स्नेह से वंचित हो जानेवाले कुमार बिहारी पांडेय ने ताजिंदगी स्नेह से अपने बगिया को सींचा। कभी ढाबों में काम करने वाला बालक एक बड़ा उद्योगपति बन जाता है । कभी बेटी के जन्म पर अस्पताल से घर तक आने के लिए धन की व्यवस्था नहीं कर पानेवाला व्यक्ति बिहारी सेठ बन जाता है। कभी पांचवी कक्षा में फेल हो जाने वाला व्यक्ति दोन के सापेक्षिक रूप से पिछड़े क्षेत्र में जे आर कॉन्वेंट जैसा अत्याधुनिक स्कूल खोल देता है। ऐसे जुझारू व्यक्तित्व के लिए ऊर्जा का स्रोत मां नारायणी के प्रति अगाध आस्था तो रही ही। कर्म के प्रति स्नेह और हुनर के विकास के प्रति उनकी संजीदगी भी एक बड़ा तथ्य रही।
हुनर के विकास के प्रति रहे सदैव संजीदा
दुनिया में संसाधन के अभाव से पीड़ित लोगों की कमी नहीं। बेरोजगारों की कमी नहीं। लेकिन एक प्राइवेट कंपनी का चौकीदार, जब हुनर के महत्व को समझ जाता है तो उसे जॉन इलियट जैसे प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ का सहयोग भी मिलता है। वह चौकीदार अपने हुनर के विकास के प्रति संजीदा हो जाता है। हुनर का विकास उसे सफलता दर सफलता दिलाता चला जाता है और वह चौकीदार एक सफल उद्योगपति बन जाता है। कर्मयोगी कुमार बिहारी पांडेय के जिंदगी की दास्तां हुनर के विकास के महत्व को विशेष तौर पर सुप्रतिष्ठित करती दिखती है जो बेरोजगारों के लिए बड़ा संदेश भी बन जाती है।
मां नारायणी के लाडले
मां नारायणी के प्रति कुमार बिहारी पांडेय जी अगाध श्रद्धा भाव रखते थे। वे अपने हर कर्म का प्रेरणा स्रोत मां नारायणी को मानते थे। अपने हर कर्म को मां नारायणी को समर्पित करते चलते थे। हर आयोजन के प्रारंभ में मां नारायणी का आह्वान उनका अद्भुत अंदाज था। हर चुनौती हर संकट में मां नारायणी को याद करना उनका बेहद प्रिय शगल था।
मातृभूमि के प्रति रखते थे अपार श्रद्धा
कई लोग हैं, जो जिंदगी में सफलता दर सफलता अर्जित करते जाते हैं छोटे नगर से बड़े नगर और बड़े नगर से महानगर में शिफ्ट होते चले जाते हैं अपनी जड़ों से कट जाते हैं, अपनी मातृ भूमि को भूल जाते हैं। परंतु कर्मयोगी कुमार बिहारी पांडेय मुंबई महानगर के बड़े उद्योगपति बनने के बाद अपने मातृभूमि के प्रति सोचते हैं। उच्च और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अपने गृह नगर में कमी को महसूस करते है। फिर स्थापित करते हैं एक आधुनिक गुरुकुल दोन में और नाम रखते हैं जे आर कॉन्वेंट। एक सापेक्षिक रूप से बेहद पिछड़े क्षेत्र में कर्मयोगी कुमार बिहारी पांडेय ज्ञान की रोशनी फैलाने के हर संभव प्रयास करते हैं। उनका स्कूल सिर्फ एक बेहतर ज्ञान प्रदान करने का केंद्र ही नहीं बनता अपितु संस्कारों से बच्चों को सुसज्जित करने का केंद्र भी बन जाता है। विद्या विनम्रता सिखाती है और विनम्रता ही उपलब्धियों को पाने का सरल आधार है इस मंत्र को विद्यालय का हर छात्र जान जाता है।
ताजिंदगी हुनर के रहे बड़े पैरोकार
कर्मयोगी कुमार बिहारी पांडेय ताजिंदगी हुनर के बड़े पैरोकार रहे। वे हुनर के महत्व को समझते थे। इसलिए अपने मातृभूमि के युवाओं के भविष्य को संवारने के लिए उन्होंने दोन में जॉन इलियट आईटीआई की स्थापना भी की। जहां युवा विभिन्न ट्रेड में प्रशिक्षण प्राप्त कर अपनी जिंदगी को संवार सके।
साहित्य रचना के प्रति अद्भुत लगाव
कर्मयोगी कुमार बिहारी पांडेय यद्यपि मात्र पांचवी तक स्कूली शिक्षा प्राप्त किए थे लेकिन साहित्य के प्रति उनका अगाध लगाव था। कई गीतों की रचना के साथ उन्होंने कई पुस्तकों की रचना कर डाली। उनकी पुस्तक ‘ अनुभवों का आकाश’ तो जिंदगी में संघर्ष पथ के हर पथिक के लिए गीता के समान ही है। जो व्यक्ति जिंदगी में संघर्ष कर रहा है वह व्यक्ति जब इस पुस्तक को पढ़ेगा तो उसे असीम सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति होगी। उनकी पुस्तक ‘ पेट्रिसिया डिक’ आपके सामाजिक स्तर पर संवेदनशीलता को उजागर कर डालेगी।
उनकी पुस्तक ‘ मेरी आंख कभी नम नहीं’ उनके काव्यात्मक कौशल की शानदार अभिव्यक्ति है। उनकी पुस्तक ‘ नारायणी’ उनके आस्था का महान प्रतीक है, इस पुस्तक को पढ़ने पर मां नारायणी के प्रति अपार श्रद्धा के भाव के उत्पन्न हो जाने की गारंटी है। उनकी पुस्तक ‘ हरि अनंत हरि कथा अनंता’ श्री हरि के भक्ति भावना में आपको डूबों डालेगी। उन्होंने चार चार लाइनों के कुछ संदेश भी लिखे जो पुस्तक के रूप में तो प्रकाशित नहीं हो पाए लेकिन उसका ऑडियो संकलन उपलब्ध है। ये चार लाइनों वाली उनकी रचना जिंदगी के प्रति उनके अनुभवों का खजाना ही है।
आतिथ्य सत्कार की अद्भुत भावना
कर्मयोगी कुमार बिहारी पांडेय की आतिथ्य सत्कार की भावना भी अद्वितीय थी। उनके घर पर जानेवाला हर व्यक्तित्व उनकी आतिथ्य भावना का कायल बन जाता रहा। यह उनके बेहद संवेदनशील व्यक्तित्व की बानगी को भी उजागर करता है। हर किसी की मदद करना उनका बेहद प्रिय शगल होता था।
प्रकृति के प्रेमी
पर्यावरण और खेती किसानी के प्रति उनकी श्रद्धा भी अभिभूत कर जाती है। दोन के जे आर कॉन्वेंट के प्रांगण की हरियाली आनेवाले हर आगंतुक का मन मोह लेती रही है। गांव में अपने खेतों में फसल की निगरानी ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण की उनकी हसरत आज के जलवायु परिवर्तन से जूझ रही दुनिया के लिए नजीर ही है।
कर्मयोगी कुमार बिहारी पांडेय का पूरा जीवन कर्म और हुनर के प्रति स्नेह का संदेश ही रहा। उनके व्यक्तित्व की निर्मलता, सहजता, सरलता, संवेदनशीलता सदियों तक युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करती रहेगी। निश्चित तौर पर कर्म के प्रति स्नेह ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।
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