सशस्त्र बलों में महिलाओं की स्थिति क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ग्रुप कैप्टन शालिज़ा धामी का चयन पश्चिमी क्षेत्र (पाकिस्तान का सामना करने वाली) में एक फ्रंटलाइन लड़ाकू इकाई की कमान संभालने के लिये किया गया है।

  • वह पश्चिमी क्षेत्र में मिसाइल स्क्वाड्रन की कमान संभालने वाली भारतीय वायु सेना की पहली महिला अधिकारी होंगी।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस:

  • परिचय: यह प्रतिवर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है। इसमें शामिल है:
    • महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न
    • महिलाओं की समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाना
    • त्वरित लैंगिक समानता के लिये लॉबिंग
    • महिला-केंद्रित अनुदान आदि के लिये धन उगाहना।
  • संक्षिप्त इतिहास:
    • महिला दिवस पहली बार वर्ष 1911 में क्लारा ज़ेटकिन द्वारा मनाया गया था, जो एक जर्मन महिला थीं। इस उत्सव की शुरुआत पूरे यूरोप और उत्तरी अमेरिका में श्रमिक आंदोलन के दौरान हुई थी।
      • हालाँकि पहली बार वर्ष 1913 में यह समारोह 8 मार्च को मनाया गया था और तब से इसी दिन मनाया जाता है।
    • वर्ष 1975 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहली बार अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया।
      • दिसंबर 1977 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपनी ऐतिहासिक और राष्ट्रीय परंपराओं के अनुसार सदस्य देशों द्वारा वर्ष के किसी भी दिन मनाए जाने वाले महिला अधिकारों और अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिये संयुक्त राष्ट्र दिवस की घोषणा करते हुए एक प्रस्ताव अपनाया।
  • थीम:
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, 2023 की थीम “डिजिटऑल: लैंगिक समानता के लिये नवाचार और प्रौद्योगिकी” है और इसका उद्देश्य लैंगिक मुद्दों को प्रकाश में लाने में प्रौद्योगिकी के महत्त्व पर ज़ोर देना है।

सशस्त्र बलों में महिलाओं की स्थिति:

  • पृष्ठभूमि:
    • भारतीय वायु सेना में वर्ष 2016 में महिला फाइटर पायलटों को शामिल किया गया। पहले बैच में तीन महिला फाइटर पायलट शामिल थीं, जो वर्तमान में मिग-21, Su-30MKI और राफेल उड़ाती हैं।
    • महिला अधिकारियों ने इंजीनियरिंग, सिग्नल, आर्मी एयर डिफेंस, इंटेलिजेंस कॉर्प्स, आर्मी सर्विस कॉर्प्स, आर्मी ऑर्डनेंस कॉर्प्स और इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग सहित हथियारों और सेवाओं में विभिन्न सेना इकाइयों की कमान संभालनी शुरू कर दी है।
  • वर्तमान सांख्यिकी:
    • सशस्त्र बलों में 10,493 महिला अधिकारी कार्यरत हैं, जिनमें अधिकांश चिकित्सा सेवाओं में हैं।
    • भारतीय थल सेना तीनों सेवाओं में सबसे बड़ी होने के साथ ही इसमें 1,705 महिला अधिकारी (सबसे अधिक संख्या में) हैं, इसके बाद भारतीय वायु सेना में 1,640 महिला अधिकारी और भारतीय नौसेना में 559 महिला अधिकारी हैं।
    • जनवरी 2023 में सेना ने पहली बार सियाचिन ग्लेशियर पर एक महिला अधिकारी कैप्टन शिवा चौहान को तैनात किया है।
    • फरवरी 2023 में सेना ने पहली बार महिला अधिकारियों को चिकित्सा क्षेत्र से बाहर कमांड भूमिकाएँ सौंपना शुरू किया है।
      • उनमें से लगभग 50 को उत्तरी और पूर्वी कमान के तहत परिचालन क्षेत्रों में कमांड इकाइयों हेतु नियुक्त किया गया है, जो चीन के साथ भारत की सीमाओं की रखवाली करेंगी।
    • नौसेना ने महिला अधिकारियों को फ्रंटलाइन जहाज़ों पर भी शामिल करना शुरू कर दिया है, जो पहले महिला अधिकारियों हेतु नो-गो ज़ोन था।
      • इनमें से कई को सेना की संवेदनशील उत्तरी और पूर्वी कमान में तैनात किया गया है।

लैंगिक समानता से संबंधित चिंताएँ:

  • वैश्विक:
    • संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अनुसार, लैंगिक समानता एक दूर का सपना बनता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र महिला (UN Women) का अनुमान है कि अगर स्थिति ऐसी ही बनी रहीं तो 300 वर्ष का और अधिक समय लगेगा।
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, कानूनी बाधाओं ने 2.7 बिलियन महिलाओं को पुरुषों के समान नौकरी के अवसर प्राप्त करने से रोका है।
      • 2019 तक सांसद महिलाएँ 25% से कम थीं।
      • तीन में से एक महिला लिंग आधारित हिंसा का अनुभव करती है।
  • भारत के संदर्भ में:
    • सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आँकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2021 तक पुरुष श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 67.4% थी, जबकि महिला LFPR 9.4% था।
    • यहाँ तक कि अगर कोई विश्व बैंक से डेटा प्राप्त करता है, तो भारत की महिला श्रम बल भागीदारी दर लगभग 25% है, जबकि वैश्विक औसत 47% है।
    • वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक (जो लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति को मापता है) में भारत वर्ष 2022 में 135वें स्थान पर खिसक गया।
      • हालाँकि हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने अपनी भविष्य की रिपोर्ट में देशों को रैंक प्रदान करने के लिये पंचायत स्तर पर महिलाओं की भागीदारी को ध्यान में रखते हुए वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट के मानदंड में बदलाव करने पर सहमति व्यक्त की है। इससे वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति बेहतर होगी।
    • अंतर-संसदीय संघ (IPU), जिसमें भारत एक सदस्य है, द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार लोकसभा के कुल सदस्यों में से महिलाएँ केवल 14.44% का प्रतिनिधित्त्व करती हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा 2018 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत की 95% से अधिक कामकाज़ी महिलाएँ अनौपचारिक श्रमिक हैं, जो बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के गहन श्रम, न्यूनतम-वेतन, अत्यधिक अनिश्चित रोज़गार/परिस्थितियों में काम करती हैं।

सशस्त्र बलों में महिलाओं के समक्ष चुनौतियाँ:

  • सामाजिक चुनौतियाँ:
    • पुरुष अधिकारियों वाली संरचना, मुख्य रूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि के प्रचलित सामाजिक मानदंडों के साथ इकाइयों की कमान में महिला अधिकारियों को स्वीकार करने के लिये सैनिकों को अभी तक मानसिक रूप से प्रशिक्षित नहीं किया गया है।
    • शत्रु देश द्वारा युद्ध बंदी की स्थिति में पकड़ी गई महिला अधिकारी के प्रति समाज की कम स्वीकार्यता है।
  • शारीरिक चुनौतियाँ:
    • मातृत्त्व, बच्चों का पालन-पोषण और मनोवैज्ञानिक बाधाएँ महत्त्वपूर्ण कारक हैं जो सेना में महिला अधिकारियों की भर्ती को प्रभावित करते हैं।
    • गर्भावस्था, मातृत्त्व और विस्तारित घरेलू जिम्मेदारियों के कारण महिलाओं के लिये इन सेवा संबंधी जोखिमों को संभालना मुश्किल हो सकता है, खासकर जब पति और पत्नी दोनों सैन्यकर्मी हों।
  • पारिवारिक मुद्दे:

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