महिला दिवस के अवसर पर क्रिया के सहयोग से सहयोगी संस्था द्वारा फुटबॉल मैच का किया गया आयोजन 

महिला दिवस के अवसर पर क्रिया के सहयोग से सहयोगी संस्था द्वारा फुटबॉल मैच का किया गया आयोजन

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-समाज की नहीं बल्कि खेल के नियमों के आधार पर खेल में लड़कियों को किया जाता है शामिल: रजनी
-खेल के प्रति किशोरियों को किया जाता है प्रोत्साहित: कृष्णा

श्रीनारद मीडिया‚  पटना (बिहार)


समाज द्वारा बनाए गए लिंग भेद (जेंडर) के ढांचे में ढली छोटी उम्र की लड़कियां भी खेल का नाम सुनते ही समाज के द्वारा सुनाई गई आदर्श महिला की तरह व्यवहार करने लगती हैं और कई बार उन्हें ऐसा व्यवहार करने के लिए मजबूर भी किया जाता है। उक्त बातें सहयोगी संस्था की रजनी ने महिला दिवस के अवसर पर आयोजित किशोरियों द्वारा आयोजित फुटबॉल मैच प्रतियोगिता के आयोजन के दौरान कही।

उन्होंने यह भी कहा कि मैच की शुरुआत में दोनों टीम की खिलाड़ियों को दक्षिण की फ़िल्म बिगिल के बारे में बिस्तार पूर्वक बताया गया कि कैसे हजारों मुश्किलों के बावजूद भी खेलने का जज्बा रखती है और खेल के प्रति अपनी क्षमता का उत्कृष्ट प्रदर्शन करती है। हालांकि खेल के मैदान में अभी भी लैंगिक समानता हावी रहता है। इसी सोंच को बदलने के लिए क्रिया के सहयोग से सहयोगी संस्था द्वारा किशोरियों के साथ महिला दिवस के अवसर पर फुटबॉल मैच का आयोजन किया गया हैं। बिहटा प्रखंड अंतर्गत पैनल गांव के खेल मैदान में आयोजित स्थानीय प्रखंड एवं दानापुर प्रखंड की टीम ने भाग लिया हैं।

-समाज की नहीं बल्कि खेल के नियमों के आधार पर खेल में लड़कियों को किया जाता है शामिल: रजनी
क्रिया संस्था के सहयोग से आयोजित महिला दिवस के अवसर पर आयोजित फुटबॉल मैच प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इसके अलावा मैच के शुरुआती दौर आयोजक द्वारा खेल मैदान में दोनों टीमों की खिलाड़ियों को दक्षिण भारत की फ़िल्म बिगिल के बारे में बताया गया कि कैसे हजारों मुश्किलों के बावजूद भी खेलने का जज्बा रखती है और खेल कर बेहतर तरीके अपना प्रदर्शन दिखाती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जब कभी भी खेल को लड़कियों के संदर्भ में देखती हूं तो यह लगता है कि लड़कियों का खेलना जैसे सीधे तौर पर समाज की संकीर्ण पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती देने के बराबर होता है। क्योंकि खेल में लड़कियां समाज की नहीं बल्कि खेल के नियम पर चलती हैं। उनका पहनावा, व्यवहार और गतिविधि सब कुछ खेल के अनुसार होती है। उन पर न तो इज़्ज़त का बोझ होता है और ना हारने का डर होता है। इसीलिए लड़कियों को इस तरह के खेल से दूर रखा जाता है। शायद यही कारण है कि बचपन से लड़कियों को खेलने की बजाय घर के काम या फिर घर के काम को सिखाने वाले गुड्डे-गुड़ियों की शादी वाले खेल के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

 

-खेल के प्रति किशोरियों को किया जाता है प्रोत्साहित: कृष्णा
वहीं टीम के ट्रेनर कृष्णा ने बताया कि खेल एक बहुत ही सशक्त माध्यम है। जिससे किसी के अंदर स्वयं पर विश्वास बढ़ता है और लक्ष्य तय कर उसे प्राप्त करने का हौसला आता है। किशोरियों का यह तीसरा मैच है जिसमें खेल की विधियों में काफी सुधार आया है। हालांकि अभी भी कई तरह की कमियां होने के बाबजूद वह खेलने में पीछे नहीं रहती है। क्योंकि आयोजक द्वारा खेल को लेकर हर समय कुछ न कुछ नयापन सिखाया जाता हैं। इसी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किशोरियां को प्रोत्साहित किया जाता है। ताकि खेल को ले कर लोगो की सोंच बदलेगी और समुदाय को एक अच्छा संदेश भी मिलेगा।

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