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अमेरिका में क्यों बंद हो रहे हैं बैंक,भारत पर इसका क्या असर होगा? - श्रीनारद मीडिया

अमेरिका में क्यों बंद हो रहे हैं बैंक,भारत पर इसका क्या असर होगा?

अमेरिका में क्यों बंद हो रहे हैं बैंक, भारत पर इसका क्या असर होगा?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अमेरिका के बैंकिंग सेक्टर में गाहे-बगाहे आर्थिक वित्तिय संकट के बड़े-छोटे बवंडर उठते रहते हैं। जो उसकी अपनी बैंकिंग और वित्तिय व्यवस्था की कमजोरियों और अत्याधिक लालच में की गई धोखाधड़ी से पैदा होते हैं। लेकिन पूरी दुनिया की वित्तिय व्यवस्था को ध्वस्त करने पर आमदा हो जाते हैं। अमेरिका के बैंकिंग सेक्टर में एक बार फिर हलचल मच गई है। वजह है फाइनेंसियल क्राइसेस मतलब वित्तीय संकट।

बीते चार दिनों में अमेरिका के दो बड़े बैंकों पर ताला लग चुका है। पहले तो अमेरिका का सिलिकॉन वैली बैंक बंद हुआ, उसके बाद अब सिग्नेचर बैंक पर भी ताला लग गया है। अमेरिकी नियामक एजेंसियों ने अस्थायी रूप से इसे बंद कर दिया। अमेरिका के बैंकिंग इतिहास में तालेबंदी वावा ये तीसरा सबसे बड़ा बैंक है। सवाल ये है कि क्या इसका असर भारत पर भी पड़ेगा। क्या भारत के बाजार में भी उठा-पटक देखने को मिलेगी। अमेरिका के बैंकों के डूबने की कहानी क्या है?

सिलिकॉन वैली बैंक को क्यों हुआ भारी नुकसान

सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) पिछले कई दिनों से कैश की कमी से जूझ रहा था। ये बैंक स्टार्टअप और टेक कंपनियों को कर्ज देने के लिए जाना जाता था। दो दिन पहले बैंक ने ग्राहकों से पैसे नहीं निकालने की अपील की थी। बैंक बंद होने के ठीक 24 घंटे पहले एसवीबी के सीईओ ने ग्राहकों को भरोसा दिलाया कि पैसा एकदम सुरक्षित है। हालांकि बैंक बंद होने के बाद ग्राहक दुविधा में फंस गए कि उनका पैसा मिलेगा या नहीं।

बैंकिंग रेगुलेटर्स ने फेडरल डिपोजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (एफडीआईसी) को फिलहाल रिसीवर नियुक्त किया है। ये बैंक के वित्तीय कामों को देखेगा। बैंक में निवेशकों के 14 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की राशी जमा है। इनमें से 89 फीसदी राशी इंस्योर नहीं है। इन पैसों की जिम्मेदारी एफडीआईसी के पास है। एफडीआईसी के मुताबिक सिलिकॉन वैली बैंक की कुल संपत्ति 17 लाख करोड़ रुपये है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार एफडीआईसी ने एसवीबी की संपत्तियों और डिपॉजिट रखने के लिए एक नया नेशनल बैंक ऑफ सेंटा क्लारा बना लिया है।

क्यों आई ये नौबत 

माना जाता है कि अमेरिका में दुनिया का सबसे बेहतरीन स्टार्ट-अप इकोसिस्टम है। वहां सिलिकॉन वैली बैंक की बहुत पूछ थी। करीब चार दशकों से काम कर रहे इस बैंक के ग्राहक ज्यादातर टेक स्टार्ट-अप हैं। चीन और भारत के स्टार्ट-अप सेक्टर में भी यह बैंक फंडिंग कर रहा था। उनसे जमा भी लेता था। बैंक अपने कस्टमर्स का पैसा बॉण्ड्स में लगाता था।  हाल के समय में व्याज दरें बढ़ी हैं। बाजार में जो नए वॉण्ड आए, उन पर ज्यादा रिटर्न मिलने लगा। इससे बैंक के पुराने बॉण्ड्स में निवेश की वैल्य कम हो गह।

इसी दौर में सिलिकॉन वैली बैंक को अपना निवेश भुनाना पड़ गया। इसके कस्टमर ज्यादातर स्टार्ट-अप थे, जिन्हें पिछले एक साल के दौरान फंड की कमी हो रही थी। स्टार्ट- अप्स ने बैंक का रुख किया। बैंक ने शुरुआती डिमांड को तो किसी तरह मैनेज किया, लेकिन तहलका तव मचा, 2.3 अरब डॉलर के शेयरों की बिक्री की बात सामने आई।

अब सिग्नेचर बैंक पर लगा ताला

सिग्नेचर बैंक के पास क्रिप्टो करेंसी का स्टॉक था। क्रिप्टो करेंसी में जोखिम को देखते हुए इस बैंक को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया। इस बैंक के शेयरों में भी 10 मार्च को गिरावट देखने को मिली थी। सिग्नेचर बैंक न्यू यॉर्क में बड़ा वित्तीय संस्थान है। ये बड़ी-बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों को कर्ज देता है। नियामक एजेंसियों के कहन ेपर इस बैंक ने रविरवार को अपनी सर्विसेज बंद कर दी।

रेगुलेटर का कहना है कि अगर ये बैंक खुला रहता है तो वित्तीय व्यवस्था के लिए बड़ा खतरा हो सकता है। न्यू यार्क स्टटे के फाइनेंस सर्विस डिपार्टमेंट के अनुसार फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ने सिग्नेचर बैंक को अपने कंट्रोल में ले लिया है। इस बैंक के पास पिछले साल के अंत में 110.36अरब डॉलर की संपत्ति और 88.59 अरब डॉलर के डिपॉजिट थे। सिग्नेचर बैंक की बंदी का असर अमेरिका के दूसरे बैंकों पर ना पड़े इसे देखते हुए अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने इमरजेंसी बैठक बुलाई।

 क्या संकट करीब है

सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने इसकी तुलना लीमैन ब्रदर्स संकट से की। 2006 में इस वित्तीय संकट ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था, जिसकी शुरुआत लीमैन ब्रदर्स जैसे इन्वेस्टमेंट बैंक के डूबने से हुई। सिलिकॉन वैली बैंक का कद लीमैन ब्रदर्स जैसा नहीं माना जाता है, लेकिन 2008 के वित्तीय संकट के बाद यह सबसे बड़ी बैंक बंदी है।

भारत पर असर

भारत में करीब 20 स्टार्ट-अप सिलिकॉन वैली वैंक से जुड़े थे। बैंक 2003 से ही यहां के स्टार्ट-अप्स में निवेश कर रहा था। वित्तीय जानकार कह रहे हैं कि भारत में वैकिंग सिस्टम मजबूत है। उम्मीद है कि यह संकट 2008 जैसा नहीं होगा। यहां बैंकिंग सिस्टम में पैसे की कोई कमी नहीं है।

डूवे कर्ज की मात्रा पिछले एक दशक में सबसे कम है। माना जा रहा है कि शुक्रवार को बैंकिंग शेयरों की वैल्यू में जो गिरावट आई, वह आपाधापी में उठा कदम था। केंद्रीय आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने सिलिकन वैली बैंक पर अमेरिका सरकार की कार्रवाई के बारे में कहा, ‘इससे भारतीय स्टार्टअप पर मंडराते खतरे खत्म हो गए हैं। भारतीय स्टार्टअप के लिए इस संकट से सबक ये है कि भारतीय बैकिंग सिस्टम पर अधिक भरोसा करना है।

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