माता की सत्कर्मों से मैंने दूसरे जन्म को प्राप्त किया- विक्रांत पाण्डेय।
कल्पना शक्ति, धर्य और दृढ़ संकल्प माँ जानकी का मंत्र रहा।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
“कर्म प्रधान विश्व करि राखा
जो जस करै सो तस फल चाखा”।
ये उक्ति भले ही किसी और की हो लेकिन मेरी मां ने मुझे सिखाया है।
मां इस धरा की सबसे अनमोल कृति है,जिसके व्यक्तित्व में समरसता का पुट होता है, एक श्रद्धा की ज्योत जो आस्था से ओतप्रोत होती रही। वह सदैव कहा करती थी “यह बात याद रखना बेटा बेहतरीन दिनों के लिए बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है”।
मानव धरती पर आता है कुछ दिन कर्म करता है फिर अनंत में चला जाता है। लेकिन कुछ उसके कुछ कर्म यादों के धरोहर बन जाते हैं तो कुछ समाज के लिए सौगात। जी हां, ऐसा ही कुछ था माता जानकी के साथ।ऋषियों ने गृहस्थ जीवन को मानवता के विकास की उर्वरा शक्ति बताया है।यह गृहिणी के आदर्श मूल्यों पर आधारित है।
सदैव एक भावना में खोई एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने शारीरिक अक्षमता कि बेडियों को तोड़ डाला। एक ऐसी कर्मठ महिला जिसे जीवन के अध्यात्म उसके जटिल रहस्य को सरलता, सहजता और सूक्ष्मता से सुलझा डाला। अपने विचार, सादगी, मधुरता की त्रिवेणी से पूरे पाण्डेय परिवार को ओत-प्रोत करती रही।परिवार के लिए श्रमदान आपके जीवन का मूल मंत्र रहा। जीवन के उतार-चढ़ाव में आप समस्याओं में डूबी रही लेकिन सत्य के पतवार से अपने जीवन की नैया को खेने का काम किया, जो आज परिवार की समृद्धि के रूप में देखा जा सकता है।
कहते हैं मानसिक पटल पर जैसा चिंतन,विचार एवं संकल्प होता है,हमारा बाहरी जीवन भी उसी के अनुरूप ढल जाता है। इस भौतिक जीवन में व्यक्ति का आकलन क्या खोया? क्या पाया? को लेकर होती है। सच तो यह है कि धरती पर मात्र जीव की स्थिति बदलती है शिशु से किशोर,किशोर से युवा, युवा से प्रौढ,प्रौढ से वृद्ध और वृद्ध से विदाई। लेकिन वेद का अकाट्य वाक्य ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमंते तत्र देवता’ ही चरितार्थ है।
कोलकाता आवास पर जाने वाले बंधुवर आज भी आपकी सेवा भाव की गान करते नहीं थकते हैं। हम सभी परिवार वाले आपको ललन चाची के रूप में संबोधित करते रहे। कठिन से कठिन परिस्थितियों में सदैव मुस्कुराने वाला व्यक्तित्व सहजता की व्यापकता को बड़े फलक पर बिखेर जाता था। अपने जीवन के 74 बसंत देख चुकी मां जानकी पाण्डेय परिवार में बहू के रूप में 1965 में ललन चाचा के साथ ब्याह कर आयी। आपका पीहर सारण (छपरा) जिले में मसरख के निकट बजरहिया गांव में था। आप अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गई हैं। आपकी चार पुत्री और एक पुत्र हैं,जो अपने-अपने परिवार के साथ प्रसन्न है।
और अंतत:
“अचोद्यमानानि यथा, पुष्पाणि फलानि च|
स्वं कालं नातिवर्तन्ते, तथा कर्म पुरा कृतम्”
(अर्थात फल-फूल बिना किसी भी प्रेरणा के स्वत: समय पर प्रकट हो जाते हैं और समय का अतिक्रमण नहीं करते, उसी प्रकार पहले किए गए कर्म भी यथा समय ही अपने फल देते हैं।)
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