सार्वजनिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में क्या कदम उठाये जा रहे हैं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सार्वजनिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) की पूरी दुनिया में विकास एजेंडे के एक आवश्यक घटक के रूप में व्यापक रूप से चर्चा की जाती है। कोविड-19 के प्रकोप ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की आवश्यकता को उजागर किया है जहाँ दुनिया भर में स्वास्थ्य प्रणाली बुरी तरह विफल रही थी। UHC के महत्त्व को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र (UN) ने वर्ष 2017 में 12 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज दिवस (International Universal Health Coverage Day- UHC Day) के रूप में घोषित किया।
- संयुक्त राष्ट्र UHC को ‘‘हर किसी की, हर जगह वित्तीय कठिनाई के जोखिम के बिना आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच’’ के रूप में परिभाषित किया है। सतत् विकास लक्ष्य का लक्ष्य 3.8 (वित्तीय जोखिम संरक्षण, गुणवत्तापूर्ण आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच और सभी के लिये सुरक्षित, प्रभावी, गुणवत्तापूर्ण तथा सस्ती आवश्यक दवाओं एवं टीके तक पहुँच सहित सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करना शामिल है) भी सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने पर केंद्रित है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र में एक बड़ा प्रोत्साहन देना समय की आवश्यकता है, जिसके अभाव में स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र वर्तमान प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उप-केंद्रों के समान ही दयनीय स्थिति में पहुँच जाएँगे।
भारत में UHC को लागू करने की राह की चुनौतियाँ
- स्वास्थ्य बीमा तक असमान पहुँच:
- स्वास्थ्य बीमा का सबसे कम कवरेज उन परिवारों में देखा जाता है, जो निम्नतम समृद्धि वर्ग (Lowest Wealth Quintile) के हैं और वंचित तबके के हैं। यह स्वास्थ्य बीमा तक समान पहुँच की कमी को इंगित करता है।
- NFHS-5 के परिणाम भारत के लिये एक अलग तस्वीर पेश करते हैं, जहाँ निम्नतम समृद्धि वर्ग के परिवारों में बीमा कवरेज सबसे कम (36.1%) है।
- स्वास्थ्य बीमा का सबसे कम कवरेज उन परिवारों में देखा जाता है, जो निम्नतम समृद्धि वर्ग (Lowest Wealth Quintile) के हैं और वंचित तबके के हैं। यह स्वास्थ्य बीमा तक समान पहुँच की कमी को इंगित करता है।
- वित्तीय सुरक्षा का अभाव:
- जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम जैसी योजनाओं के अस्तित्व के बावजूद, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, प्रति प्रसव औसत निजी व्यय (average out-of-pocket expenditure per delivery) अभी भी उच्च है।
- भारत के विभिन्न राज्यों में निजी व्यय और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच के विषय में उल्लेखनीय विषमताएँ मौजूद हैं। कई उत्तर-पूर्वी राज्यों और बड़े राज्यों ने NFHS-4 और NFHS-5 के बीच अपने निजी व्यय में वृद्धि देखी है।
- NFHS की नवीनतम रिपोर्ट से पता चलता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान में प्रति प्रसव औसत निजी व्यय 2,916 रुपए है (शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में क्रमशः 3,385 रुपए और 2,770 रुपए)।
- स्वास्थ्य बीमा नीतियों में समावेशन और अपवर्जन की त्रुटियाँ:
- हाल के अध्ययनों से पता चला है कि पूर्व की स्वास्थ्य बीमा नीतियों की तरह प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJY) भी समावेशन और अपवर्जन की त्रुटियों (inclusion and exclusion errors) से मुक्त नहीं है, जिससे अपात्र परिवारों को शामिल किये जाने जबकि पात्र परिवारों को छोड़ दिये जाने का जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
- सेवाओं की उपलब्धता:
- हालाँकि PMJY के तहत सूचीबद्ध अस्पतालों में से 56% सार्वजनिक क्षेत्र के हैं, 40% लाभ के लिये कार्यरत निजी क्षेत्र के भी हैं, जो यह दर्शाता है कि सेवाओं की उपलब्धता उन क्षेत्रों में केंद्रित हो सकती है जो सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को लागू करने के पूर्व अनुभव रखते हैं।
- अपर्याप्त अवसंरचना:
- कई निम्न और मध्यम आय देशों में, उपयुक्त अवसंरचना की कमी UHC प्राप्त करने की राह में एक प्रमुख चुनौती है। इसमें अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएँ, अपर्याप्त उपकरण और अपर्याप्त चिकित्सा आपूर्ति शामिल हैं।
- सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHCs) में आवश्यकता की तुलना में 79.5 प्रतिशत विशेषज्ञों की कमी है।
- बदहाल स्वास्थ्य शिक्षा:
- स्वस्थ जीवन शैली और निवारक स्वास्थ्य उपायों के बारे में शिक्षा एवं जागरूकता की कमी से निवारण-योग्य रोगों और स्वास्थ्य-दशाओं में वृद्धि हो सकती है।
आगे की राह
- स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि करना:
- जीडीपी के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य व्यय को बढ़ाना समय की मांग है, जो देश में वर्तमान में अधिकांश विकासशील देशों की तुलना में कम है।
- भारत वर्तमान में अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3.2% स्वास्थ्य पर व्यय करता है। यह निम्न और मध्यम आय देशों (LMIC) के सकल घरेलू उत्पाद के औसत स्वास्थ्य व्यय (लगभग 5.2%) की तुलना में पर्याप्त कम है।
- प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को सुदृढ़ करना विकास का एक अन्य क्षेत्र है जिस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
- इस दृष्टिकोण से आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य एंड कल्याण केंद्रों की स्थापना का प्रस्ताव वर्ष 2018 में किया गया था, लेकिन इस संबंध में अभी तक आशाजनक प्रगति नज़र नहीं आई है।
- जीडीपी के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य व्यय को बढ़ाना समय की मांग है, जो देश में वर्तमान में अधिकांश विकासशील देशों की तुलना में कम है।
- स्वास्थ्य सेवा में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना:
- सरकार को स्वास्थ्य सेवा पर अपना व्यय बढ़ाना चाहिये और एक सुदृढ़ स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना के निर्माण के लिये अधिक संसाधन आवंटित करने चाहिये। इसमें अधिकाधिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों की स्थापना, स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या में वृद्धि करना और दवाओं एवं चिकित्सा उपकरणों की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना शामिल है।
- स्वास्थ्य बीमा कवरेज का विस्तार करना:
- सरकार को सभी नागरिकों के लिये स्वास्थ्य बीमा कवरेज का विस्तार करने की दिशा में कार्य करना चाहिये। इससे निजी व्यय को कम करने और स्वास्थ्य सेवा को अधिक वहनीय बनाने में मदद मिलेगी।
- प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता देना:
- UHC की प्राप्ति के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को सुदृढ़ करना महत्त्वपूर्ण है। इसमें प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच बढ़ाना, देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाना और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल कार्यबल को सुदृढ़ करना शामिल है।
- स्वास्थ्य देखभाल गुणवत्ता में सुधार लाना:
- स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता UHC का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। सरकार को गुणवत्ता मानकों को विकसित करने, इन मानकों का पालन सुनिश्चित कराने और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को प्रशिक्षण प्रदान करने के रूप में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के लिये निवेश करना चाहिये।
- स्वास्थ्य सूचना प्रणाली में निवेश करना:
- स्वास्थ्य सूचना प्रणालियाँ (Health information systems) स्वास्थ्य सेवाओं के योजना-निर्माण और निगरानी के लिये डेटा प्रदान कर UHC में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सरकार को सुदृढ़ स्वास्थ्य सूचना प्रणाली विकसित करने में निवेश करना चाहिये जो समयबद्ध रूप से और परिशुद्ध डेटा प्रदान कर सके।
- निवारक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देना:
- निवारक स्वास्थ्य देखभाल में निवेश करने से रोग के बोझ और स्वास्थ्य देखभाल की लागत को कम करने में मदद मिल सकती है। सरकार को टीकाकरण कार्यक्रम, स्वास्थ्य शिक्षा अभियान और जीवन शैली हस्तक्षेप जैसे निवारक स्वास्थ्य देखभाल उपायों को बढ़ावा देना चाहिये।
- साझेदारी बढ़ाना:
- UHC की प्राप्ति के लिये सरकार, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और नागरिक समाज के बीच सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता है। UHC के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये सरकार को स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और नागरिक समाज संगठनों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिये।
- यह भी पढ़े………………
- कौन हैं राघव चड्ढा? जिनके साथ डिनर डेट पर पहुंची परिणीति चोपड़ा, डेटिंग की अटकलें तेज
- लंदन स्थित उच्चायोग में भारतीय ध्वज को उतारने के बाद अब क्या होगा?
- क्या विश्व में 93 करोड़ लोग जल संकट से जूझ रहे है?