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विद्यार्थी बने रहना हमें विनम्र बनाता है,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

विद्यार्थी बने रहना हमें विनम्र बनाता है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पिछले दिनों मैं चिकित्सकों के एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में गया। दुनिया भर के चिकित्सक मौजूद थे। युवाओं से लेकर बुजुर्ग तक। आखिरी दिन वहां भारत के एक नामी-गिरामी चिकित्सक मिले, जो मुझे पढ़ा चुके हैं। कमाल के शिक्षक और वक्ता। मैंने उनका अभिवादन किया।

उन्होंने कहा कि मुझे एक आखिरी क्लास अटेंड कर भारत निकलना है। वह किसी जिज्ञासु विद्यार्थी की तरह क्लास में पीछे जाकर बैठ गए। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह शीर्ष चिकित्सक हैं, बहुत ज्ञान और अनुभव है, धन और यश है, उम्र में मुझसे कहीं बड़े हैं, फिर यह इस क्लास में क्या कर रहे हैं? यहां तक कि उन्होंने विद्यार्थियों की तरह खड़े होकर प्रश्न भी पूछा।

इसे उलट कर देखा जाए तो शायद इसका उत्तर मिल जाए। चूंकि वह इस उम्र में भी देश-विदेश जाकर खुद को अपडेट रखते हैं, अपनी शंकाओं का निवारण करने में हिचकिचाते नहीं, इसलिए इस मुकाम पर हैं। हालांकि मैं ऐसे लोगों को जानता हूं जो इन सम्मेलनों में दूसरों के खर्च पर घूमते हुए मौज करते हैं। मगर वे अमूमन उस शिखर पर नहीं होते, जिसकी मैं बात कर रहा हूं।

आज दरअसल देश-विदेश घूमने की जरूरत भी नहीं। लगभग हर विषय पर ऑनलाइन वेबिनार होते रहते हैं और उन्हें पूरा कर हमें प्रमाण-पत्र मिलता है। कंप्यूटर साइंस से जुड़े एक खासे अनुभवी व्यक्ति ने कोविड काल में घर बैठे अठारह कोर्स कर लिए। उनका जो भी क्षेत्र होगा, उसमें यथासंभव अपडेट हो गए।

मैं सन् सत्तावन के इतिहास पर दस्तावेज देख रहा था। उसमें कुछ फारसी लिपि में हैं, लेकिन मुझे यह लिपि तो आती नहीं। पिछले वर्ष जानकारी मिली कि एक अच्छे शिक्षक हैं जो छत्तीस कक्षाओं में ऑनलाइन लिपि-बोध करा सकते हैं। मैंने तीन महीने में यह लिपि थोड़ी-बहुत सीख ली।

दो वर्ष पूर्व पुणे के भंडारकर संस्थान ने कुल 18 कक्षाओं में चार वेदों का एक ऑनलाइन क्रैश कोर्स कराया था। जाहिर है कि संपूर्ण ज्ञान के लिए यह समय कम है, लेकिन इस विधा के ज्ञानी व्यक्तियों से सीखने का अवसर तो मिल जाता है।

ये मात्र चंद उदाहरण हैं कि आज के समय यह नहीं कह सकते कि शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं। गांव में बैठकर भी देश-विदेश के शिक्षकों से सीखा जा सकता है। उसमें समय और धन का निवेश अवश्य हो सकता है, लेकिन हर वर्ष इतनी बचत का प्रयास करना चाहिए कि कोई एक कोर्स कर लें।

किसी भी उम्र में। संभव हो तो अपने क्षेत्र की पत्रिका की सदस्यता लें। कुछ देशों में सरकारें वर्ष में एक कोर्स की फीस पर आयकर छूट देती हैं। कुछ कंपनियां साल में एक कोर्स की छुट्टी देती हैं। यह न सोचें कि डिग्री और नौकरी मिलने के बाद पढ़-सीख कर क्या होगा। यह पता करते रहें कि आपके क्षेत्र में कौन-सी नई चीज हो रही है।

महत्वपूर्ण यह है कि विद्यार्थी बने रहना हमें विनम्र बनाता है। हमें बिना किसी झिझक के क्लास में पीछे जाकर बैठ जाना चाहिए।

विद्यार्थी बने रहना हमें विनम्र बनाता है। यह बोध कराता है कि सफलता के किसी भी पड़ाव पर हम सर्वज्ञ नहीं हो सकते। हमें बिना किसी झिझक के क्लास में पीछे जाकर बैठ जाना चाहिए।

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