Chandrashekhar JNU:चंदू आप बहुत याद आते हो!
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार के सीवान में प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद चंद्रशेखर ने सैनिक स्कूल तिलैया से पढ़ाई की और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के लिए चयनित हुए। चंद्रशेखर ने अपनी मां को पत्र लिखकर कहा कि वे एक्टिविस्ट बनना चाहते हैं और फिर एनडीए छोड़कर उन्होंने पटना विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया।
चंद्रशेखर कॉलेज के शुरुआती दिनों से ही राजनीति में सक्रिय हो गए और सीपीआई की छात्र शाखा एआईएसएफ (ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडेरेशन) से जुड़ गए। लेकिन जल्द ही उनका सीपीआई की राजनीति से मोह भंग हो गया और वो भाकपा (माले) से जुड़ गए।
20 सितंबर, 1964 को बिहार के सीवान ज़िले में जन्मे चंदू आठ बरस के थे जब उनके पिता का देहांत हो गया. सैनिक स्कूल तिलैया से इंटरमीडियट तक की शिक्षा के बाद वे एनडीए प्रशिक्षण के लिए चुने गए. लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा और दो साल बाद वापस आ गए. इसके बाद उनका वामपंथी राजनीति से जुड़ाव हुआ और एआईएसएफ के राज्य उपाध्यक्ष के पद तक पहुंचे.
चंदू के बारे में एक मशहूर घटना है. 1993 में छात्रसंघ के चुनाव के दौरान छात्रों से संवाद में किसी ने उनसे पूछा, ‘क्या आप किसी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के लिए चुनाव लड़ रहे हैं?’ इसके जवाब में उन्होंने कहा था, ‘हां, मेरी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा है- भगत सिंह की तरह जीवन, चे ग्वेरा की तरह मौत.’ उनके दोस्त गर्व से कहते हैं कि चंदू ने अपना वायदा पूरा किया.
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल ने दिल्ली से राहत राशि के रूप में एक लाख रुपये का चेक भेजा तो चंदू की मां ने यह कहकर लौटा दिया कि ‘बेटे की शहादत के एवज में मैं कोई भी राशि लेना अपमान समझती हूं… मैं उन्हें लानतें भेज रही हूं जिन्होंने मेरे बेटे की जान की क़ीमत लगाई. एक ऐसी मां के लिए, जिसका इतना बड़ा बेटा मार दिया गया हो और जो यह भी जानती हो कि उसका क़ातिल कौन है, एकमात्र काम हो सकता है, वह यह है कि क़ातिल को सज़ा मिले. मेरा मन तभी शांत होगा महोदय. मेरी एक ही क़ीमत है, एक ही मांग है कि अपने दुलारे शहाबुद्दीन को क़िले से बाहर करो या तो उसे फांसी दो या फिर लोगों को यह हक़ दो कि उसे गोली से उड़ा दें.’
चंदू की हत्या का समय वह समय था जब दुनिया में वामपंथ का सबसे मज़बूत क़िला सोवियत रूस ढह चुका था. दुनिया तेज़ी से पूंजीवाद की ओर बढ़ रही थी. उदारीकरण भारत की दहलीज लांघकर अपने को स्थापित कर चुका था. तमाम धुर वामपंथी आवाज़ें मार्क्सवाद के ख़ात्मे की बात करने लगी थीं.
राज्य सरकार ने चंद्रशेखर हत्याकांड के मामले में 28 जुलाई 1997 को सीबीआई जांच की सिफारिश की थी. इसके बाद भारत सरकार ने 31 जुलाई को 1997 को मामले को केंद्रीय जांच एजेंसी को सौंप दिया था. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण की गयी इस हत्या में छह आरोपी थे.
उस समय बिहार में धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय और पिछड़ों के मसीहा लालू प्रसाद यादव की सरकार थी. चंदू की हत्या पर जेएनयू के छात्र भड़क उठे. नाराज़ छात्रों का हुजूम लालू यादव से जवाब मांगने दिल्ली के बिहार भवन पहुंचा तो वहां भी पुलिस की गोलियों से उनका स्वागत हुआ. चंदू की हत्या का आरोप लालू यादव की पार्टी के सांसद शहाबुद्दीन पर था और प्रदर्शनकारी छात्रों पर गोली चलाने का आरोप पुलिस के साथ-साथ साधु यादव पर.
आपको इतनी क़ीमत चुकानी तो पड़ेगी!
कांटों से अपनी राह सजानी तो पड़ेगी!!
ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जीने के लिए
अपनी जान की बाजी लगानी तो पड़ेगी!!
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