भारत के ऊर्जा संकट से निपटने के लिये प्रमुख चुनौतियां क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
वित्त वर्ष 2023 में भारत का ऊर्जा आयात 43.6% बढ़ने का अनुमान है, जो देश के आयात व्यय को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगा। कोयला, कोक, कच्चा तेल, LNG एवं LPG सहित विभिन्न संसाधनों का ऊर्जा आयात भारत के माल आयात बिल के एक महत्त्वपूर्ण भाग का निर्माण करता है और इसके 36.6% का प्रतिनिधित्व करता है।
- यदि वर्तमान आयात वृद्धि दर बनी रहती है तो ऊर्जा आयात बिल जल्द ही शेष सभी व्यापारिक आयातों को पार कर जाएगा, जहाँ विभिन्न अनुमान प्रकट करते हैं कि यह दिसंबर 2026 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो जाएगा। यह एक चिंताजनक संभावना है। इसके साथ ही, स्वच्छ ऊर्जा के लिये आवश्यक वस्तुओं (जैसे फोटोवोल्टिक सेल और लिथियम आयन बैटरी) का आयात मूल्य परिदृश्य को और गंभीर बनाएगा।
- हालाँकि, भारत स्थानीय तेल क्षेत्रों की खोज को बढ़ावा देकर और कोयले के उत्पादन को बढ़ाकर अपने संकटजनक आयात बिल में कटौती कर सकता है।
ऊर्जा स्रोतों की कीमत में वृद्धि के पीछे के प्रमुख कारण
- तेल आपूर्ति शृंखला में व्यवधान:
- कोविड-19 महामारी और भू-राजनीतिक तनाव (यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद उस पर अधिरोपित अमेरिकी प्रतिबंध) ने वैश्विक तेल आपूर्ति शृंखला में व्यवधान उत्पन्न किया है, जिससे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की मांग बढ़ गई है।
- यूएस-सऊदी अरब के 1970 के दशक के सौदे का कमज़ोर होना:
- संयुक्त राज्य अमेरिका और सऊदी अरब 1970 के दशक में एक समझौते पर पहुँचे थे जिसने अमेरिका को सुरक्षा गारंटी देने के बदले सऊदी तेल पर भरोसा करने का अवसर दिया था।
- लेकिन अमेरिका अब ऊर्जा स्वतंत्रता की ओर आगे बढ़ रहा है और सऊदी तेल पर अपनी निर्भरता कम कर रहा है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका और सऊदी अरब 1970 के दशक में एक समझौते पर पहुँचे थे जिसने अमेरिका को सुरक्षा गारंटी देने के बदले सऊदी तेल पर भरोसा करने का अवसर दिया था।
- विकसित देशों में उच्च मुद्रास्फीति:
- विकसित देशों में उच्च मुद्रास्फीति की स्थिति निश्चित रूप से तेल, कोयले और अन्य ऊर्जा स्रोतों की कीमतों में वृद्धि का कारण बन सकती है।
- यह भारत सहित पूरी दुनिया में तेल की कीमत में वृद्धि को प्रेरित कर सकता है और इसकी क्रय शक्ति को प्रभावित कर सकता है।
- चीन को अलग रखते हुए वैकल्पिक आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण का अमेरिकी प्रयास:
- चीन को अलग रखते हुए वैकल्पिक आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण का अमेरिकी प्रयास ऊर्जा स्रोतों के मूल्य में वृद्धि का कारण बन सकता है क्योंकि चीन दुर्लभ मृदा तत्वों (rare earth elements) जैसे कई महत्त्वपूर्ण खनिजों एवं धातुओं का एक प्रमुख उत्पादक एवं निर्यातक है।
- चीन ऊर्जा का, विशेष रूप से कोयला एवं तेल जैसे जीवाश्म ईंधन का, एक महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता भी है।
भारत के ऊर्जा संकट से निपटने की राह की प्रमुख चुनौतियाँ
- सीमित ऊर्जा संसाधन:
- भारत के पास कोयला, तेल और गैस जैसे सीमित ऊर्जा संसाधन ही मौजूद हैं और यह अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों की पूर्ति के लिये आयात पर निर्भर है।
- वित्त वर्ष 2023 के लिये पेट्रोलियम आयात का अनुमानित मूल्य 210 बिलियन अमेरिकी डॉलर आकलित किया गया है। इसमें कच्चे तेल के लिये 163 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आयात मूल्य और LNG एवं LPG के लिये क्रमशः 17.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर एवं 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आयात मूल्य शामिल है। पिछले वित्त वर्ष की तुलना में कच्चे तेल के आयात में 53% की वृद्धि हुई है।
- देश के कोयला भंडार निम्न गुणवत्ता के हैं और उनके निष्कर्षण एवं उपयोग से महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय चिंताएँ संबद्ध हैं।
- परिणामस्वरूप, भारत ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश कर रहा है, जैसे कि सौर, पवन और जलविद्युत।
- भारत के पास कोयला, तेल और गैस जैसे सीमित ऊर्जा संसाधन ही मौजूद हैं और यह अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों की पूर्ति के लिये आयात पर निर्भर है।
- कमज़ोर ऊर्जा अवसंरचना:
- बिजली की बढ़ती मांग को पूरा कर सकने के लिये भारत की ऊर्जा अवसंरचना अपर्याप्त है। यह बार-बार बिजली जाने और लंबे समय तक बिजली नहीं रहने (ब्लैकआउट) की समस्या से ग्रस्त है।
- सोलर फार्म की संख्या में तेज़ी से वृद्धि ने भारत को दिन के समय के आपूर्ति अंतराल को कम करने में मदद की है, लेकिन कोयला-संचालित बिजली और जलविद्युत क्षमता की कमी से लाखों लोगों के लिये रात के समय वृहत रूप से बिजली की कटौती का जोखिम उत्पन्न होता है।
- अप्रैल, 2023 में ‘गैर-सौर घंटों’ (non-solar hours) में भारत की बिजली उपलब्धता ‘पीक डिमांड’ की तुलना में 1.7% तक कम रहने का अनुमान है।
- बिजली की बढ़ती मांग को पूरा कर सकने के लिये भारत की ऊर्जा अवसंरचना अपर्याप्त है। यह बार-बार बिजली जाने और लंबे समय तक बिजली नहीं रहने (ब्लैकआउट) की समस्या से ग्रस्त है।
कमज़ोर ऊर्जा अवसंरचना देश के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को भी प्रभावित कर रही है, जहाँ बहुत से लोगों के पास बिजली की सुविधा नहीं है।
अपर्याप्त निवेश:
भारत के ऊर्जा क्षेत्र को अपने बुनियादी ढाँचे में सुधार और अपनी ऊर्जा क्षमता का विस्तार करने के लिये वृहत निवेश की आवश्यकता है।
लेकिन सरकार और निजी क्षेत्र ऊर्जा क्षेत्र में पर्याप्त निवेश नहीं कर रहे हैं।
भारत की निम्न प्रति व्यक्ति आय और उच्च गरीबी दर भी लोगों के लिये स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का वहन कर सकना कठिन बनाती है।
राजनीतिक और नियामक बाधाएँ:
भारत का ऊर्जा क्षेत्र अत्यधिक विनियमित या नियंत्रित है और ऊर्जा क्षेत्र में सुधार की राह में उल्लेखनीय राजनीतिक बाधाएँ मौजूद हैं।
- भारत नवीकरणीय ऊर्जा नीतियों को अपनाने में सुस्त रहा है और विभिन्न सरकारी एजेंसियों एवं मंत्रालयों के बीच समन्वय की कमी है।
- जलवायु परिवर्तन:
- भारत विश्व के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों में से एक है और इसका ऊर्जा क्षेत्र इन उत्सर्जनों का एक प्रमुख योगदानकर्ता है।
- जलवायु परिवर्तन देश की ऊर्जा अवसंरचना को भी प्रभावित कर रहा है, क्योंकि और सूखे जैसी चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति एवं त्वरा बढ़ती जा रही है।
आगे की राह
- घरेलू अन्वेषण और उत्पादन में निवेश करना:
- भारत को स्थानीय उत्पादन बढ़ाने के लिये अपने विकल्पों का मूल्यांकन करना चाहिये, जिसमें द्वितीय श्रेणी के अवसादी बेसिन/अपतटीय क्षेत्र (Category II sedimentary basins) विकसित करना शामिल है, जहाँ हाइड्रोकार्बन भंडार मौजूद हैं लेकिन उनका अभी तक वाणिज्यिक उत्पादन शुरू नहीं हुआ है। सरकार को इन क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने के लिये प्रोत्साहन (incentives) प्रदान करना चाहिये।
- भारत में 26 अवसादी बेसिन हैं जिन्हें चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
- श्रेणी I (7 बेसिन): स्थापित वाणिज्यिक उत्पादन
- श्रेणी II (3 बेसिन): हाइड्रोकार्बन का ज्ञात संचय लेकिन अभी तक कोई व्यावसायिक उत्पादन शुरू नहीं हुआ है।
- श्रेणी III (6 बेसिन): अनुमानित हाइड्रोकार्बन भंडार, जहाँ तेल होने का आकलन है
- श्रेणी IV (10 बेसिन): दुनिया भर में इसी तरह के बेसिनों और गहन-जल आरक्षित क्षेत्रों के अनुरूप यहाँ अनिश्चित क्षमता मौजूद हो सकती है।
- भारत में 26 अवसादी बेसिन हैं जिन्हें चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
- भारत को स्थानीय उत्पादन बढ़ाने के लिये अपने विकल्पों का मूल्यांकन करना चाहिये, जिसमें द्वितीय श्रेणी के अवसादी बेसिन/अपतटीय क्षेत्र (Category II sedimentary basins) विकसित करना शामिल है, जहाँ हाइड्रोकार्बन भंडार मौजूद हैं लेकिन उनका अभी तक वाणिज्यिक उत्पादन शुरू नहीं हुआ है। सरकार को इन क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने के लिये प्रोत्साहन (incentives) प्रदान करना चाहिये।
- कोयले की गुणवत्ता में सुधार लाना:
- भारत को आयात पर निर्भरता कम करने के लिये घरेलू कोयले की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान देना चाहिये। इसे कोयले के कैलोरी मान को बढ़ाने और राख की मात्रा को कम करने के लिये प्रौद्योगिकी में निवेश करके प्राप्त किया जा सकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहित करना:
- भारत में सौर, पवन और जलविद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की अपार क्षमता मौजूद है।
- सरकार को प्रोत्साहन राशि और सब्सिडी के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के विकास को प्रेरित करना चाहिये।
- कार्बन मूल्य निर्धारण (Carbon pricing) कार्बन उत्सर्जन पर एक मूल्य अधिरोपित कर नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है।
- ऊर्जा अवसंरचना का विकास करना:
- भारत को ऊर्जा के कुशल संचरण और वितरण को सुनिश्चित करने के लिये अपनी ऊर्जा अवसंरचना के विकास में निवेश करना चाहिये।
- यह मौजूदा अवसंरचना के उन्नयन और नए बिजली संयंत्रों, पाइपलाइनों और ट्रांसमिशन लाइनों के निर्माण के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
- कोयले के आयात में कमी लाना:
- भारत को कोयले के आयात को कम करने पर भी ध्यान देना चाहिये। कोकिंग कोल के आयात को कम करने की पर्याप्त गुंजाइश नहीं है क्योंकि भारत के पास उच्च गुणवत्तायुक्त भंडार नहीं हैं, लेकिन थर्मल कोयले के आयात को प्रबंधित किया जा सकता है।
- कोयले के आयात में मुख्य रूप से नए बिजली संयंत्रों की मांग के कारण वृद्धि हुई है जो केवल उच्च श्रेणी के आयातित कोयले का उपयोग करते हैं।
- भारतीय कोयले की निम्न गुणवत्ता (30-40% की उच्च राख सामग्री), कोल इंडिया लिमिटेड की उत्पादन बढ़ाने और कोयले के कैलोरी मान को बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकने की अक्षमता तथा देश के भीतर परिवहन बाधाओं के कारण आयात की आवश्यकता उत्पन्न हुई है।
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