अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में इंटरनेट कनेक्टिविटी कैसा है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

चेन्नई-अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (Chennai-Andaman & Nicobar Islands- CANI) केबल का उद्घाटन किये जाने के बाद से पोर्ट ब्लेयर में इंटरनेट कनेक्टिविटी में महत्त्वपूर्ण सुधार देखा गया है।

  • हालाँकि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (ANI) वर्तमान में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसके लिये समावेशिता एवं स्थिरता की दिशा में ANI की व्यापक और स्थायी प्रगति सुनिश्चित करने के लिये एक उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है।

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में इंटरनेट कनेक्टिविटी में हाल के विकास:

  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा चेन्नई के बीच समुद्र के नीचे स्थापित केबल, जिसे CANI कहा जाता है, ने इस केंद्रशासित प्रदेश को विश्व के सभी स्थानों को इंटरनेट के माध्यम से जोड़ा है, जिससे दूरसंचार ऑपरेटरों का ध्यान इस तरफ आकर्षित हुआ है।
  • यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (USOF) ने जानकारी दी कि टेलीकॉम ऑपरेटरों ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिये 70 GBPS से अधिक बैंडविड्थ खरीदा है।
  • खरीदे गए बैंडविड्थ में एयरटेल और बीएसएनएल का सबसे बड़ा हिस्सा है, जिसमें दोनों दूरसंचार कंपनियों को 60 GBPS आवंटित किये गए हैं। Airtel ने पोर्ट ब्लेयर में 5G सेवाएँ शुरू कर दी हैं।

भारत के लिये अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का महत्त्व:

  • परिचय: 
    • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पूर्वी छोर पर स्थित द्वीपों का एक समूह है।
    • वे भारत के केंद्रशासित प्रदेश का हिस्सा हैं और भारतीय मुख्य भूमि से लगभग 1,400 किमी. दूर स्थित हैं।
  • महत्त्व: 
    • जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह 5 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों– ग्रेट अंडमानी, जारवास, ओंगेस, शोम्पेन एवं उत्तरी सेंटिनली का आवास स्थल है
    • सामरिक क्षेत्र: वे भारत को समुद्री संचार लाइनों (Sea Lines of Communication – SLOCs) और मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से हिंद एवं प्रशांत महासागरों के बीच आवागमन के महत्त्वपूर्ण यातायात मार्ग के चलते सामरिक स्थिति प्रदान करते हैं।
    • समुद्री भागीदारों के लिये महत्त्वपूर्ण स्थान: भारत के प्रमुख समुद्री साझेदार जैसे- अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया एवं फ्राँस अंडमान और निकोबार की रणनीतिक स्थिति को स्वीकार करते हैं, साथ ही महत्त्व प्रदान करते हैं।
      • ये द्वीप न केवल भारत को एक महत्त्वपूर्ण समुद्री स्थान की स्थिति प्रदान करते हैं बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र की सामरिक एवं सैन्य गतिशीलता को आकार देने की भी महत्त्वपूर्ण क्षमता रखते हैं।
  • ANI हेतु हाल की विकास योजनाएँ:
    • जापान की विदेशी विकास सहायता: जापान ने वर्ष 2021 में ANI  विकास परियोजनाओं हेतु 265 करोड़ अमेरिकी डॉलर की अनुदान सहायता को मंज़ूरी दी।
    • ग्रेट निकोबार हेतु नीति आयोग की परियोजना: इसमें अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, हवाई अड्डा, विद्युत संयंत्र और एक टाउनशिप शामिल हैं।
    • लिटिल अंडमान हेतु नीति आयोग का प्रस्ताव: इसने सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग के साथ प्रतिस्पर्द्धा हेतु तटीय हरित शहर के विकास का प्रस्ताव रखा है।

ANI से संबद्ध चुनौतियाँ: 

  • संपोषणीय विकास: अंडमान और निकोबार प्रमुख पर्यटक आकर्षण का केंद्र है, परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में कई विकास परियोजनाएँ शुरू की जा रही हैं।
    • जहाँ एक तरफ यह द्वीपों के स्वरूप को काफी हद तक बदल देगा, वहीं इससे पारिस्थितिक स्थिरता को भी नुकसान होगा।
    • विकासात्मक गतिविधियाँ क्षेत्र में प्रवाल भित्तियों को भी प्रभावित कर रही हैं, जो पहले से ही महासागरों के उष्मण के कारण खतरे में हैं। प्रवाल भित्तियों का अत्यधिक पारिस्थितिक महत्त्व है।
    • पर्यावरणविदों ने विकास परियोजना के परिणामस्वरूप द्वीप पर मैंग्रोव के नुकसान को भी चिह्नित किया है।
  • भूगर्भीय अस्थिरता: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भूकंप की दृष्टि से अत्यधिक सक्रिय क्षेत्र में अवस्थित हैं। इसके कारण इस क्षेत्र में कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने की आशंका बनी रहती है।
  • उदाहरण के लिये वर्ष 2004 में आए एक भूकंप और सुनामी ने इस द्वीप शृंखला के बड़े हिस्से को क्षतिग्रस्त कर दिया।
  • निकोबार और कार निकोबार द्वीप (निकोबार का सबसे उत्तरी द्वीप) अपनी आबादी का लगभग पाँचवाँ हिस्सा और लगभग 90% मैंग्रोव खो चुके हैं।
  • भू-राजनीतिक अस्थिरता: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह हिंद-प्रशांत भू-राजनीतिक क्षेत्र का हिस्सा है जहाँ चीन सक्रिय रूप से अपने प्रभाव का विस्तार करने का प्रयास कर रहा है तथा यह संभावित रूप से भारत की नीली अर्थव्यवस्था एवं समुद्री सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न कर रहा है।
  • जनजातीय क्षेत्र में अतिक्रमण: स्थानीय सरकार से उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्राप्त होने के बावजूद PVTG को अभी भी अपने क्षेत्रों में विकास अतिक्रमण और कुशल पुनर्वास कार्यक्रमों की कमी के परिणामस्वरूप कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह

  • सतत् द्वीप विकास ढाँचा: अंडमान और निकोबार में बुनियादी ढाँचा और विकासात्मक परियोजनाएँ निस्संदेह भारत की सामरिक और समुद्री क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता कर सकती हैं, लेकिन यह विकास अंडमान और निकोबार के पारिस्थितिकी तंत्र के दोहन की कीमत पर नहीं होना चाहिये।
  • इस क्षेत्र में किसी भी विकास गतिविधि से पहले पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव आकलन अनिवार्य किया जाना चाहिये।
  • एक सतत् द्वीप विकास ढाँचा न केवल अंडमान और निकोबार के लिये महत्त्वपूर्ण है बल्कि अन्य भारतीय द्वीपों पर भी लागू होना चाहिये।
  • विकासशील द्वीप सुरक्षा प्रारूप: भारत को समुद्री सुरक्षा में क्षमता निर्माण में निवेश करने और अनुसंधान को प्रोत्साहित करने, एक द्वीप सुरक्षा मॉडल विकसित करने और घुसपैठ की निगरानी करने के लिये अपनी नौसेना को नवीनतम तकनीक से लैस करने की आवश्यकता है।
  • लिंकिंग परियोजनाओं को पुनर्जीवित करना: सबमरीन ऑप्टिकल फाइबर केबल (OFC) के माध्यम से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को मुख्य भूमि से जोड़ने की योजना को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
    • सबमरीन केबल अंडमान और निकोबार को सस्ती एवं बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करने तथा डिजिटल इंडिया के सभी लाभों (विशेष रूप से ऑनलाइन शिक्षा, टेलीमेडिसिन, बैंकिंग एवं ऑनलाइन ट्रेडिंग में सुधार लाने) को प्राप्त करने में भी मदद करेगी।
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