अतीक अहमद:17 साल की उम्र में हत्या में नाम, 44 साल बाद पहली सजा
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
प्रयागराज में अपनी माफियागीरी और सियासी पारी शुरू करने वाले अतीक अहमद का अंत भी उसी प्रयागराज में हो गया। अतीक पिछले दो हफ्ते से हर दिन मीडिया के सामने यह बात दोहराता रहा कि उसे मार दिया जाएगा। उसके भाई अशरफ ने 23 मार्च को बरेली जेल में कहा था कि 2 हफ्ते के अंदर मुझे जेल से बाहर निकालकर लाया जाएगा और मार दिया जाएगा। दोनों भाइयों का डर सच साबित हुआ और शनिवार रात 10:30 बजे मार दिया गया। उस वक्त मीडिया के कैमरे ऑन थे।
अतीक और अशरफ दोनों ही माफिया से बाहुबली नेता बने थे। लेकिन, पिछले 2 महीने माफिया परिवार के लिए बेहद खराब रहे। उमेश पाल हत्याकांड में नाम आया। अतीक को 44 साल में पहली बार सजा मिली। बेटे का एनकाउंटर हुआ। अंतिम समय पर उसकी लाश भी नहीं देख सका। यहां तक कि बेटे के जनाजे में भी नहीं जा पाया। अब 24 घंटे पहले जिस कसारी-मशारी कब्रिस्तान में बेटे को दफनाया गया, उसी में अतीक-अशरफ भी दफन होंगे।
17 साल की उम्र में अतीक पर दर्ज हुआ पहला केस
साल 1962…प्रयागराज का चकिया गांव। तांगा चलाने वाले फिरोज अहमद के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा अतीक अहमद। फिरोज घर में अकेले कमाने वाले थे। जैसे-तैसे पैसे का इंतजाम कर अतीक को पढ़ाते, लेकिन उसका पढ़ाई में एकदम मन नहीं लगता था। नतीजा यह हुआ कि वो 10वीं में फेल हो गया।
इसके बाद उसने पढ़ाई पूरी तरह छोड़ दी। अब उसे जल्द से जल्द अमीर बनने का चस्का लग गया। लेकिन, पैसा कमाने के लिए उसने मेहनत करना नहीं बल्कि एक शॉर्टकट को चुना। लूट और अपहरण करके पैसा वसूलने का शॉर्टकट अपनाया। वो रंगदारी वसूलने के लिए लोगों की हत्या तक को अंजाम देने लगा। साल 1979 में अतीक पर पहली बार एक हत्या का केस दर्ज हुआ। यहीं से शुरू हुई अतीक के क्रिमिनल बनने की कहानी।
एक तरफ अतीक क्राइम की दुनिया में अपने कदम जमा रहा था, वहीं दूसरी तरफ शहर में चांद बाबा नाम के गुंडे का दबदबा बढ़ता जा रहा था। इसका खौफ ऐसा था कि चौक और रानी मंडी में पुलिस तक जाने से डरती थी। पुलिस और नेताओं समेत सभी उसके खौफ से छुटकारा पाना चाहते थे। अतीक ने इसी डर का फायदा उठाकर पुलिस और स्थानीय नेताओं से सांठ-गांठ बना ली।
अतीक को आपराधिक दुनिया में पुलिस और स्थानीय नेताओं का पूरा साथ मिलता। 7 साल बीते, अब अतीक चांद बाबा से ज्यादा खतरनाक हो चुका था। वो लगातार लूट, अपहरण और हत्या जैसी वारदातों को अंजाम देता। अतीक के गुर्गों का नेटवर्क बढ़ने लगा। अब अतीक पुलिस के लिए भी नासूर बन गया। जिस पुलिस ने उसे अब तक शह दे रखी थी वही उसे जगह-जगह तलाशने में जुट गई। आखिरकार पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया।
गिरफ्तारी के बाद लोगों को लगा कि अतीक का खेल खत्म हो गया, लेकिन ऐसा था नहीं। उन दिनों प्रदेश में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी और केंद्र में राजीव गांधी की। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, “अतीक की गिरफ्तारी के बाद उसे छुड़ाने के लिए दिल्ली से एक फोन आया।” एक साल बाद अतीक जेल से बाहर आ गया।
छोटा भाई अशरफ भी अतीक अहमद के नक्शे-कदम पर आगे बढ़ा
अतीक को जेल से बाहर आते ही समझ आ गया कि अब जेल से बचने के लिए राजनीति ही उसके काम आ सकती है। इसलिए उसने राजनीति में अपने कदम रखने का तय किया। साल 1989 तक अतीक पर करीब 20 मामले दर्ज हो चुके थे। उसका प्रयागराज के पश्चिमी हिस्से पर दबदबा हो गया। 1989 में उसने पहली बार विधायकी लड़ने का फैसला किया। किसी पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय खड़ा हो गया।
अतीक के सामने कांग्रेस के गोपाल दास यादव प्रत्याशी थे। साथ ही अतीक का बढ़ता दबदबा चांद बाबा को भी अखरने लगा। इसलिए वो भी अतीक को हराने के लिए चुनाव में खड़ा हो गया। चुनाव हुआ। नतीजे आए तो अतीक को 25,906 वोट मिले। अतीक 8,102 वोट से जीतकर पहली बार विधायक बन गया।
अतीक धीरे-धीरे राजनीति की आड़ में अपनी माफियागिरी चलाता रहा। अब उसने अपने छोटे भाई अशरफ को भी इसी काम में शामिल कर लिया था। अशरफ भी अतीक अहमद के नक्शे कदम पर ही आगे बढ़ने लगा। अशरफ ने तय किया कि वो सबसे पहले राजनीति में अपना हाथ आजमाएगा, लेकिन इसी बीच चांद बाबा को मार दिया गया।
दिनदहाड़े, बीच बाजार चांद बाबा की हत्या कर दी
विधायक बनने के करीब 3 महीने बाद अतीक अपने गुर्गों के साथ रोशनबाग में चाय की टपरी पर बैठा था। अचानक चांद बाबा अपनी गैंग के साथ वहां आया और दोनों गैंग के बीच भयंकर गैंगवार शुरू हो गया। पूरा बाजार गोलियों, बम और बारूद से पट गया। इसी गैंगवार में चांद बाबा की मौत हो गई।
कुछ महीनों में एक-एक करके चांद बाबा का पूरा गैंग खत्म हो गया। चांद बाबा के ज्यादातर गुर्गे मार दिए गए, बाकी वहां से भाग गए। चांद बाबा की हत्या का आरोप अतीक अहमद पर लगा। लेकिन, विधायक होने की वजह से उस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। चांद बाबा की मौत के पीछे गैंग की मुठभेड़ को कारण बताया गया। आज तक अतीक इस मामले में दोषी साबित नहीं हो पाया।
हारा अशरफ, लेकिन अतीक को लगा जैसे वह हार गया हो
अतीक अहमद ने अशरफ को सपा से टिकट दिलवाया। कभी अतीक की टीम का हिस्सा रहे राजू पाल बसपा में शामिल हो गए। मायावती ने उन्हें प्रत्याशी बना दिया। दोनों के बीच कड़ी टक्कर हुई। लेकिन, बाजी राजू पाल के हाथ लगी। वह 4 हजार वोटों से चुनाव जीत गए। ये हार अशरफ की थी, लेकिन अतीक को लगा कि जैसे वह हार गया हो। इसके बाद जो हुआ वह यूपी के इतिहास में दर्ज हो गया। आइए अब राजू पाल मर्डर केस को जानते हैं।
विधायक राजू की गाड़ी बांस-बल्ली से भिड़ गई। 25 जनवरी 2005, दोपहर के 3 बजे थे। सुलेमसराय की सारी दुकानों पर तिरंगे बिक रहे थे। दुकानों पर ‘मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन, शांति का उन्नति का प्रेम का चमन’ गाना बज रहा था। तभी यहां अशांति फैल गई।
इलाहाबाद शहर पश्चिमी के बसपा विधायक राजू पाल दो गाड़ियों के काफिले के साथ SRN हॉस्पिटल से वापस अपने घर नीवा जा रहे थे। रास्ते में उनके दोस्त सादिक की पत्नी रुखसाना मिली और उन्हें अपने गाड़ी की आगे वाली सीट पर बैठा लिया।
राजू पाल खुद क्वालिस ड्राइव कर रहे थे। पीछे वाली सीट पर संदीप यादव और देवीलाल बैठे थे। पीछे जो स्कार्पियो चल रही थी उसमें चार लोग बैठे थे। काफिला सुलेमसराय के जीटी रोड पर था तभी बगल से तेज रफ्तार मारुति वैन राजू पाल की गाड़ी को ओवर टेक करते हुए एकदम सामने आकर खड़ी हो गई। राजू की गाड़ी सड़क किनारे बांस-बल्ली की दुकान पर जाकर भिड़ गई।
धड़धड़ाते हुए सामने खड़ी मारुति वैन से पांच हमलावर उतरे। ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। तीन गुंडों ने राजू पाल की गाड़ी को घेरकर फायरिंग शुरू कर दी। दो हमलावर काफिले की दूसरी गाड़ी पर फायरिंग करने लगे। किसी को भी उतरने का मौका नहीं दिया। गोलियों की आवाज सुनकर लोग घटनास्थल की तरफ दौड़े। जो घटना स्थल पर थे वह दूसरी तरफ भागे। दो किलोमीटर के इलाके में अफरातफरी का माहौल बन गया।
चार मिनट तक गोलियां चलीं, राजू पाल की मौत हो गई
पहले चार मिनट तक गोलियां चलती रहीं। अगले चार मिनट तक ये इंतजार किया जाता रहा कि राजू की सांस थम जाए। हमलावरों को यकीन हो गया राजू मर गए तब वह भागे। धूमनगंज पुलिस आई। गाड़ियों की हालत ऐसी नहीं थी कि उससे हॉस्पिटल ले जाया जा सके। पुलिस ने टैक्सी पकड़ी और राजू को लेकर SRN लेकर भागी। डॉक्टरों ने हाथ जोड़ लिया। रात में पोस्टमॉर्टम हुआ, तो राजू की बॉडी से 19 गोलियां निकली। पीछे वाली सीट पर बैठे संदीप और देवीलाल की भी मौत हो गई।
अतीक के गुनाहों में अशरफ भी बराबर का भागीदार
ऐसा बताया जाता है कि राजू पाल की हत्या की प्लानिंग तो अतीक ने की थी लेकिन इसे अंजाम अशरफ ने दिया। लेकिन इसके बाद भी दोनों भाइयों के लिए कुछ बदला नहीं। राजू पाल की हत्या में नामजद होने के बावजूद अतीक सत्ताधारी सपा में बना रहा साथ ही अशरफ भी राजनीति की तरफ अपने कदम बढ़ाने लगा।
साल 2005 में उपचुनाव हुआ। बसपा ने पूजा पाल को उतारा और सपा ने दोबारा अशरफ को टिकट दिया। पूजा पाल के हाथों की मेंहदी भी नहीं उतरी थी। उनकी शादी को महज 9 दिन हुए थे और वो विधवा हो गई। लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला। अशरफ चुनाव जीत गया।
इस पूरी वारदात के दौरान राजू पाल के रिश्तेदार उमेश पाल भी पीछे की गाड़ी में मौजूद थे। वो इस पूरी घटना के मुख्य गवाह थे। हत्याकांड के बाद अतीक ने कई लोगों से कहलवाया कि उमेश इस केस से पीछे हट जाएं लेकिन वो नहीं माने।
विधायकी की आड़ में क्राइम करता रहा अतीक
अतीक धीरे-धीरे एक बड़ा नेता तो बन गया लेकिन अपनी माफिया वाली छवि से वो कभी बाहर नहीं आ पाया। बल्कि नेता बनने के बाद उसके अपराधों की रफ्तार और तेज हो गई। भाई अशरफ ने भी अतीक का कदम-कदम पर साथ दिया। अशरफ के खिलाफ भी 33 आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए।
लेकिन साल 2007 में जब बसपा की सरकार आई तो हालात बदले। अतीक के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई। 5 जुलाई 2007 को उमेश ने अतीक, अशरफ समेत कुल 11 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कराई। खुद इस केस की पैरवी हाई कोर्ट में करते रहे। इसके बाद अतीक को गिरफ्तार कर साबरमती जेल और अशरफ को बरेली जेल भेज दिया गया था।
‘मैं मारा गया तो एक लिफाफा सीएम योगी तक पहुंचेगा’
बीते दिनों अतीक अहमद को उमेश पाल की किडनैपिंग मामले में उम्रकैद की सजा हुई थी। साथ ही उसके बेटे असद का दो दिन पहले एनकाउंटर कर दिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तबसे अतीक और अशरफ इस बात को लेकर डरे हुए थे कि उन्हें मार दिया जाएगा। अशरफ ने मीडिया से कहा था कि एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझसे कहा है कि दो हफ्ते में हमको बाहर निकाला जाएगा और मार दिया जाएगा।
आखिरकार अशरफ का वो डर सच साबित हुआ। अतीक अहमद और अशरफ अहमद को 15 अप्रैल की रात मीडिया के सामने गोली मार दिया गया। अशरफ ने कहा था कि जिन अधिकारी ने मुझे ये बताया मैं उनका नाम नहीं बता सकता। लेकिन अगर मैं मारा गया तो एक बंद लिफाफा मुख्यमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और इलाहाबाद के मुख्य न्यायाधीश के पास पहुंच जाएगा।
- यह भी पढ़े………………………….
- शिक्षकों ने जाति जनगणना कार्य का विरोध कर बिहार सरकार के बिरुद्ध किया प्रदर्शन
- कैश के साथ अपराधियों ने लूटा था मोबाइल, लोकेशन ट्रैस कर पुलिस ने आरोपी को पकड़ा