एनकाउंटर करने वाली STF की कहानी,कैसे न्यूयॉर्क पुलिस से मिला था आइडिया?

एनकाउंटर करने वाली STF की कहानी,कैसे न्यूयॉर्क पुलिस से मिला था आइडिया ?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

साल 1993 की बात है। गोरखपुर में एक छात्रा कॉलेज से अपने घर लौट रही थी। उसे देखकर राकेश तिवारी नाम का शख्स सीटी बजा रहा था। लड़की के भाई को इसका पता चला तो उसने गुस्से में राकेश को गोली मार दी। भाई का नाम था- श्रीप्रकाश शुक्ला।

1993 में महज 20 साल की उम्र में पहला मर्डर करने के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला बैंकॉक चला गया। कुछ समय बाद भारत लौटा तो बिहार का रुख किया। मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जाता है कि यहां उसे बाहुबली नेता सूरजभान सिंह ने पनाह दी।

शुक्ला देखते-ही-देखते अपराध की दुनिया का एक बड़ा नाम हो गया। श्रीप्रकाश शुक्ला उस वक्त इकलौता ऐसा अपराधी था, जिसने मॉडर्न एके-47 का इस्तेमाल करके सनसनी फैला दी थी। शुक्ला अब UP की राजधानी लखनऊ से ही फिरौती और हत्या की सुपारी लेने का काम लेने लगा।

श्रीप्रकाश शुक्ला ने जनवरी 1997 में लखनऊ के सबसे बड़े लॉटरी व्यवसायी विवेक श्रीवास्तव की लाटूश रोड पर 25 से 30 गोलियां मारकर हत्या कर दी।

10 दिन बाद आलमबाग में टेढ़ी पुलिया के पास शुक्ला ने ट्रिपल मर्डर को अंजाम दिया। 31 मार्च सुबह 10:30 बजे लखनऊ में एक स्कूल के सामने UP के बाहुबली नेता वीरेंद्र शाही को भी गोली से उड़ा दिया।

रिजल्ट का दिन था। लिहाजा उस दिन वहां करीब 400 बच्चे और उनके पेरेंट्स मौजूद थे। पहले शुक्ला ने वीरेंद्र शाही के मुंह और सीने पर गोलियां मारीं। इसके बाद हार्ट किधर है, इस पर कन्फ्यूजन था तो पहले दाईं तरफ 5 गोली मारी, फिर बाईं तरफ 5 गोली मारीं। इससे पूरे UP में उसका खौफ फैल गया।

फिर मई में उसने लखनऊ के सबसे बड़े बिल्डर मूलराज अरोड़ा को हजरतगंज में उनके ऑफिस से गन पॉइंट पर किडनैप कर लिया और 2 करोड़ रुपए की फिरौती वसूल की।

1 अगस्त 1997 को श्रीप्रकाश शुक्ला ने अपने 3-4 साथियों के साथ विधानसभा से 200 मीटर दूर दिलीप होटल में 3 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी। यहां पर एके 47 से 100 से ज्यादा राउंड फायरिंग की। उस वक्त विधानसभा चल रही थी। गोलियों की तड़तड़ाहट विधानसभा में भी सुनाई दी।

प्रदेश की राजधानी में इन ताबड़तोड़ घटनाओं से खौफ का महौल था। इसके बाद उसने उस वक्त UP के CM कल्याण सिंह की हत्या के लिए 5 करोड़ की सुपारी ले ली।

UP के पूर्व पुलिस अफसर अजय राज शर्मा ने अपनी किताब ‘बाइटिंग द बुलेट : मेमोरी ऑफ ए पुलिस ऑफिसर’ और कुछ मीडिया इंटरव्यू में ये पूरा किस्सा शेयर किया है।

अजय राज शर्मा बताते हैं- मैं उस वक्त सीतापुर में था। मेरे पास फोन आता है कि मुख्यमंत्री आज शाम को आपसे मिलना चाहते हैं। जब मैं गया तो वे अपने कमरे में टहल रहे थे। काफी घबराए से लग रहे थे, तब मैंने पूछा सर क्या बात है?

उन्होंने कहा कि श्रीप्रकाश शुक्ला ने इतना उधम मचाया है कि मेरी सरकार के लिए यह नासूर बन गया है। हर रोज ये क्राइम करता है। क्राइम भी ऐसे कि हर अखबार में छपता है। विधानसभा में हर रोज मुझे इसका जवाब देना पड़ता है। मैंने कहा कि आप इतने परेशान सिर्फ इस बात से तो नहीं हैं। ये तो आपके लिए रोज की समस्या है।

उन्होंने कहा कि सही कह रहे हो, मैं दूसरे कारण से ज्यादा परेशान हूं। मैंने कहा कि बताइए। इस पर उन्होंने कहा कि मेरी जान को खतरा है और इसकी वजह भी श्रीप्रकाश शुक्ला है। इसने मुझे मारने के लिए 5 करोड़ रुपए की सुपारी ले ली है। मुझे मालूम है कि इस गैंग के अंदर ये काबिलियत है कि ये सारी सिक्योरिटी तोड़कर मुझे मार सकते हैं। तब मैंने कहा कि ये मामला तो काफी सीरियस है।

इस पर उन्होंने कहा कि इसीलिए आपको बुलाया है। कल से आप ADG लॉ एंड आर्डर का चार्ज ले लीजिए। मैंने कहा कि मुझे मंजूर है। मैं कल चार्ज ले लूंगा, लेकिन मेरी एक गुजारिश है। वे बोले क्या? मैंने कहा कि मुझे एक छोटी सी नई यूनिट चाहिए। वो भी अभी क्योंकि कल मुझे चार्ज लेना है। इसी यूनिट को स्पेशल टास्क फोर्स यानी STF का नाम दिया गया।

इसका प्रमुख अजय राज शर्मा को बनाया गया। इसमें उस समय लखनऊ के SSP अरुण कुमार और CO हजरतगंज राजेश पांडेय को शामिल किया गया। इस यूनिट में UP पुलिस के 50 बेहतरीन जवानों को छांटकर शामिल किया गया। इन सभी सदस्यों की उम्र 35 साल से कम थी। इस फोर्स को पहला टास्क श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का मिला।

प्रेमिका और मोबाइल की वजह से मारा गया श्रीप्रकाश शुक्ला
सितंबर 1998 की एक रात STF महानिदेशक अजय राज शर्मा अपने आवास में डिनर कर रहे थे। तभी उनके पास एक दोस्त का फोन आया। उन्होंने कहा कि मुझे अभी आपसे मिलना है। इसके बाद उनके दोस्त के साथ एक होटल का मालिक भी अजय राज शर्मा के पास पहुंचा।

होटल मालिक ने कहा- ‘उसने मुझे फोन किया और मां-बहन की गाली देने लगा। जब मैंने पूछा कि तुम कौन हो तो उसने कहा कि मेरा नाम नहीं सुना आकर बताना होगा कि मैं कौन हूं। इसके बाद उसने कहा कि मैं श्रीप्रकाश शुक्ला बोल रहा हूं। तुमने जितना कमाया है, उसका 10% हिस्सा मेरे पास भेज देना नहीं तो अंजाम सोच लो। मैं कल फिर फोन करूंगा।’

इतना सुनते ही अजय राज शर्मा ने होटल मालिक को अगले दिन श्रीप्रकाश की कॉल आने पर उससे एक मिनट तक बात करने की बात कही। अगले दिन STF ने फोन कंपनी से बात करके उसकी कॉल को रिकॉर्ड करने का फैसला किया।

कॉल रिकॉर्ड करने पर पता चला कि ये श्रीप्रकाश शुक्ला का पर्सनल नंबर है और वह इस समय दिल्ली के वसंतकुंज इलाके में रह रहा है। यह पहला मौका था, जब फोन के जरिए किसी अपराधी को पकड़ने की कोशिश की गई थी।

फोन कॉल की हिस्ट्री को खंगालने पर पता चला कि श्रीप्रकाश शुक्ला की एक गर्लफ्रेंड है। गोरखपुर की रहने वाली गर्लफ्रेंड से अक्सर वह मिलने जाया करता था। इसके बाद अजय राज शर्मा ने पुलिस अधिकारी अरुण कुमार के नेतृत्व में STF की एक टीम को टाटा सूमो से दिल्ली भेज दिया।

STF की इस टीम ने दिल्ली क्राइम ब्रांच से मदद ली और शुक्ला के फोन कॉल को रिकॉर्ड किया जाने लगा। तब फोन टेप करने की टेक्नोलॉजी काफी नई थी, ऐसे में सबसे बड़ी समस्या ये थी कि श्रीप्रकाश शुक्ला का फोन टेप कैसे किया जाए। इसके लिए STF ने IIT कानपुर से पढ़े एक लड़के की मदद ली थी।

इसके बाद फोन टेप के जरिए 23 अक्टूबर 1998 को STF के प्रभारी अरुण कुमार को सूचना मिली कि श्रीप्रकाश दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है। इसके बाद उसकी नीली कार का पीछा किया जाने लगा। इस कार का नंबर HR 26 G73 था, जो फर्जी था।

खुद श्रीप्रकाश कार को ड्राइव कर रहा था, जबकि उसके साथी अनुज प्रताप सिंह और सुधीर त्रिपाठी बैठे हुए थे। जैसे ही उसकी कार इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, STF ने उसे घेर लिया। श्रीप्रकाश शुक्ला को सरेंडर करने को कहा गया, लेकिन वह नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश मारा गया।

न्यूयॉर्क पुलिस से लिया गया था STF बनाने का आइडिया
STF का आइडिया सबसे पहले IPS अधिकारी राजीव रतन शाह के दिमाग में आया था। उन्होंने ही सबसे पहले CM कल्याण सिंह को समझाया था कि इस तरह के क्राइम को कंट्रोल करने के लिए अलग से एक यूनिट बनाया जाना चाहिए।

ऐसा इसलिए क्योंकि पुलिस पर VIP मूवमेंट, ट्रैफिक, क्राइम, बाकी चीजों का भी लोड होता है। दरअसल, राजीव रतन शाह न्यूयॉर्क गए थे। वहां के पुलिस मुख्यालय जाकर उन्होंने समझा था कि वहां की पुलिस ने माफियाओं का साम्राज्य कैसे समाप्त किया था। इसके बाद ही उन्होंने मुख्यमंत्री को न्यूयॉर्क की तरह एक अलग पुलिस यूनिट बनाने की सलाह दी थी।

आम पुलिस से STF कैसे अलग है और इसमें जवानों का सिलेक्शन कैसे होता है?
UP के पूर्व DGP विक्रम सिंह ने कहा कि पेशेवर, संगठित आतंकियों और क्रिमिनल को खत्म करने के लिए STF बनाई गई है।

उन्होंने कहा कि पुलिस का एक निश्चित क्षेत्राधिकार होता है, जबकि STF पूरे राज्य में कहीं भी ऑपरेशन चला सकती है। पुलिस FIR करके डिटेल रिपोर्ट तैयार करती है, जबकि STF सीधे इन्वेस्टिगेशन और ऑपरेशन चलाती है। STF दूसरे राज्यों में जाकर भी मिशन को अंजाम देती है।

विक्रम सिंह ने कहा कि STF के पास सबसे मॉडर्न हथियार और टेक्नोलॉजी है। इस वजह से अपराधी देश के किसी भी हिस्से में छिपे हों, STF खोजने में सक्षम है।

विक्रम सिंह कहते हैं कि STF के जवानों का सिलेक्शन काफी टफ होता है। यही वजह है कि STF बनने के कई साल बाद तक 100 से भी कम जवानों का इस टास्क फोर्स में सिलेक्शन हुआ था। पुलिस जवानों का STF में चयन इन 5 बातों को ध्यान में रखकर किया जाता है-

1. भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता का आरोप नहीं होना चाहिए।

2. पुलिस में सेवा करते हुए किसी विवाद में नाम नहीं आया हो।

3. स्वास्थ्य अच्छा हो।

4. पुलिस विभाग में रहते हुए बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया हो।

5. पढ़े-लिखे और टेक्नोलॉजी की अच्छी समझ रखने वाले जवानों को इंटर्नल असेसमेंट के जरिए चुना जाता है।

STF ने ही किया था ददुआ और विकास दुबे का एनकाउंटर

ददुआ एनकाउंटर केस: साल 2007 में UP में मायावती की सरकार बनी। मायावती ने चंबल के बीहड़ों में दहशत फैलाने वाले डाकुओं को खत्म करने का फैसला किया। इसके बाद STF ने ददुआ को मारने का प्लान बनाया। 15 अप्रैल 2008 को मायावती के आदेश पर STF की टीम चंबल पहुंची।

ददुआ जिसे STF ने साल 2008 में मार गिराया था।

21 जुलाई को मुखबिर से छोटा पटेल की लोकेशन मिली। इसके बाद STF ने ददुआ के 4 साथियों को मार गिराया। 22 जुलाई को सुबह 3 बजे मुखबिर और सर्विलांस से इनपुट मिला कि ददुआ झलमल के जंगलों में है। सुबह 3 बजे से 7 बजे तक टीम ने छिपते-छिपाते जंगल का करीब 10 किलोमीटर सफर तय कर लिया था।

इसके बाद टीम ने 1 घंटे तक अपनी पोजिशन ली और ददुआ की गैंग पर हमला बोला दिया। सुबह 9:15 बजे 1 घंटे से ज्‍यादा चली गोलीबारी के बाद ददुआ को उसके 5 साथियों के साथ ढेर कर दिया गया।

विकास दुबे एनकाउंटर केस: 10 जुलाई 2020 को बिकरू हत्याकांड के मुख्य आरोपी गैंगस्टर विकास दुबे को सड़क के रास्ते कानपुर लाया जा रहा था। उस दौरान कानपुर के भौती इलाके में बारिश हो रही थी। बारिश हल्की थी।

विकास दुबे भी UP STF टीम के साथ एनकाउंटर में मारा गया था।

लिहाजा, संकरी सड़क पर कीचड़ की वजह से पुलिस की गाड़ी पलट गई। विकास पिछली सीट पर बीच में बैठा था। उसके दोनों तरफ STF के जवान थे। गाड़ी पलटने पर विकास दुबे एक पुलिसकर्मी की 9 एमएम की पिस्टल छीनकर भागने लगा और फायरिंग की। STF की जवाबी फायरिंग में वह मारा गया।

Leave a Reply

error: Content is protected !!