क्या हम सबसे अधिक आबाद वाला देश बन गये?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत की आबादी बढ़कर 142.86 करोड़ हो गई है और अब हम चीन को पीछे छोड़कर दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश बन गये हैं। वैसे तो किसी मामले में नंबर वन पर आना अच्छी बात है लेकिन आबादी के मामले में नंबर वन होना दर्शाता है कि देश के समक्ष जो तमाम तरह की चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं उनकी संख्या में महा-इजाफा होने वाला है।

देखा जाये तो देश के राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति के चलते आबादी की सुनामी से पैदा होने वाले खतरों को लगातार अनदेखा कर रहे हैं जिसकी सजा देश को भुगतनी पड़ रही है। यही कारण है कि एक तरफ जब एक हजार नियुक्ति पत्र बंटते हैं तो दूसरी तरफ एक करोड़ बेरोजगारों की नयी फौज खड़ी हो जाती है, एक ओर एक अस्पताल या स्कूल बनता है तो दूसरी ओर 100 और अस्पतालों और स्कूलों की जरूरत पड़ जाती है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत की 25 प्रतिशत जनसंख्या 0-14 (वर्ष) आयु वर्ग की, 18 प्रतिशत 10 से 19 आयु वर्ग, 26 प्रतिशत 10 से 24 आयु वर्ग, 68 प्रतिशत 15 से 64 आयु वर्ग की और सात प्रतिशत आबादी 65 वर्ष से अधिक आयु की है। यानि आबादी का जो सर्वाधिक प्रतिशत है वह 15 से 64 साल की उम्र वर्ग का है। यही वह वर्ग है जिसके लिए बड़ी संख्या में स्कूल, कॉलेज और नौकरियां चाहिए।
लेकिन संसाधन सीमित हैं और आबादी बड़ी है इसलिए समस्या गहराती जा रही है। इन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि भारत की सबसे अधिक यानि 25.4 करोड़ आबादी युवा (15 से 24 वर्ष के आयुवर्ग) की है। देखा जाये तो युवाओं की यह ताकत नवाचार, नई सोच और समस्याओं के स्थायी समाधान का स्रोत हो सकती है। लेकिन सवाल फिर यही है कि इसके लिए संसाधन कहा से आएंगे?

भारत लोकतांत्रिक देश है इसलिए ऐसा तो हो नहीं सकता कि यहां जनसंख्या नियंत्रण के लिए तानाशाही वाले तरीके अपनाए जाएं लेकिन यह भी सच है कि प्यार से समझाने के चक्कर में प्यार और बढ़ता जा रहा है जिसकी परिणति यह है कि हम दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश बन गये हैं। सरकारें शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, रोजगार गारंटी अधिकार, भोजन का अधिकार आदि आदि कानून तो बना दे रही हैं लेकिन उन्हें बताना चाहिए कि जब बुनियादी ढांचे और संसाधनों का अभाव है तो देश के नागरिक यह अधिकार हासिल कैसे होंगे?

समय आ गया है कि इस मुद्दे पर संसद और विधानसभाओं में चर्चा हो, केंद्र और राज्य स्तर पर सर्वदलीय बैठकें हों, देश की जनता की भी राय जानी जाये और आम सहमति बना कर बढ़ती जनसंख्या की समस्या से निबटने के उपायों को तत्काल लागू किया जाये। यदि हमने कदम नहीं उठाये तो संयुक्त राष्ट्र का यह अनुमान भी सही साबित हो जायेगा कि भारत की आबादी करीब तीन दशकों तक बढ़ती रहेगी और 165 करोड़ पर पहुँच जायेगी।

 

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