धर्म, न्याय, ज्ञान, शक्ति, साहस व शील के प्रतीक-भगवान श्री परशुराम
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अग्रतः चतुरो वेदाः पृष्ठतः सशरं धनुः।
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि॥
अर्थात-
आगे (ललाट पर) सकल (सभी) शास्त्रों का ज्ञान रखता हूँ, पृष्ठ (पीठ) पर धनुष – बाण दोनों से ही दुष्टों का वध कर सकता हूँ, शाप (श्राप) से अथवा शर (तीर) से – भगवान परशुराम
बड़ा हीं कठिन होता है परशुराम बनना। शस्त्र के साथ शास्त्र को साधना, श्रीराम और कृष्ण जैसे सभ्यता-नायक का पूर्वज बनना। अन्याय के विरूद्ध शस्त्र एवं शास्त्र दोनों से हीं सुसज्जित होना …वैसे आज समय की मांग भी है। भगवान परशुराम से यहीं तो सीखना है। शास्त्र सॉफ्टवेयर है तो शस्त्र हार्डवेयर। दोनों हीं सिस्टम के महत्वपूर्ण अवयव हैं- खासकर इकोसिस्टम के।
शास्त्र हीं शस्त्र के प्रयोग को तार्किक आधार प्रदान करता है। शास्त्र हीं आधुनिक नारेटिव्स गढ़ता है। आज बिना नारेटिव्स को समझे न समस्या बोध होगा और न हीं समाधान सामर्थ्य। आज नारेटिव्स हीं चक्रव्यूह का प्रथम द्वार है।हमारा अपने एवं दूसरे के शास्त्रमतों से अनभिग्य होना हीं हमारे विरूद्ध वातारण निर्माण में प्रबल सहायक होता है। शास्त्रों को सही तरह से समझकर समयानुसार शस्त्र का प्रयोग हीं परशुराम बनने की प्रक्रिया है।
ज्यादा नहीं तो बेसिक्स तो समझ हीं लेना है…भारत में रहने वाले किसी भी मत एवं शास्त्र का।
हर पंथ एवं विचार का एक मुख्य दर्शन होता है। वहीं दर्शन उस मत को मानने वालों की मानसिकता निर्धारित करता है। जैसे सनातन विचार विश्व के हर मत एवं पंथ को सत्य का अन्वेषी मानता है। परंतु विश्व में ऐसे भी पंथ हैं जो अपने सिवा किसी का भी अस्तित्व नहीं मानते।
ऐसे पंथों केबेसिक्स का सामाजिक जीवन में प्रयोग एवं उद्देश्य समझ लेना हीं जीवन के नारेटिव्स को समझना है।ये नारेटिव्स भाषा, साहित्य, सिनेमा, व्यापार, फैशन आदि में छिपे रहकर बड़े हीं राजनीतिक एवं प्रशासनिक निर्णयों को प्रभावित करते हैं। जैसे….शहीद होना एवं वीरगति को प्राप्त करना दोनों हीं अलग-अलग अवस्थाएँ हैं।
वीरगति राष्ट्र की सेवा में होता है, लेकिन अपने पंथ एवं मत की रक्षा के लिए शहीद होता है। इश्क और प्रेम एक हीं नहीं होते…और न हीं मोहब्बत और स्नेह समानार्थी। उसी तरह धर्म से तात्पर्य पूजा पद्धति नहीं बल्कि मानव एवं राष्ट्रहित में कर्तव्य है। धर्मविरूद्ध आचरण को रोकने के लिए हीं परशुराम ने शस्त्र उठाया एवं सहस्त्रार्जुन का विनाश किया। सहस्त्रार्जुन राजपुत से ज्यादा अन्याय का प्रतीक है जिसे नष्ट होना हीं चाहिए।
….लेकिन शास्त्र से अनभिग्यता का फायदा उठाकर गलत नारेटिव्स गढ़ने वाले परशुराम को ब्राह्मणों का नायक एवं राजपुतों के विरूद्ध बता देते हैं।
परशुराम मानव सभ्यता के विकास की छठी कड़ी हैं। उन्हीं से श्रीराम शारंग नामक धनुष आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त करते हैं। …और राक्षसों पर विजय प्राप्त करते हैं। राष्ट्र के भीतर अपने-अपने जातीय नायक गढ़ने से अच्छा है …राष्ट्रनायकों से नई पीढ़ी को अवगत कराना। ताकि… स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को अपने हीं मामा, चाचा, फुआ के लड़के-लड़कियों से घनघोर गलाकाट प्रतियोगिता न हो । वे बड़े होकर अपने हीं पट्टीदारों से कई पुराने बदले लेने की न सोचें। ….और …कुछ ज्यादा पैसा होने पर ….अपने हीं भाई की अचल सम्पत्ति औने-पौने दाम पर न लिखवाये।
हमारे बच्चों का लक्ष्य आईएएस बनकर बड़े से बड़ा पद प्रतिष्ठा प्रातिष्ठा प्राप्त करना… होना हीं चाहिए….लेकिन किसी का लक्ष्य….हमारा देश हीं छीन लेना …या तोड़ देना हो सकता है। ऐसा पहले कई बार हो चुका है। यदि …सही नायक एवं नारेटिव्स तय होता तो आज भारत के दोनों कंधों ( पूरब और पश्चिम) पर घाव न होते …और न हीं माथे (कश्मीर) पर रह रह कर कोई ज़ख्म दे जाता। आज पृथ्वी दिवस भी है। धरती को बर्बर सोच से बचाने एवं पुंछ के बलिदानियों को न्याय दिलाने के लिए….भारत को परशुराम वाला रूप धरना हीं होगा।
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