सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन में गुणात्मक सुधार को लेकर जिला स्तरीय प्रसार कार्यशाला का आयोजन
कसबा के आठ पंचायतों के कर्मियों को किया गया सम्मानित:
सामुदायिक स्तर पर व्यवहार परिवर्तन में यूनिसेफ की भूमिका सराहनीय: डीडीसी
कसबा के आठ पंचायतों को मॉडल परियोजना से जोड़ कर किया गया सराहनीय: सिविल सर्जन
स्वास्थ्य कर्मियों ने किया अपने कार्यो को साझा: कार्यक्रम प्रबंधक
श्रीनारद मीडिया‚ पूर्णिया (बिहार)
सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन के लिए गुणात्मक सुधार (क्यूआई फ़ॉर एसबीसी) को लेकर जिला स्तरीय प्रसार कार्यशाला का आयोजन शहर के जिला पंजीकरण सह परामर्श केंद्र (डीआरसीसी) के सभागार में किया गया। स्वास्थ्य विभाग, यूनिसेफ, अलाइव एंड थ्राइव एवं आई बिहार के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन जिला उपविकास आयुक्त साहिला, सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी, आईसीडीएस की डीपीओ रजनी गुप्ता, यूनिसेफ के कार्यक्रम प्रबंधक शिवेंद्र पांड्या, स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ सिद्धार्थ शंकर रेड्डी, सामाजिक व्यवहार में बदलाव (एसबीसी) विशेषज्ञ मोना सिन्हा, स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ सरिता वर्मा, अलाइव एंड थ्राइव की राज्य प्रमुख अनुपम श्रीवास्तव, यूनिसेफ के स्थानीय सलाहकार शिव शेखर आनंद के द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज़्ज्वलित कर किया गया। वहीं विगत छः महीने से पायलट प्रोजेक्ट के रूप में किए गए कार्यों को लेकर बनाए गए पुस्तिका का विमोचन भी किया गया।
इस अवसर पर डीपीएम, डीसीएम, जिले के सभी प्रखंडों के बीएचएम, बीसीएम, यूनिसेफ के एसएमसी, सभी बीएमसी सहित स्वास्थ्य विभाग को सहयोग करने वाली सहयोगी संस्थाओं यथा ,केयर इंडिया, पिरामल, डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधि उपस्थित रहे। कार्यक्रम के दौरान डीडीसी साहिला, सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी सहित यूनिसेफ टीम के द्वारा संयुक्त रूप से कसबा के आठ पंचायतों की आंगनबाड़ी सेविका, आशा, जीविका दीदी एवं स्थानीय एमओआईसी एवं बीसीएम को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। वहीं सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च के क्षेत्रीय कार्यक्रम समन्वयक धर्मेंद्र कुमार रस्तोगी को मीडिया सहयोग के लिए सम्मानित किया गया।
सामुदायिक स्तर पर व्यवहार परिवर्तन में यूनिसेफ की भूमिका सराहनीय: डीडीसी
उप विकास आयुक्त साहिला ने कहा कि जब तक हम सभी महिलाएं आगे नही बढ़ेंगी तब तक समाज आगे नहीं बढ़ सकता है। शिक्षित होने के साथ-साथ स्वास्थ्य एवं पोषण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है। जिसमें व्यवहार परिवर्तन की भूमिका काफ़ी महत्वपूर्ण मानी जाती है। कही सुनी बातों को दरकिनार करते हुए ख़ुद को आगे बढ़ाने की जरूरत है। सामुदायिक स्तर पर व्यवहार परिवर्तन को लेकर यूनिसेफ के द्वारा एएनएम, आशा कार्यकर्ता, जीविका समूह से जुड़ी दीदी, आंगनबाड़ी सेविका व सहायिकाओं सहित अन्य कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया है। ताकि किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हो। कसबा प्रखंड के आठ पंचायतों में पायलट परियोजना के तहत कार्य किया गया है। पूरे जिले में यही मॉडल लागू किया जाएगा। जिसमें प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, बीएचएम, बीसीएम की भूमिका सुनिश्चित करने की जरूरत है।
कसबा के आठ पंचायतों को मॉडल परियोजना से जोड़ कर किया गया सराहनीय कार्य: सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग, यूनिसेफ एवं अलाइव एंड थ्राइव के संयुक्त प्रयास से सामाजिक व्यवहार परिवर्तन में गुणात्मक सुधार परियोजना को जिले के कसबा प्रखंड अंतर्गत 08 पंचायतों यथा बरेटा, घुड़दौड़, मल्हरिया, मोहनी, गुरही, बनैली, कुल्लाखास एवं लखान में पायलट परियोजना के तहत क्रियान्वित किया गया था। क्रियान्वयन के बाद उसको प्रसारित करना चाहिए, ताकि अन्य प्रखंडों में भी इसे लागू किया जा सके। सरकारी अस्पतालों में संस्थागत प्रसव के बाद स्वास्थ्य लाभ लेने वाली महिलाओं को स्वास्थ्य से संबंधित परिवार नियोजन, केवल स्तनपान कराने, हाथ धोने और शिशुओं की देखभाल से संबंधित महत्वपूर्ण बातों को बार-बार प्रोत्साहित कराने में यूनिसेफ की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि सामाजिक स्तर पर एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की तुलना में आशा कार्यकर्ताओं द्वारा नवजात शिशुओं एवं माताओं के पास पहुंचने की संभावनाएं बहुत अधिक रहती हैं।
स्वास्थ्य कर्मियों ने किया अपने कार्यो को साझा: कार्यक्रम प्रबंधक
यूनिसेफ के कार्यक्रम प्रबंधक शिवेंद्र पांड्या ने कहा कि पूर्णिया में नवजात शिशुओं की सुरक्षा एवं देखभाल को लेकर क्रियान्वित कार्यक्रमों से संबंधित जानकारियों को कसबा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बीसीएम उमेश पंडित एवं कुल्लाख़ास पंचायत के आंगनबाड़ी सेविका, आशा कार्यकर्ता, जीविका समूह से जुड़ी दीदी के द्वारा उपस्थित समूह के बीच साझा किया गया। क्योंकि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में नवजात शिशुओं के घर पर सुरक्षित देखभाल के मूल सिद्धांतों और व्यवहारों की जानकारी होनी चाहिए। ताकि नवजात शिशुओं को किसी तरह की को परेशानी नहीं हो। नवजात शिशुओं की सुरक्षित देखभाल के साथ ही मातृ एवं नवजात शिशुओं के सुरक्षित होने के लिए प्रसव पूर्व सभी प्रकार से देखभाल करनी पड़ती है।
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