जातीय गणना पर आप हाईकोर्ट जाये,संतुष्ट नहीं होने पर फिर आ सकते हैं-सुप्रीम कोर्ट
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार में हो रही जातीय गणना पर रोक की मांग वाली याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पटना हाईकोर्ट में जाने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं होने पर आप शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा है कि मामले में याचिका सुनकर 3 दिन में पटना हाईकोर्ट अंतरिम आदेश दे। इस मामले में 1 मई को पटना हाईकोर्ट में सुनवाई होगी। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति टी एस नरसिम्हा की पीठ में आज इस मामले में सुनवाई हुई।
बिहार में 7 जनवरी से जातीय गणना शुरू हुई है। 15 अप्रैल से इसके दूसरे चरण की शुरुआत हो चुकी है। इसके खिलाफ 21 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर तत्काल सुनवाई की मांग की गई थी।
याचिका में कहा गया है कि जनगणना कराना केंद्र सरकार का अधिकार क्षेत्र है, इसलिए बिहार सरकार का ये फैसला असंवैधानिक है।
बिहार सरकार बोली- जाति गणना पर जवाब देने के लिए किसी को फोर्स नहीं किया
जाति आधारित गणना मामले में सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार ने कहा है कि वो किसी को जवाब देने के लिए फोर्स नहीं कर रहे हैं। इस पर पिटीशनर के वकील दीनू कुमार ने कहा है कि जब किसी पर दबाव नहीं डाला जा सकता है और उन्हें जवाब के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, तो ऐसे में बिहार सरकार क्या जनता के पैसों का दुरुपयोग नहीं कर रही है। सरकारी अधिकारियों को फालतू के कामों में उलझाकर उनका वक्त क्यों बर्बाद किया जा रहा है।
पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से किया था इनकार
इससे पहले भी बीते 20 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में जाति आधारित जनगणना को लेकर अपील हो चुकी है। जिसमें याचिका में यह कहा गया था कि आरक्षण को लेकर यह जनगणना कराई जा रही है। जिस को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था और कहा था कि आरक्षण के मसले पर सुप्रीम कोर्ट कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी।
15 मई तक पूरी हो जाएगी गणना
बिहार में फिलहाल जातीय गणना कराने का काम जारी है। 15 मई तक इसे पूरा करने के बाद इस पर रिपोर्ट तैयार की जाएगी। अगर सुप्रीम कोर्ट इस पर रोक लगाती है तो जातिगत जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।
पटना हाईकोर्ट में 4 मई को सुनवाई
इधर, बिहार में जाति आधारित जनगणना के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में एक साथ तीन जनहित याचिकाएं दायर की गई थी। याचिका में जाति आधारित जनगणना को रद्द करने की मांग की गई है। 18 अप्रैल को हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 4 मई को दिया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि जाति आधारित जनगणना समाज में भेदभाव उत्पन्न कर सकता है। जिसकी वजह से समाज में तनाव बढ़ने की आशंका है।
याचिका में कहा गया है कि जाति आधारित राजनीति को रंग देने के लिए बिहार सरकार मनमाने ढंग से जाति आधारित जनगणना करा रही है। याचिका में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि केंद्र सरकार जाति आधारित जनगणना नहीं करा रही है तो बिहार सरकार आकस्मिक निधि के फंड से 500 करोड़ रुपए खर्च करके बिहार में जाति आधारित जनगणना क्यों करा रही है?
याचिका में यह दलील दी गई है कि जाति आधारित जनगणना बिहार के लिए सही नहीं है। इसलिए इसे रद्द करने की जरूरत है। याचिकाकर्ता शुभम की ओर से पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है। शुभम ने सामान्य प्रशासन विभाग के द्वारा 7 मार्च 2023 को जारी की गई अधिसूचना को रद्द करने की मांग की है। इस पर हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए इस मामले की सुनवाई करने की सहमति दी है। इस पर अगली सुनवाई 4 मई को होगी।
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