#pujyarajanjee:मानव जीवन की प्रत्येक समस्या का समाधान रामचरितमानस में है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
मानव जीवन की ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान रामचरितमानस में न हो। ….और राम सरीखा चारित्रिक सौंदर्य किसी सभ्यता ने आज तक नहीं गढ़ा। इसीलिए श्रीराम मानव सभ्यता के नायक हैं। …और रामचरितमानस उस सभ्यता का प्रतिनिधि ग्रंथ। मानस के हर शब्द राजहंस हैं। हर चौपाई संस्कारों की मुकुट मणि है। वशिष्ठ के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने जा रहे चारों भाईयों को दशरथ जी ने जो कुछ कहा वह आज के हर पैरेंट को सुनना चाहिए। पैरेंटिंग वर्तमान समय का एक बड़ा चैलेंज है।
जिस …समाज, परिवार में एक-दो गज जमीन के लिए भाई पट्टीदारों के बीच गोलियां चलने लगती है…कई लाशें गिर जाती है…कई पुश्ते कोर्ट-कचहरी का चक्कर काटते गल जाती हैं..उस समाज, परिवार को राम, भरत एवं लक्ष्मण का एक दूसरे के लिए त्याग को याद दिलाना आवश्यक हो जाता है। कर्तव्य एवं प्रेम के सम्मुख राजसत्ता महत्वहीन …धूल के समान हो जाती है। हमारी संस्कृति कर्तव्य-प्रधान है। पश्चिम की तरह अधिकार प्रधान नहीं, जहां निरंतर, छीना-झुपटी, मारकाट एवं द्वेष का वातावरण हो। भरत एवं लक्ष्मण सा चरित्र भारत के हर घर में हो, इसीलिए मानस-कथा जरूरी है।
सत्कर्म एक आमिष भोगी पक्षी, गीद्ध को भी परम पद पर बिठा देता है। गीद्धराज जटायु ..रावण के आतंक से डरे नहीं…अपने सामर्थ तक लड़े। आज…भी सभ्य समाज एक बर्बर आतंकी विचारधारा से लड़ रहा है। हम जहां भी, जिस स्थिति में हों अपनी पूरी शक्ति के साथ कट्टरता एवं अातंक को टोकें..और वहीं रोकें…जैसे सीता माता को वायुमार्ग से ले जाते हुए रावण को रोका था …जटायु ने।
….और अन्याय का पता चलते हीं राम ने …उस आतंक के गढ़ की ईंट से ईंट बजा दी।
लेकिन …इस बड़े युद्ध की शुरूआत होती है …साथ देने वालों की सही पहचान एवं उन्हें सशक्त करने से। राम ने असक्त सुग्रीव को सशक्त बनाया। अपने साथ रहने वाले को निरंतर सशक्त बनाना हीं राम का स्वभाव है।
जब युद्ध अत्याचार, अन्याय, आतंक के खिलाफ हो तो जाति, नस्ल के बंधन तोड़कर मानव समाज को एक होना पड़ता है। यहाँ तक कि, वनवासी, सन्यासी, जीव-जंतु, पशु-पक्षी भी धर्मार्थ हमारे साथ होते हैं।
इसी कड़ी मे कालनेमि का प्रसंग अत्यंत प्रासंगिक है। अपनों का वेष धारण कर शत्रुओं की मदद करने वाले भीतरघातियों की पहचान परम आवश्यक है। यहीं शत्रुबोध है…जिसकी कमी भारतीयों में हमेशा से रही है।
….वैसे…अन्याय, आतंक का अंत होना हीं है। राम का लक्ष्य रावण का आतंक समाप्त करना था…लंकावासियों पर शासन करना नहीं। कब्जा एवं लूट जैसी मध्ययुगीन सोच तो हमारे रामायण काल में भी न थी। इसीलिए …श्रीराम कथा श्रवण से हीं जीवन विषरहित हो जाता है
नारद शैली में पूज्य राजन जी महाराज की मनमोहक प्रस्तुति से पूरा जगत राममय है। सनातन संस्कृति न्यास, सिवान को कोटिश: साधुवाद। सनातक संस्कृति के समर्पित नायकों की वजह से मैं भी राम कथा अमृतमय काल का साक्षी बना।
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