#pujyarajanjee:मानस-कथा थकावट नहीं आने देती,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ऋषि विश्वामित्र….. यदि राम लक्ष्मण को अयोध्या से मिथिला नंगे पैर नहीं घुमाए होते ..तो बाद में दोनों के लिए हीं वन-वन भटकना बिल्कुल सहज नहीं होता।बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ जीवन में आने वाले वास्तविक चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार कराना …समय की मांग है।

रामचरितमानस घर से निकल कर जल, जंगल एवं जमीन की यात्रा है। संगीतमय मानस-कथा इस यात्रा में थकावट नहीं आने देती।

वैसे…सीरियल्स एवं फिल्मों के अनुसार तो भारत के हर घर में कैकई, मंथरा एवं शूर्पणखा है। …और वो भी एकदम शुद्ध भारतीय परिधान में। घर में परिवार के साथ सीरियल्स देखते हुए बच्चों…खासकर बच्चियों को इस कुप्रभाव से बचाना एक बड़ी चुनौती है। हर घर में आज जामवंत चाहिए ..न कि मंथरा।

भगवान का स्वयं अवतार लेकर वन-वन भटकना, साधु-सन्यासियों से मिलना, वनवासियों को उच्चासन देना, शबरी के जूठे फल खाना, वन-नर (वानर-भालू) यानि जंगल में रहने वालों को शहरी सभ्यता से जोड़ते हुए …उन्हें अधर्म, अन्याय के खिलाफ एकजुट करना मानस का बड़ा संदेश है।
धर्मविमुख होते हीं कोई भी समूह राष्ट्रविमुख भी होने लगता है। राष्ट्र सबके सम्मिलित प्रयास एवं सहयोग से समृद्ध होता है। भारत के कई घनघोर जंगलों में आज भी राष्ट्रविरोधी हलचलें हैं। मानस इसका मानवीय समाधान है।

कुशल नेतृत्व के बिना ताकतवर सेनापति भी अपनी ताकत पहचान नहीं पाता। सुग्रीव के साथ रहते हुए…हनुमान को अपनी शक्ति का भान हीं नहीं था। श्रीराम से मिलते हीं हनुमान जी ‘अतुलित बल धामम्’, हो गए।
किसी भी परिस्थिति में अपनी मौलिकता कायम रहनी चाहिए। यहीं व्यक्तित्व की असली पूंजी है। शक्ति का जवाब अत्यधिक शक्ति अर्जन हीं है। शिव के सामने शक्ति हीं ठहर सकती हैं। जीतता …..अंतत: हार्ड पावर हीं है। रावण के शिव उपासना के प्रत्युत्तर में राम ने शक्ति की अराधना की।

…और रही बात राम की तो जीवन में चाहें जितना भी कठिनाइयाँ या क्लेश आए , राम कभी, हताश-निराश, या टूटे हुए नहीं दीखे। कभी शिकायत नहीं किए…और न कभी विक्टिम कार्ड खेले। जहां रहे, सहज रहे, श्रेष्ठ रहे। तभी तो राम पूजनीय हैं। वे मानस के मोती हैं …तो जनमानस के मुकुट।
सदा…गर्व है।

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