क्या होता है सेंगोल,संसद भवन में इसका क्या महत्व है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत में राजदंड को सत्ता का प्रतीक मानने की शुरुआत चोलवंश से मानी जाती है.
ब्रिटिश परिवार के राज्याभिषेक समारोह में किंग चार्ल्स III के हाथों में एक छड़ी थमाई गई थी. अब जरा गौर करेंगे तो याद आएगा कि कभी आपने रोम के राजा जूलियस सीजर के चित्र को देखा होगा तो उनके हाथ में भी एक एक लंबी छड़ी नजर आई होगी, मिस्र, मेसोपोटामिया और अपने देश भारत में भी शासक इस तरह की छड़ी रखते रहे हैं. यही छड़ी राजदंड है.
भारत के नए संसद भवन में इसी राजदंड यानी सेंगोल को स्पीकर की सीट के पास लगाया जाएगा. सेंगोल तमिल भाषा के शब्द सेम्मई से बना है. सेंगोल का शाब्दिक अर्थ सच्चाई, धर्म और निष्ठा से है. 1947 में पं. जवाहर लाल नेहरू ने इसे सत्ता के हस्तांतरण के रूप में स्वीकार किया था.भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सेंगोल का अधिक महत्व है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जब प्रधानमंत्री के रूप में अपना पद संभाला था, तब उन्हें यह सौंपा गया था।
क्या दर्शाता है सेंगोल
दरअसल, सेंगोल ब्रिटिश सरकार से भारतीयों के हाथों में ली गई सत्ता की शक्ति को दर्शाता है। इसका जनक सी. राजगोपालचारी को कहा जाता है, जो कि चोला साम्राज्य से काफी प्रेरित थे। चोला साम्राज्य में जब भी एक राजा से दूसरे राजा के पास सत्ता का हस्तांतरण होता था, तब इस तरह का सेंगोल दूसरे राजा को दिया जाता था, जो कि सत्ता हस्तांतरण को दर्शाता था।
महाभारत में भी है राजदंड का उल्लेख
महाभारत के अध्याय शांतिपर्व के राजधर्मानुशासन अध्याय में भी राजदंड का उल्लेख है, इसमें अर्जुन ने युधिष्ठिर को राजदंड की महत्ता समझाई थी. अर्जुन ने कहा था कि- ‘राजदंड राजा का धर्म है, दंड ही धर्म और अर्थ की रक्षा करता है. इसीलिए राजदंड को आप धारण करें. यहां राजदंड का आशय राजा के द्वारा दिए जाने वाले दंड से भी लगाया गया है. इसमें अर्जुन कहते हैं कि- ‘कितने ही पापी राजदंड के भय से पाप नहीं करते, जगत की ऐसी ही स्वाभाविक स्थिति है, इसीलिए सबकुछ दंड में ही प्रतिष्ठित है.
क्या है राजदंड का महत्व
राज्याभिषेक के बाद किसी भी राजा को पहले ताज पहनाया जाता है और फिर छड़ी थमाई जाती है. भारत में यदि यह प्रक्रिया हो तो ताज पहनाने से पहले तिलक भी किया जाता है. ऐतहासिक तथ्यों पर गौर करें तो राजा उसी को माना जाता था जिसके सिर पर ताज होता था. इस ताज को राज्य के अधिकार से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन राज्य से संबंधित निर्णय लेने का अधिकार तभी मिलता था जब राजा के हाथ में राजदंड होता था. पुरातन काल में यदि राजा किसी और को राज्य का प्रभार देकर कहीं यात्रा पर भी जाता था तो उस व्यक्ति को राजदंड सौंपना पड़ता था.
भारत में राजदंड
भारत में राजदंड को सत्ता की पावर का प्रतीक मानने की शुरुआत चोलवंश से मानी जाती है, हालांकि कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि मौर्य और गुप्त वंश में भी ये परंपरा रही होगी. सरकार की ओर से सेंगोल पर जारी किए गए ब्रोशर में इसे चोल वंश की परंपरा ही माना गया है. भारत में 9 वीं शताब्दी से लेकर 13 वीं शताब्दी चोल साम्राज्य था. इसे भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि चोल सम्राज्य के बाद विजय नगर साम्राज्य में भी सेंगोल यानी राजदंड का इस्तेमाल किया गया था. कुछ इतिहासकार मुगलों और अंग्रेजों के समय भी इसके प्रयोग होने की बात कहते हैं, यदि ब्रिटिश परंपरा को देखा जाए तो ये बात पुष्ट भी होती है.
किसने किया था सेंगोल का निर्माण
सेंगोल का निर्माण चेन्नई के एक सुनार वुमुदी बंगारू चेट्टी द्वारा किया गया था, जिसके बाद इसे लॉर्ड माउंटबैटन द्वारा 15 अगस्त, 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था, तब से यह प्रथा बनी हुई है। सेंगोल एक पांच फीट लंबी छड़ी होती है, जिसके सबसे ऊपर भगवान शिव के वाहन कहे जाने वाली नंदी विराजमान होते हैं। नंदी न्याय व निष्पक्षता को दर्शाते हैं।
नए संसद भवन की कितनी है क्षमता
नए संसद भवन को अधिक क्षमता के साथ तैयार किया गया है। इस कड़ी में इसमें 1272 सीटों की व्यवस्था की गई है, जिसमें 888 लोकसभा और 384 राज्यसभा की सीटें होंगी। इस नए भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्री मोदी द्वारा 28 मई को किया जाएगा। आपको बता दें कि पुराने संसद भवन को 100 साल पूरे हो गए हैं। वहीं, नए संसद भवन की मियाद 150 साल तक है। इसके प्रमुख आर्किटेक्ट बिमल पटेल हैं और इसके निर्माण की जिम्मेदारी टाटा प्रोजेक्ट्स को दी गई है।
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