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संयुक्त राष्ट्र निकाय द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की मान्यता के स्थगन का क्या कारण है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक दशक में दूसरी बार ‘ग्लोबल अलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूशंस’ (Global Alliance of National Human Rights Institutions- GANHRI) ने नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी आपत्तियों का हवाला देते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की मान्यता को स्थगित कर दिया।

  • GANHRI ने वर्ष 2017 में NHRC को ‘A’ श्रेणी की मान्यता प्रदान की थी, जिसे एक वर्ष पूर्व स्थगित कर दिया गया, यह NHRC की स्थापना (1993) के बाद से इस तरह का पहला उदाहरण है।
  •  मान्यता के बिना NHRC संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ होगा।

GANHRI:

  • GANHRI संयुक्त राष्ट्र की मान्यता प्राप्त और विश्वसनीय भागीदार है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1993 में मानव अधिकारों के प्रचार और संरक्षण हेतु राष्ट्रीय संस्थानों की अंतर्राष्ट्रीय समन्वय समिति (International Coordinating Committee of National Institutions- ICC) के रूप में की गई थी।
  • वर्ष 2016 से इसे राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों का वैश्विक गठबंधन (GANHRI) के रूप में जाना जाता है और यह सदस्य-आधारित नेटवर्क संगठन है जो विश्व भर से NHRI को संगठित करता है।
  • यह 120 सदस्यों से बना है, भारत भी GANHRI का सदस्य है।
  • इसका सचिवालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।

स्थगन के कारण

  • GANHRI द्वारा प्रस्तुत किये गए कारण:
    • कर्मचारियों और नेतृत्व में विविधता का अभाव
    • उपेक्षित समूहों की सुरक्षा के लिये अपर्याप्त कार्रवाई
    • मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच में पुलिस को शामिल करना
    • नागरिक समाज के साथ अनुचित सहयोग
  • GANHRI ने कहा कि NHRC अपने जनादेश को पूरा करने में विशेष रूप से हाशिये पर स्थित समुदायों, धार्मिक अल्पसंख्यकों और मानवाधिकार के संरक्षकों के अधिकारों की रक्षा करने में बार-बार विफल रहा है।
  • NHRC की स्वतंत्रता, बहुलवाद, विविधता और जवाबदेही की कमी राष्ट्रीय संस्थानों की स्थिति (‘पेरिस सिद्धांत’) पर संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों के विपरीत है।

पेरिस सिद्धांत और ‘A’ स्थिति:

  • संयुक्त राष्ट्र के पेरिस सिद्धांत, संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1993 में अपनाए गए। महासभा अंतर्राष्ट्रीय मानदंड प्रदान करती है जिसके आधार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों (NHRI) को मान्यता दी जा सकती है।
  • पेरिस सिद्धांतों ने छह मुख्य मानदंड निर्धारित किये हैं जिन्हें NHRI को पूरा करना आवश्यक है। ये:
    • जनादेश और क्षमता
    • सरकार से स्वायत्तता
    • एक संविधि या संविधान द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता
    • बहुलवाद
    • पर्याप्त संसाधन
    • जाँच की पर्याप्त शक्तियाँ
  • GANHRI विभिन्न क्षेत्रों में 16 मानवाधिकार एजेंसियों से बना समूह है, जिसे पेरिस सिद्धांतों का पालन करने के लिये उच्चतम रेटिंग (‘A’) प्राप्त है। इसमें प्रत्येक क्षेत्र से 4 एजेंसियाँ अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और एशिया-प्रशांत शामिल हैं।
  • ‘A’ रेटिंग इन्हें मानव अधिकारों के मुद्दों पर GANHRI और संयुक्त राष्ट्र के काम में शामिल होने का अवसर देती है।
    • NHRC ने वर्ष 1999 में अपनी ‘ए’ रेटिंग प्राप्त की और वर्ष 2006, 2011 और 2017 में इसे बनाए रखा। NHRC के कर्मचारियों और अन्य नियुक्तियों में कुछ समस्याओं के कारण GANHRI ने इसमें देरी की थी। NHRC का नेतृत्व जस्टिस अरुण मिश्रा कर रहे हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC):

  • परिचय:
    • भारत का NHRC एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना 12 अक्तूबर, 1993 को मानवाधिकार अधिनियम, 1993 के संरक्षण प्रावधानों के अनुसार की गई थी, जिसे बाद में वर्ष 2006 में संशोधित किया गया था।
    • यह भारत में मानवाधिकारों का प्रहरी है अर्थात् भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा सम्मान से संबंधित अधिकार या अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध में सन्निहित होने के भारत में न्यायालय द्वारा लागू किये जाने योग्य है।
    • यह पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप स्थापित किया गया था जिसे पेरिस (अक्तूबर 1991) में मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण के लिये अपनाया गया था तथा 20 दिसंबर, 1993 को इसका समर्थन किया गया था।
  • संरचना:
    • प्रमुख सदस्य: यह एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्य और सात डीम्ड सदस्य शामिल हैं।
      • कोई व्यक्ति जो भारत का मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो इसका अध्यक्ष बनने की योग्यता रखता है।
    • नियुक्ति: अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा छह सदस्यीय समिति की अनुशंसाओं के आधार पर की जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा का उपसभापति, संसद के दोनों सदनों के मुख्य विपक्षी नेता और केंद्रीय गृह मंत्री शामिल होते हैं।
    • कार्यकाल: अध्यक्ष और सदस्य तीन वर्ष की अवधि के लिये या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, पद धारण करते हैं।
      • राष्ट्रपति कुछ परिस्थितियों में अध्यक्ष या किसी सदस्य को पद से निष्कासित कर सकता है।
    • निष्कासन: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा की गई जाँच में उन्हें केवल साबित कदाचार या अक्षमता के आरोपों पर निष्कासित किया जा सकता है।
    • प्रभाग: आयोग के पाँच विशिष्ट प्रभाग भी हैं अर्थात् विधि प्रभाग, अन्वेषण प्रभाग, नीति अनुसंधान एवं कार्यक्रम प्रभाग, प्रशिक्षण प्रभाग और प्रशासन प्रभाग।

NHRC से संबंधित चुनौतियाँ:

  • जाँच तंत्र का अभाव: 
    • NHRC में जाँच करने के लिये एक समर्पित तंत्र का अभाव है। इसके अतिरिक्त यह मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जाँच के लिये संबंधित केंद्र और राज्य सरकारों पर निर्भर है।
  • शिकायतों के लिये समय-सीमा: 
    • घटना के एक वर्ष बाद NHRC में पंजीकृत शिकायतों पर विचार नहीं किया जाता जिसके परिणामस्वरूप कई शिकायतें अनसुनी रह जाती हैं।
  • निर्णयन का अधिकार नहीं: 
    • NHRC केवल सिफारिशें कर सकता है, उसके पास स्वयं निर्णयों को लागू करने या अनुपालन सुनिश्चित करने का अधिकार नहीं है।
  • निधियों का कम आकलन:
    • NHRC को कभी-कभी राजनीतिक संबद्धता वाले न्यायाधीशों और नौकरशाहों के लिये सेवानिवृत्त के बाद के स्थान के रूप में माना जाता है। इसके अतिरिक्त अपर्याप्त धन इसके प्रभावी कामकाज़ को बाधित करता है।
  • शक्तियों की सीमाएँ:
    • राज्य मानवाधिकार आयोगों के पास राष्ट्रीय सरकार से सूचनाओं की मांग करने का अधिकार नहीं है।
    • जिसके परिणामस्वरूप उन्हें राष्ट्रीय नियंत्रण के तहत सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
      • NHRC की शक्तियाँ सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित हैं जो काफी हद तक प्रतिबंधित हैं।

आगे की राह

  • सरकार को NHRC के फैसलों को लागू करने योग्य बनाने हेतु कदम उठाने चाहिये, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सिफारिशों एवं निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। यह NHRC के हस्तक्षेपों के प्रभाव तथा जवाबदेही को बढ़ाएगा।
  • नागरिक समाज और मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं के सदस्यों को शामिल करके NHRC की संरचना में विविधता लाना चाहिये। इससे उनकी विशेषज्ञता एवं दृष्टिकोण से नई अंतर्दृष्टि ,मिलेगी साथ ही ये मानवाधिकारों के उल्लंघन को उजागर करने में अधिक व्यापक दृष्टिकोण में योगदान करेंगे।
  • NHRC को मानवाधिकारों में प्रासंगिक विशेषज्ञता और अनुभव वाले कर्मचारियों का एक स्वतंत्र कैडर स्थापित करने की आवश्यकता है। यह आयोग को पूरी तरह से जाँच करने, शोध करने एवं सिफारिशें प्रदान करने में सक्षम बनाएगा।
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