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#अहिल्याबाईहोल्कर:तेरा वैभव अमर रहे, मां! - श्रीनारद मीडिया

#अहिल्याबाईहोल्कर:तेरा वैभव अमर रहे, मां!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

श्रद्धेय राघोबा,
युद्ध में हार जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण कीर्ति होती है। यदि युद्ध जीत कर भी प्रतिष्ठा धूमिल हो जाए तो सदियों से संचित कीर्ति कलंकित हो जाती है। एक विधवा पर विजय प्राप्त कर आप कितना कीर्ति यश बढ़ा पाएंगे, तनिक विचारिएगा।…. यदि आप हार गए ….तो पेशवा राघोबा की पीढ़ियां कई जन्मों तक अपनी गरदनें उंची कर न चल सकेंगी।

कांतिमुख पर हमेशा के लिए कालिख पुत जाएगी। न मुझे युद्ध से भय है न राज का लोभ। क्षात्रधर्म के नाते बलिदान एक सहज साधना है और प्रजारक्षण हीं अंतिम साध्य। महादेव जब तक हाथ में तलवार थामने के योग्य रखेंगे…युद्धभूमि हीं मेरी पूजास्थली होगी। निर्णय आपके विवेक पर है। आप जिसमें प्रसन्नचित रहें! शिव सबको सद्बुद्धि दें!

-अहिल्याबाई

युयुत्सु पेशवा राघोबा….का युद्धोचित तन तेजी से रीढ़विहीन हो निस्तेज पड़ गया। कुछ क्षण पूर्व हीं आकाश से ऊंचा आत्मबल धूल में लोटने लगा। इंदौर के हीं दीवान यशवंत चन्द्रचूण के कहने पर राघोबा ने हमला किया था। अहिल्याबाई ने अंग्रेजों के षड्यंत्र से राघोबा को आगाह किया। राघोबा देवी अहिल्या की कूटनीति, संकल्पशक्ति एवं देशभक्ति के आगे श्रद्धापूर्वक नतमस्तक हो बिना युद्ध के हीं लौट गए।

1754 में हीं पति खांडेराव एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए। 1766 में श्वसुर मल्हार राव भी चल बसे। बचपन से हीं शिव भक्तिनी अहिल्या….इस अचानक आए आपत्तिकाल में श्वेतवस्त्रधारी तपस्विनी बन, राजमाता अहिल्याबाई होल्कर के रूप में इंदौर की शासिका बन बैठी। कुछ समय बाद एक और वज्रपात हुआ। देवी राजमाता के पुत्र, पुत्री एवं पुत्रवधू भी काल के ग्रास बन गए। समय विपरीत देखकर अपना हीं दीवान चन्द्रचूण छल कर बैठा।

अहिल्याबाई होल्कर की शादी मात्र 10 वर्ष की अल्पायु में ही मालवा में होल्कर वंशीय राज्य के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खण्डेराव के साथ हो गई थी। अहिल्याबाई दो बच्चों की मां बनी थी- उन्हें एक पुत्र और एक पुत्री थी। जब वह 29 वर्श की थी तभी उनके पति का निधन हो गया था। फिर उनके ससुर और बाद में पुत्र मालेराव, दोहित्र नत्थू, दामाद फणसे, पुत्री मुक्ता भी मां को अकेला ही छोड़ चल बसे।
…लेकिन नाम के अनुरूप अहिल्या धर्मपथ, कर्तव्यपथ पर अडिग रही। अपने जीवन का हर क्षण लोककल्याण एवं धर्म के उत्थान के लिए समर्पित इस शक्तिस्वरूपा ने देश के कई अलग-अलग भूभागों में मंदिर, कुएं एवं धर्मशालाएं बनवाए।
भाव की भूखी ऐसी प्रजावत्सल राजमाता शीघ्र हीं अपनी प्रजा के लिए लोकमाता बन गई।

कोलकत्ता से लेकर बनारस तक सड़क का निर्माण भी अहिल्याबाई ने करवाया था। इसके अलावा बनारस में अन्नपूर्णा माता का मंदिर, गयाजी में भगवान विष्णु जी का मंदिर बनवाया था। काशी, मथुरा, गया जी, अयोध्या, हरिद्वार, द्वारिका, जगन्नाथ, बद्रीनारायण और रामेश्वरम जैसे विश्वविख्यात और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थानों पर कई मंदिरों का निर्माण रानी अहिल्याबाई द्वारा करवाया गया।

अहिल्याबाई एक दार्शनिक और कुशल राजनीतिज्ञ थीं। इसी वजह से उनकी नजरों से राजनीति से जुड़ी कोई भी बात छुप नहीं सकती थी। महारानी की इन्हीं खूबियों के चलते ब्रिटिश इतिहासकार जॉन कीस ने उन्हें ‘द फिलॉसोफर क्वीन’ की उपाधि से नवाजा था। जानकारी के मुताबिक महारानी अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी गांव में हुआ था, जिसे वर्तमान में अहमदनगर के नाम से जाना जाता है।

वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निमाण माता अहिल्याबाई ने हीं 1780 में कराया था। एक धर्मपरायण विरांगना माता अहिल्याबाई भारत की नारीशक्ति का प्रतीक हैं।

महाराष्ट्र सरकार द्वारा उनके जन्मस्थान वाले जिले का नाम अहमद नगर से अहिल्याबाई नगर करना लोकमाता के प्रति एक छोटा हीं सही पर उचित सम्मान है।

आभार-पी के पाठक

 

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