क्या गलवान की घटना आज तक एक पहेली है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
गलवान में हुई घटना को अब लगभग तीन साल होने को आए। वह 15 जून, 2020 का दिन था, जब 20 भारतीय सैनिकों और खबरों के अनुसार 4 चीनियों ने लद्दाख में एलएसी की भारतीय साइड पर हुई झड़प में जानें गंवाई थीं। उसी साल अप्रैल-मई में चीनी फौज एलएसी में छह पॉइंट्स पर नाकाबंदी करने आगे बढ़ी थी। वो सीमारेखा के समीप 50 हजार सैनिकों को ले आई थी।
नाकेबंदी का मकसद उन पॉइंट्स तक भारतीय फौजों को पैट्रोलिंग करने से रोकना था, जहां तक एलएसी पर हमारा पूर्व-अनुबंधों के अनुसार आधिपत्य है। ये पॉइंट्स देप्सांग, गलवान, गोगरा, हॉटस्प्रिंग्स, पैंगोंग त्सो का उत्तरी तट और चार्डिंग-निलुंग नाला में स्थित थे। आज तीन साल बीतने के बावजूद हमें ठीक से पता नहीं है कि चीनियों ने एलएसी पर सैन्य दबाव बनाने की कोशिश क्यों की थी।
इससे चंद महीनों पूर्व ही अक्टूबर 2019 में नरेंद्र मोदी शी जिनपिंग से चेन्नई में मिले थे और वह दोनों की दूसरी अनौपचारिक शिखर-वार्ता थी। उस वार्ता में जैसा माहौल था और उसके जो नतीजे निकले, उससे तो यही लगा था कि भारत-चीन दोस्ती गहरा रही है।
एलएसी पर चीन की हरकत से पहले-पहल तो भारतीय फौज भौंचक रह गई थी। लेकिन उसने जल्द ही प्रतिक्रिया दी और नाकेबंदी के पॉइंट्स पर चीनी फौजों के सामने पोजिशन ले ली। साथ ही लद्दाख क्षेत्र में अतिरिक्त सशस्त्र बलों को तैनात किया। 15 जून की रात गलवान नदी के तट पर झड़प हुई, जिसमें 1975 के बाद पहली बार एलएसी पर सैनिक हताहत हुए। अलबत्ता सैनिक सशस्त्र थे, पर बंदूकों का इस्तेमाल नहीं किया गया। बर्फीली नदी के किनारे रात के स्याह अंधेरे में दोनों पक्षों ने एक-दूसरे से संघर्ष किया। सुबह तक दोनों पक्षों के वरिष्ठ अधिकारी हालात पर नियंत्रण करने के लिए आ पहुंचे थे।
एलएसी यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा किसी ऐसे नक्शे पर नहीं खींची गई है, जिस पर दोनों पक्षों की रजामंदी हो। 1993 बॉर्डर पीस एंड ट्रैंक्विलिटी एग्रीमेंट के अनुसार दोनों पक्षों के इस रेखा के बारे में अपने-अपने वर्शन हैं। लेकिन लद्दाख में 775 किलोमीटर लम्बी एलएसी पर आठ से नौ पॉइंट्स ऐसे हैं, जिन पर दोनों ही देशों का दावा है और वे उनकी पैट्रोलिंग करते रहते हैं। 1976 में, भारत सरकार ने एलएसी पर हमारी साइड में 65 पॉइंट्स की पहचान की थी और फौज को निर्देश दिए थे कि उनकी नियमित निगरानी करती रहे। ये पैट्रोलिंग पॉइंट्स रेखा के उत्तरवर्ती क्षेत्र में कराकोरम पास के निकट पॉइंट 1 से शुरू होते हैं और दक्षिणी लद्दाख के चुमार में पॉइंट 65 तक फैले हुए हैं।
गलवान नदी 14वां पैट्रोलिंग पॉइंट मानी गई है। इन पॉइंट्स पर बीते कई वर्षों से तनाव बढ़ता चला आ रहा था, खासतौर पर तब, जब चीनी और भारतीय पैट्रोल टीमें एक-दूसरे से टकरा जातीं। पारस्परिक रूप से निर्धारित प्रोटोकॉल के चलते शांति कायम रहती, लेकिन अकसर धक्कामुक्की या पथराव की घटनाएं हो जातीं। लेह के एसपी पी.डी. नित्या ने तो हेड्स ऑफ पुलिस कॉन्फ्रेंस के लिए लिखे एक पेपर में यह भी दर्ज किया था कि 65 पैट्रोलिंग पॉइंट्स में से 26 में हम अपनी मौजूदगी गंवा चुके थे और वहां चीनियों ने पैठ बना ली थी।
गलवान से पहले दोनों पक्षों ने सीनियर मिलिट्री कमांड स्तर पर वार्ता शुरू कर दी थी, जिससे तनाव कम हुआ था। उसके बाद से अभी तक बातचीतों के 18 दौर हो चुके हैं, जिससे छह में से चार नाकेबंदियां समाप्त की जाकर उन्हें नो-पैट्रोल जोन्स में बदला जा चुका है। अभी तक दो क्षेत्रों- देप्सांग और देमचोक के चार्डिंग-निलुंग नाला में इस समस्या का कोई समाधान नहीं खोजा जा सका है। देप्सांग की समस्या गम्भीर है, क्योंकि वहां भारतीय टीमों को पैट्रोलिंग पॉइंट्स 10, 11, 11-ए, 12 और 13 की निगरानी करने से रोका जा रहा है। यह 900 वर्गकिमी से भी बड़ा इलाका है, जिस पर भारत का आधिपत्य है।
गलवान के बाद दोनों देशों के रिश्तों में लम्बे समय तक के लिए खटास आ गई। अलबत्ता भारत पहले की तरह बड़े पैमाने पर चीनी वस्तुओं का आयात करता रहा। दोनों पक्ष विदेश मंत्री स्तर पर सम्पर्क में बने रहे। साथ ही शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन, ब्रिक्स और जी-20 जैसे मंचों पर भी संवाद बना रहा। विदेश मंत्री जयशंकर ने चीनियों पर करारनामे का उल्लंघन कर सीमारेखा पर फौजें जुटाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा चीनियों ने भारत को पांच अलग-अलग स्पष्टीकरण दिए हैं। वे इस बात पर भी कायम हैं कि भारत एक बहुत जटिल चुनौती का सामना कर रहा है!
- एलएसी किसी ऐसे नक्शे पर नहीं खींची गई है, जिस पर दोनों पक्षों की रजामंदी हो। दोनों के इस रेखा के बारे में अपने-अपने वर्शन हैं। लद्दाख में 775 किलोमीटर लम्बी एलएसी पर आठ से नौ पॉइंट्स ऐसे हैं, जिन पर दोनों का दावा है।
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