Train Accident: इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के कारण हुआ था ओडिशा रेल हादसा,कैसे?

Train Accident: इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के कारण हुआ था ओडिशा रेल हादसा,कैसे?

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सिस्टम फेल क्यों होता है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ओडिशा के बालेश्वर में हुए रेल हादसे में 275 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इस हादसे के बाद विपक्ष सरकार से इसका कारण और जवाबदेही तय करने को कह रहा है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत कई नेता रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का इस्तीफा तक मांग रहे हैं।

इस बीच आज रेल मंत्री और रेलवे बोर्ड ने खुलासा किया कि ओडिशा का ये रेल हादसा इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव के कारण हुआ।रेल मंत्री ने बताया कि हादसा इलेकट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के कारण हुआ है, लेकिन अभी रेलवे सुरक्षा आयुक्त की रिपोर्ट आनी बाकी है। उन्होंने कहा कि हमने जिम्मेदार लोगों की भी पहचान कर ली है और जल्द ही उनपर कार्रवाई होगी।

इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग का अर्थ

  • इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग रेलवे के सिग्नलिंग नेटवर्क को कंट्रोल करने का काम करता है।
  • यह एक ऐसी तकनीक है जो ट्रेनों की सुरक्षा के लिए सिग्नल और स्विच के मध्य ऑपरेटिंग सिस्टम को कंट्रोल करता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग एक ऐसा सिस्टम ईजाद करता है, जो ट्रेन की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करता है। ये सिस्टम को सिग्नल देता है कि कब ट्रेन लाइन चेंज कर सकती है।

कैसे काम करता है इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग

  • दरअसल, रेलवे का यह सिस्टम  इलेक्ट्रॉनिक बेस्ड है और यह ट्रेनों को सुरक्षित रूप से लाइन चेंज करने की अनुमति देता है और उसे कंट्रोल भी करता है। रेलवे स्टेशन के पास यार्डों में कई लाइनें मौजूद होती हैं और ट्रेन को ट्रैक बदलने के लिए इन लाइनों पर कुछ प्वाइंट्स होते हैं।
  • इन प्वाइंट्स पर कई जगह मोटर और कई सेंसर लगे होते हैं। ये सेंसर ट्रेन की स्थिति, गति और अन्य जानकारी को मापते हैं और इस जानकारी को सिग्नलिंग सिस्टम को भेजते हैं। इस प्रक्रिया के कारण ट्रेनों के रियल टाइम संकेत मिलते रहते हैं। लाइन पर लगे प्वाइंट्स और सिग्नल के बीच लॉकिंग काम करती है।
  • दरअसल, प्वाइंट सेट होने के बाद जिन लाइन पर ट्रेन का रूट सेट होता है, उसी पर सिग्नल आता है। इसे इलेक्ट्रोनिक इंटरलॉकिंग कहते हैं। इंटरलॉकिंग का फायदा ये होता है कि अगर लूप लाइन सेट है तो लोको पायलट के पास मेन लाइन का सिग्नल नहीं जाएगा और अगर मेन लाइन सेट है तो लूप लाइन का सिग्नल नहीं जाएगा।

ऐसे हुआ ओडिशा का रेल हादसा

ओडिशा के बालेश्वर में हुआ हादसे के वक्त कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन मेन लाइन पर जा रही थी और तभी उसका सिग्नल बदल गया और वह लूप लाइन पर चली गई, जहां वो पहले से खड़ी मालगाड़ी से जा टकराई। टक्कर के बाद इसके कुछ डिब्बे दूसरे पटरी पर गिर गए, जहां से बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस जा रही थी। बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस इसके कारण कोरोमंडल के डिब्बों से टकराई और उसके भी पिछले चार डिब्बे बेपटरी हो गए।

What is electronic interlocking which can be the reason for Balasore accident And why does the system fail

 

ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने सवाल किया था कि ट्रैक्स पर कवच सिस्टम क्यों नहीं था? कवच न होने के वजह से ही एक्सीडेंट हुआ। इसके जवाब में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी इंटरलॉकिंग में बदलाव के कारण हादसा हुआ है। कवच के कारण कुछ नहीं हुआ है। यह एक अलग ही कारण है। इसमें प्वाइंट मशीन और इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग शामिल है।
रेल मंत्री ने आगे बताया कि हमारा पूरा ध्यान अभी बहाली पर है। बुधवार सुबह तक यहां का पूरा काम खत्म हो जाएगा।

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इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग
इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग क्या है?
मौजूदा रेल प्रणाली में इंटरलॉकिंग रेलवे सिग्नलिंग का एक अहम हिस्सा है। इसके माध्यम से रेलवे जंक्शनों, स्टेशनों और सिग्नलिंग बिंदुओं पर ट्रेन की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित की जाती है। डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग से पहले रेलवे सिग्नलिंग अन-इंटरलॉक्ड सिग्नलिंग सिस्टम, मैकेनिकल और इलेक्ट्रो-मैकेनिकल इंटरलॉकिंग सिस्टम पर काम करती रही है।

इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (EI) एक ऐसी सिग्नलिंग व्यवस्था है जिसकेइलेक्ट्रो-मैकेनिकल या पारंपरिक पैनल इंटरलॉकिंग की तुलना में कई फायदे हैं। EI सिस्टम में इंटरलॉकिंग लॉजिक सॉफ्टवेयर पर आधारित है और इसलिए वायरिंग चेंज के बिना आसानी से कोई भी चेंज किया जा सकता है।

EI सिस्टम एक प्रोसेसर-आधारित सिस्टम है जिसमें डेली रूटीन टेस्ट होते हैं। यह सिस्टम की विश्वसनीयता में सुधार करता है और फेल्योर की आशंकाओं को कम कर देता है।

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इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटरलॉकिंग
यह काम कैसे करता है?
इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग का फायदा यह मिलता है कि अगर किसी क्रासिंग पर गेट खुला हुआ है तो सर्वर अपने आप उस रूट की रेलगाड़ियों को लाल बत्ती दिखा देता है जिससे रेलगाड़ी भी रुक जाएगी। इससे हादसे की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है।

रेलवे क्रॉसिंग से पहले लाल बत्ती पर खड़ी रेलगाड़ी तब ही चल सकती है, जब आगे क्रॉसिंग का बैरियर लग जाए। इसके बाद ही सिग्नल हरा होगा। हरे सिग्नल पर ही रेलगाड़ी आगे बढ़ सकती है।  रेलवे फाटक रेलगाड़ी के आने के पहले ही स्वतः बंद हो जाते हैं और जाने के बाद खुल जाते हैं। कई स्टेशनों में केबिन में बटन वाला पैनल हटा कर दो एलसीडी पैनल (वीडियो डिस्प्ले यूनिट) को भी लगाया गया है और यहां बैठे-बैठे स्टेशन प्रबंधक रेलगाड़ियों के आवागमन को देख सकते हैं।

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इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग
इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के फायदे क्या हैं?
मौजूदा समय में इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग प्रणाली कुछ ही रूट्स पर उपलब्ध है। रेलवे के पूरे नेटवर्क पर शुरू हो जाने से सबसे ज्यादा सुविधा स्टेशन मास्टरों को मिलेगी। अभी तक उन्हें ट्रेनों के आने की सूचना पर कुर्सी से उठकर बटन दबाने जाना पड़ता है। तब लाइन क्लियर होती है। ईआई प्रणाली से कुर्सी पर बैठकर ही वह लाइन क्लियर कर सकते हैं। इसके लिए उनके सामने कंप्यूटर सेट लगा होता है। एक क्लिक से ट्रैक बन जाता है। इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग पूरी तरह सुरक्षित एवं पारदर्शी है। इस प्रणाली से चूक की संभावना न के बराबर होती है। वहीं समय से कार्य होने का फायदा भी है। कोहरे के कारण दुर्घटना भी शून्य हो जाएगी।

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इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग
सिस्टम में खराबी कब आती है?
आमतौर पर सिस्टम में खराबी होने पर सिग्नल लाल हो जाता है। चूंकि इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटरलॉकिंग फेल्योर फ्री प्रोटेक्टेड सिस्टम है। इसलिए बाहरी हस्तक्षेप जैसे मानवीय त्रुटि, खराबी आदि के कारण समस्याएं हो सकती हैं। रेलवे के जानकारों के मुताबिक अगर कोई निर्माण कार्य चल रहा है तो हो सकता है कि केबल के तार कट जाएं। हालांकि, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बालासोर हादसे की वजह इंटरलॉकिंग में चेंज को बताया है और इसे करने वाले के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन भी दिया है।

 

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