Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
Birsa Munda:भारतीय संस्कृति को आत्मसात करने वाले बिरसा मुंडा - श्रीनारद मीडिया

Birsa Munda:भारतीय संस्कृति को आत्मसात करने वाले बिरसा मुंडा

Birsa Munda:भारतीय संस्कृति को आत्मसात करने वाले बिरसा मुंडा

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय संस्कृति को आत्मसात करने वाले कई महानायकों का पूरा जीवन एक ऐसी प्रेरणा देता है, जो देश और समाज को राष्ट्रीयता का बोध कराता है। कहा जाता है कि जो अपने स्वत्व की चिंता न करते हुए समाज के हित के लिए कार्य करता है, वह नायक निश्चित ही पूजनीय हो जाते हैं। महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा ऐसे ही नायक रहे हैं, जिन्होंने देश और समाज की खातिर अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया।

सामाजिक, विशेषकर जनजातीय समाज के हितों के लिए संघर्ष करने वाले बिरसा मुंडा ने भारत पर राज करने वाली ब्रिटिश सत्ता के विरोध में ऐसा जन आंदोलन खड़ा किया, जिसने जनजातीय समाज को एकत्रित कर जागरुक कर दिया और अंग्रेजों को भारत की भूमि छोड़कर जाना पड़ा। हालांकि इतिहास में ऐसे अनेक देशभक्त साहसी वीर हुए हैं, जिनका वर्णन आज के इतिहास में दिखाई नहीं देता।

वीर देश भक्तों के साथ ऐसा क्यों किया गया, इसका कारण यही था कि स्वतंत्रता के बाद भारत के शासकों ने प्रेरणा देने वाले नायकों के साथ पक्षपात करके उनका नाम सामने नहीं आने दिया। इसके पीछे यह भी बड़ा कारण हो सकता है कि अगर ऐसे नायकों को सामने लाते तो स्वाभाविक रूप से समाज उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता और इसी उत्सुकता के चलते देश के करोड़ों मनों में राष्ट्रीयता का प्रवाह पैदा होता।

लेकिन राजनीतिक द्वेष के चलते लम्बे समय तक राष्ट्रीयता को नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता रहा। जिसका परिणाम यह रहा कि भारत का समाज पश्चिम की धारणाओं से प्रभावित हुआ। इसी कारण भारतीय भाव का विलोपन भी होता गया। लेकिन अब इतिहास के पन्ने कुरेदे जा रहे हैं। भारत का असली इतिहास खंगालने के प्रयास भी होने लगे हैं। देश के प्रेरणा देने वाले नायक भी सामने आने लगे हैं।

वर्तमान समय में इस बात पर गंभीर चिंतन और मनन करने की आवश्यकता है कि हमारे आदर्श कैसे होना चाहिए। आज की स्थिति देखने से पता चलता है कि हमने अपने जीवन के उत्थान के लिए आदर्श बनाने ही बंद कर दिए हैं। इसलिए व्यक्ति स्वयं को पूर्ण सही मानता है।

जबकि जीवन में सीखने की निरंतरता बनी रहनी चाहिए। इसके लिए आदर्श भी बहुत जरूरी है। बिरसा मुंडा का सम्पूर्ण जीवन ऐसा ही आदर्श है, जिससे राष्ट्रीय भाव का प्रस्फुटन होता है। जहां से समाज का नायक बनने का आदर्श दिशाबोध है। बिरसा मुंडा भारतीय समाज के ऐसे आदर्श रहे हैं, जिसे हम सर ऊंचा करके गौरव के साथ याद करते हैं।

देश के लिए उनके द्वारा किए गए अप्रतिम योगदान के कारण ही उनका चित्र भारतीय संसद के संग्रहालय में लगी है। ऐसा सम्मान विरले नायकों को ही मिलता है। जनजातीय समाज की बात करें तो इस समाज से यह सम्मान अभी तक केवल बिरसा मुंडा को ही मिल सका है।

बिरसा मुंडा का जन्म झारखंड के खूंटी जिले में हुआ था। उनके मन में बचपन से ही राष्ट्र भाव की उमंग दिखाई देती थी। उनके मन में अंग्रेजी सत्ता के प्रति नफरत हो गई थी। इसके पीछे का कारण भारतीय समाज, विशेषकर जनजातीय समाज के प्रति अपनेपन की पराकाष्ठा ही थी। अंग्रेज प्रारंभ से ही भारतीय समाज और उसकी संस्कृति की आलोचना करते थे, यह बात देश से प्रेम करने वाले बिरसा मुंडा को अंदर तक चुभती थी।

यही वजह थी कि मिशनरी स्कूल में पढ़ने के बाद भी वे अपने आदिवासी तौर तरीकों की ओर लौट आए, लेकिन इन सबके बीच के उनके जीवन में एक अहम मोड़ आया जब 1894 में आदिवासियों की जमीन और वन संबंधी अधिकारों की मांग को लेकर वे सरदार आंदोलन में शामिल हुए। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतभूमि पर ऐसे कई नायक पैदा हुए जिन्होंने इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों से लिखवाया।

एक छोटी सी आवाज को नारा बनने में देर नहीं लगती, बस दम उस आवाज को उठाने वाले में होना चाहिए और इसकी जीती जागती मिसाल थे बिरसा मुंडा। बिरसा मुंडा ने बिहार और झारखंड के विकास और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम रोल निभाया। उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के अस्तित्व को अस्वीकारते हुए अपने अनुयायियों को सरकार को लगान न देने का आदेश दिया था।

बचपन का अधिकतर समय उन्होंने अखाड़े में बिताया। बिरसा मुंडा के जीवन पर गहरा असर डाला। 1895 तक बिरसा मुंडा एक सफल नेता के रुप में उभरने लगे जो लोगों में जागरुकता फैलाना चाहते थे।

1894 में आए अकाल के दौरान बिरसा मुंडा ने अपने मुंडा समुदाय और अन्य लोगों के लिए अंग्रेजों से लगान माफी की मांग के लिए आंदोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी, यही कारण रहा कि अपने जीवन काल में ही उन्हें एक महापुरुष का दर्जा मिला। बिरसा ने अपनी अंतिम सांस 9 जून 1900 को रांची कारागार में ली। देश के आदिवासी इलाकों में बिरसा भगवान की तरह पूजे जाते हैं।

Leave a Reply

error: Content is protected !!