भारत में बाल श्रम वृद्धि का क्या कारण है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कोविड-19 महामारी से विश्व काफी प्रभावित हुआ है और स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था एवं रोज़गार से संबंधित क्षेत्रों में विभिन्न कमियाँ उजागर हुई हैं। भारत भी इस संकट से अछूता नहीं रहा है। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार WHO ने भारत में लगभग 5,31,843 मौतों का आँकड़ा लगाया है।

समाज के हाशिये पर स्थित वर्गों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के लिये इस महामारी का प्रभाव अत्यंत गहन और दीर्घावधिक रहा है। पहले से ही कमज़ोर आर्थिक स्थिति में जी रहे परिवार गरीबी के कगार पर पहुँच गए हैं। इन स्थितियों ने सामाजिक असमानताओं की भी वृद्धि की है और महिलाओं एवं बच्चों के लिये दुर्व्यवहार, हिंसा एवं सुरक्षा की कमी का जोखिम उत्पन्न किया है।

यूनिसेफ (UNICEF) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) की वर्ष, 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चूँकि कोविड ने वैश्विक स्तर पर बच्चों को बाल श्रम के खतरे में डाल दिया है, इसलिये वर्ष 2022 के अंत तक बाल श्रम के मामलों में 8.9 मिलियन तक की वृद्धि हो सकती है। अमेरिकी श्रम विभाग के अनुसार आपूर्ति शृंखला में व्यवधान ने लोगों को बेरोज़गारी की ओर धकेल दिया है जिससे गरीबी में वृद्धि हुई है।

भारत में बाल श्रम से संबंधित आँकड़े:

  • जनगणना 2011 के अंतिम उपलब्ध आँकड़े के अनुसार भारत में 10.1 मिलियन बाल श्रमिक मौजूद थे।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के तहत लगभग 982 मामले दर्ज किये गए, जिनमें सबसे अधिक मामले तेलंगाना में दर्ज हुए और इसके बाद असम का स्थान रहा।
  • भारत में प्रवासी बच्चों पर कोविड-19 के प्रभाव पर ‘Aide et Action’ के अध्ययन से पता चलता है कि COVID-19 महामारी की पहली लहर के बाद ईंट निर्माण उद्योग में अपने कार्यशील माता-पिता के साथ शामिल होने वाले बच्चों की संख्या में दोगुना वृद्धि हुई है।
  • ‘Campaign Against Child Labour’ (CACL) के एक अध्ययन के अनुसार 818 बच्चों के बीच किये गए सर्वेक्षण में कार्यशील बच्चों के अनुपात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई (28.2% से बढ़कर 79.6%), जिसका मुख्य कारण था COVID-19 महामारी का प्रकोप और विद्यालयों का बंद होना।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 के प्रभावों के कारण बाल श्रम से संलग्न बच्चों की संख्या बढ़कर 160 मिलियन हो गई है और लाखों अन्य बच्चे इसके जोखिम में हैं।
  • उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र भारत में बाल श्रम के सबसे बड़े नियोक्ता राज्य हैं।

भारत में बाल श्रम के प्रमुख कारण:

  • गरीबी: कई परिवार जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं का वहन करने में असमर्थ होते हैं और अपने बच्चों को स्कूल के बजाय काम करने के लिये भेजते हैं। गरीबी कुछ बच्चों को बंधुआ मज़दूर के रूप में काम करने या काम की तलाश में अन्य स्थानों की ओर पलायन करने के लिये भी मजबूर करती है।
  • सामाजिक मानदंड: कुछ समुदायों और परिवारों में अपने बच्चों को कृषि, कालीन बुनाई या घरेलू सेवा जैसे कुछ व्यवसायों में संलिप्त करने की परंपरा पाई जाती है। कुछ समुदाय या परिवार बालिकाओं के लिये शिक्षा को महत्त्वपूर्ण या उपयुक्त नहीं मानते हैं।
  • वयस्कों और किशोरों के लिये अच्छे कार्य अवसरों की कमी: उच्च बेरोज़गारी दर और कम मज़दूरी के कारण कई वयस्क और युवा लोग सभ्य एवं सम्मानजनक कार्य अवसर पाने में असमर्थ होते हैं। यह उन्हें अनौपचारिक एवं खतरनाक कार्यों से संलग्न होने या अपने बच्चों को श्रम में धकेलने के लिये प्रेरित करता है।
  • कमज़ोर स्कूल अवसंरचना: भारत में कई स्कूलों में पर्याप्त सुविधाओं, शिक्षकों और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव पाया जाता है। कुछ स्कूल शुल्क या अन्य राशि की भी मांग करते हैं जो गरीब परिवारों के लिये अवहनीय होता है। ये कारक माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने से हतोत्साहित करते हैं या वे उन्हें स्कूल से बाहर निकाल लेते हैं।
  • आपात स्थितियाँ: प्राकृतिक आपदाएँ, संघर्ष और महामारी समाज के सामान्य कार्यकलाप को बाधित कर सकती हैं और बच्चों की भेद्यता को बढ़ा सकती हैं। कुछ बच्चे अनाथ हो सकते हैं या घर एवं बुनियादी सेवाओं तक पहुँच से वंचित हो सकते हैं। उन्हें जीवित रहने के लिये कार्य करने हेतु विवश किया जा सकता है या बाल तस्करों और अन्य अपराधियों द्वारा उनका शोषण किया जा सकता है।

कोविड महामारी ने बाल श्रम की समस्या को किस प्रकार बढ़ा दिया है?

  • जीवन स्तर में गिरावट: महामारी ने कई परिवारों के लिये आर्थिक असुरक्षा, बेरोज़गारी, गरीबी और भुखमरी की स्थिति उत्पन्न कर दी है, जिससे बच्चों को जीवित रहने के लिये काम करने हेतु मजबूर होना पड़ा है।
  • बच्चों का अनाथ होना: महामारी ने कई लोगों की जान ली, जिससे कई बच्चे अनाथ हो गए। परिणामस्वरूप, इनमें से कुछ बच्चे बाल श्रम में संलग्न होने के लिये विवश हो गए।
  • आपूर्ति शृंखला, व्यापार और विदेशी निवेश में व्यवधान ने वयस्कों के लिये श्रम की मांग और आय के अवसरों को कम कर दिया है, जिससे बच्चे शोषण के प्रति अधिक भेद्य हो गए हैं।
  • अनौपचारिकता में वृद्धि: महामारी ने अनौपचारिक कामगारों की हिस्सेदारी में वृद्धि की है, जिनकी सामाजिक सुरक्षा, बेहतर कार्य दशा और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच की कमी होती है। बच्चों को प्रायः कृषि, घरेलू कार्य, स्ट्रीट वेंडिंग, खनन और निर्माण जैसे अनौपचारिक क्षेत्रों में नियोजित किया जाता है।
  • प्रवासन: महामारी के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक कठिनाइयों और व्यवधानों के परिणामस्वरूप आंतरिक और सीमा-पार, दोनों तरह के प्रवासन में वृद्धि संभावित है। प्रवासी बच्चे, विशेष रूप से वे बच्चे जो अकेले हैं या अपने परिवारों से अलग हैं, शोषण और बलात श्रम के लिये अतिसंवेदनशील होते हैं।
  • स्कूलों का अस्थायी रूप से बंद होना: महामारी ने लाखों बच्चों की शिक्षा को बाधित किया है, विशेष रूप से उन बच्चों के लिये जिनकी ऑनलाइन शिक्षा तक पहुँच नहीं है या जो बिजली, उपकरणों या इंटरनेट की कमी जैसी बाधाओं का सामना करते है। स्कूलों के बंद होने से स्कूल छोड़ने (ड्रॉपआउट), अल्पायु विवाह, किशोर गर्भधारण और बाल श्रम का खतरा बढ़ गया है।

बाल श्रम का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: 

  • मानव पूंजी संचय में कमी: बाल श्रम बच्चों की कौशल और ज्ञान संचय करने की क्षमता को कम करता है, जिससे उनकी भविष्य की उत्पादकता और आय प्रभावित होती है।
  • गरीबी और बाल श्रम की निरंतरता: बाल श्रम अकुशल कार्य के लिये मज़दूरी को कम करता है, निर्धनता चक्र में योगदान देता है और बाल श्रम को बनाए रखता है।

तकनीकी प्रगति और आर्थिक विकास में बाधा: बाल श्रम तकनीकी प्रगति और नवाचार को बाधित करता है; इस प्रकार यह दीर्घकालिक आर्थिक विकास और प्रगति को मंद करता है।

अधिकारों और अवसरों का अभाव: बाल श्रम बच्चों को उनके शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और भागीदारी के अधिकारों से वंचित करता है, जिससे उनके भविष्य के अवसर और सामाजिक गतिशीलता सीमित हो जाती है।

  • कमज़ोर सामाजिक विकास और सामंजस्य: बाल श्रम देश के भीतर सामाजिक विकास और सामंजस्य को कमज़ोर करता है, जो स्थिरता और लोकतंत्र को प्रभावित करता है।
  • नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव: बाल श्रम बच्चों के लिये विभिन्न खतरों, शारीरिक चोटों, बीमारियों, दुर्व्यवहार और शोषण का जोखिम उत्पन्न करता है, जिससे उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य, मृत्यु दर और जीवन प्रत्याशा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

बाल श्रम को रोकने के लिये सरकार की प्रमुख पहलें

  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009): इसने संविधान में अनुच्छेद 21A को शामिल किया है जो शिक्षा को प्रत्येक बच्चे के मूल अधिकार के रूप में मान्यता देता है और 6 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिये निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का उपबंध करता है।
  • बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम (1986): यह अधिनियम खतरनाक व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों और 18 वर्ष से कम आयु के किशोरों के नियोजन पर प्रतिबंध लगाता है।
  • कारखाना अधिनियम (1948): यह किसी भी खतरनाक कार्य में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के नियोजन पर प्रतिबंध लगाता है और केवल गैर-खतरनाक प्रक्रियाओं में काम करने की अनुमति रखने वाले किशोरों (14 से 18 वर्ष) के लिये कार्य घंटों एवं दशाओं को नियंत्रित करता है।
  • राष्ट्रीय बाल श्रम नीति (1987): इसका उद्देश्य बाल श्रम पर प्रतिबंध एवं विनियमन के माध्यम से बाल श्रम का उन्मूलन करना, बच्चों एवं उनके परिवारों के लिये कल्याण एवं विकास कार्यक्रम प्रदान करना और कार्यशील बच्चों के लिये शिक्षा एवं पुनर्वास सुनिश्चित करना है।
    • राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP): यह बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चों को गैर-औपचारिक शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, मध्याह्न भोजन, वजीफा और स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने तथा फिर उन्हें औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली में शामिल करते हुए मुख्यधारा में लाने पर केंद्रित है।
  • ‘पेंसिल पोर्टल’ (Pencil Portal): इस मंच का उद्देश्य बाल श्रम मुक्त समाज के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये बाल श्रम का उन्मूलन करने में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, ज़िला प्रशासन, नागरिक समाज और आम लोगों का सहयोग प्राप्त करना है। इसे श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • ILO के अभिसमयों का अनुसमर्थन करना:भारत ने वर्ष 2017 में बाल श्रम पर ILO के दो प्रमुख अभिसमयों (conventions) की पुष्टि की है।
    • ‘द मिनिमम एज कन्वेंशन’ (1973) – संख्या 138: यह अभिसमय राज्य पक्षकारों के लिये अनिवार्य बनाता है कि वे एक न्यूनतम आयु निर्धारित करे जिसके अंदर किसी को किसी भी व्यवसाय में नियोजित करने या कार्य करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह न्यूनतम आयु, अनिवार्य स्कूली शिक्षा पूरी करने की आयु से कम नहीं होनी चाहिये और किसी भी स्थिति में 15 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिये। हालाँकि विकासशील देश आरंभ में 14 वर्ष की न्यूनतम आयु निर्दिष्ट कर सकते हैं।
    • ‘द वर्स्ट फॉर्म्स ऑफ चाइल्ड लेबर कन्वेंशन’ (1999) – संख्या 182: यह अभिसमय दासता, बलात श्रम एवं तस्करी सहित बाल श्रम के सबसे जघन्य रूपों; सशस्त्र संघर्ष में बच्चों के उपयोग; वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी एवं अवैध गतिविधियों (जैसे मादक पदार्थों की तस्करी) के लिये बच्चे के उपयोग; और खतरनाक कार्यों में बच्चों की संलग्नता (जहाँ बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा या नैतिकता को नुकसान पहुँचने की संभावना हो), के निषेध और उन्मूलन का आह्वान करता है।

इस समस्या के समाधान के लिये आगे की राह:

  • कानूनी ढाँचे और इसके प्रवर्तन को सशक्त करना: सरकार को बाल श्रम को प्रतिबंधित एवं विनियमित करने वाले कानूनों को, अंतर्राष्ट्रीय मानकों एवं अभिसमयों के अनुरूप, अधिनियमित एवं संशोधित करना चाहिये।
    • सरकार को पर्याप्त संसाधन आवंटन, क्षमता, समन्वय, डेटा, जवाबदेही और राजनीतिक इच्छाशक्ति के माध्यम से यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि कानूनों को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित एवं प्रवर्तित किया जाए।
    • श्रम कानूनों के उल्लंघन के लिये प्रदत्त दंड, गंभीर और सुसंगत होना चाहिये।
  • सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सहायता प्रदान करना: सरकार को गरीब और कमज़ोर परिवारों को व्यापक सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिये ताकि उन्हें बाल श्रम का विवशतापूर्ण सहारा लेने से रोका जा सके ।
    • इसमें नियमित नकद हस्तांतरण, सब्सिडी, पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, खाद्य सुरक्षा जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
    • गरीब परिवारों की ऋण, बचत, सूक्ष्म वित्त और अन्य आजीविका अवसरों तक पहुँच को भी सुगम बनाना चाहिये।
  • सार्वभौमिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 और संविधान के अनुच्छेद 21A के अनुरूप सभी बच्चों को 14 वर्ष की आयु तक निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त हो।
    • इसे पर्याप्त अवसंरचना, शिक्षक, पाठ्यक्रम, सामग्री, छात्रवृत्ति आदि प्रदान कर शिक्षा की गुणवत्ता, प्रासंगिकता, सुरक्षा एवं समावेशिता में भी सुधार का प्रयास करना चाहिये।
    • सरकार को स्कूल में नामांकन नहीं कराने वाले या स्कूल छोड़ देने वाले बच्चों पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये और उन्हें ब्रिज एजुकेशन, व्यावसायिक प्रशिक्षण या वैकल्पिक लर्निंग अवसर प्रदान करना चाहिये।
  • जागरूकता बढ़ाना: सरकार को नागरिक समाज संगठनों, मीडिया, निगमों और नागरिकों के सहयोग से बाल श्रम के हानिकारक प्रभावों तथा बाल अधिकारों के महत्त्व के बारे में जागरूकता का प्रसार करना चाहिये।
    • विभिन्न मंचों, अभियानों, नेटवर्क, गठबंधनों आदि का निर्माण कर बाल श्रम के विरुद्ध पहल हेतु कार्रवाई करनी चाहिये।
    • जागरूकता के प्रसार के लिये पंचायतों की भूमिका पर भी विचार किया जा सकता है।
  • आपात स्थितियों और संकटों पर प्रतिक्रिया: सरकार को संघर्ष, आपदाओं, महामारी या आर्थिक असंतुलन जैसी आपात स्थितियों एवं संकटों पर (जो बाल श्रम के जोखिम को बढ़ा सकते हैं) प्रतिक्रिया एवं कार्रवाई के लिये तैयार रहना चाहिये।
    • प्रभावित बच्चों और परिवारों को मानवीय सहायता एवं सुरक्षा (जैसे कि खाद्य, जल, आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल, मनोसामाजिक समर्थन आदि) प्रदान करनी चाहिये।
    • संकट के दौरान और उसके बाद शिक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा सेवाओं की निरंतरता बनाए रखना भी सुनिश्चित करना चाहिये।
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