2013 में आई केदारनाथ आपदा को आज 10 साल पूरे हो चुके
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आज केदारनाथ त्रिसदी को पूरे 10 साल हो चुके है। यह भयानक घटना आज भी भारतीयों के दिलों में डर की तरह बनी हुई है। उस भयंकर तबाही का नजारा शायद ही कोई भूल पाया हो। केदारनाथ प्रलय में चारों ओर सिर्फ लाशों का ढेर ही नजर आ रहा था। बता दें कि लगभग 5 हजार से ज्यादा शवों को बरामद किया गया था। उस वक्त भी चार धाम की यात्रा जारी थी और प्रतिदिन 20 से 25 हजार लोग दर्शन के लिए केदारनाथ पहुंच रहे थे। उस त्रासदी में कई होटल और मकान भी चपेट में आये, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ था। आज जबकि केदारनाथ त्रासदी को दस हो गये हैं, लोगों के जेहन में उस त्रासदी की भयावहता कायम है।
2013 में आई केदारनाथ आपदा (Kedarnath Disaster) को आज 10 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब भी उत्तराखंड के लोगों के जहन में तबाही के जख्म हैं। 16-17 जून 2013 को आई आपदा में हजारों मौतें हुईं थीं। इन 10 सालों में केदारपुरी का स्वरूप भव्य हो गया है और पूरी तरह बदल चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खास लगाव व विजन के बाद केदारपुरी भव्य हो गई है।
2013 में आए प्रलय के बाद आज केदारनाथ पूरी तरह बदल चुका है। लेकिन आंतरिक तस्वीरें आज भी वहां के लोगों की नजर के सामने आती रहती है। 16-17 जून 2013 को आई आपदा में हजारों मौतें हुईं थीं। इन 10 सालों में केदारपुरी का स्वरूप भव्य हो गया है और पूरी तरह बदल चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खास लगाव व विजन के बाद केदारपुरी भव्य हो गई है। इसी का नतीजा है कि इस साल केदारनाथ धाम के दर्शन के लिए रोजाना करीब 20 हजार भक्त पहुंच रहे हैं।
इसी का नतीजा है कि इस साल केदारनाथ धाम के दर्शन के लिए रोजाना करीब 20 हजार भक्त पहुंच रहे हैं। 16-17 जून 2013 को आई आपदा के बाद केदारनाथ में हुई तबाही का मंजर बेहद खौफनाक था।
भोलेनाथ की नगरी केदारनाथ धाम को श्रद्धा और आस्था की नगरी भी कहा जाता है। हर साल लाखों की तादात में श्रद्धालु यहां बाबा का आशीर्वाद लेने आते हैं। आज 16 जून 2023 से ठीक दस साल पहले भोलेनाथ की यही धार्मिक नगरी प्रलय का ऐसा मंजर लेकर आई, जिसे देखकर और सुनकर हर कोई स्तब्ध रह गया। सबके मन में यही प्रश्न था कि केदार धाम इससे उबर पाएगा अथवा नहीं। हालांकि, आपदा के तुरंत बाद केदारनाथ के पुनर्निर्माण कसरत शुरू हो गई थी, लेकिन इनमें गति आई वर्ष 2014 से।
यहां चौराबाड़ी झील में बादल फटने से बहकर आए भारी मलबा और विशाल बोल्डर ने तबाही ला दी थी। तब किसी ने सोचा नहीं था कि धाम में शांत बहने वाली मंदाकिनी नदी विकराल रूप लेकर तबाही मचा देगी।
केदारनाथ धाम में 2013 में जो आपदा आयी उसे विशेषज्ञ प्राकृतिक नहीं मान रहे थे। उनका यह कहना था कि यह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा है। मानव ने अपनी सुविधा के लिए नदियों-पहाड़ों का दोहन किया है जिसकी वजह से यह आपदा आयी। साल 2013 में जितनी बारिश हुई वह केदारनाथ के लिए असामान्य नहीं थी उतनी वर्षा वहां होती रहती है।
उत्तराखंड के डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर ने बताया था कि सड़क निर्माण के लिए प्रयोग हो रहे विस्फोटकों के कारण पहाड़ ज्यादा गिरे हैं। मंदाकिनी पर बन रही दो परियोजनाओं में 15 से 20 किमी की सुरंगें निर्माणाधीन थीं। ये परियोजनाएं केदारनाथ के नजदीक हैं। इन सुरंगों को बनाने के लिए भारी मात्र में विस्फोटों का प्रयोग किया गया था, जिससे पहाड़ हिल गये और टूटने लगे। मंदाकिनी नदी में पहाड़ों के बड़े-बड़े टुकड़े गिरे और आमतौर पर शांत वेग से बहने वाली मंदाकिनी मानो क्रोधित हो बिफर गयी और हजारों लोगों के लिए काल बन गयी।
उस रात सैलाब के रास्ते में आए सैकड़ों घर, रेस्टोरेंट और हजारों लोग बह गए। जब इस जलप्रलय के बारे में पता लगा तो पूरा देश शोक में डूब गया। आपदा में 4700 तीर्थ यात्रियों के शव बरामद हुए। जबकि पांच हजार से अधिक लापता हो गए थे। इतना ही नहीं आपदा के कई वर्षों बाद भी लापता यात्रियों के कंकाल मिलते रहे। इस त्रासदी में मृतकों की सही संख्या को लेकर तरह-तरह के कयास भी लगाए गए।
प्रलय के बाद भी मंदिर का उसी भव्यता के साथ खड़ा रहना किसी अचरज से कम नहीं था। आज भी लोग इसे किसी चमत्कार से कम नहीं मानते। हालांकि मंदिर को उस प्रलय से बचाने में भीम शीला ने अहम योगदान रहा, जिसकी लोग अब पूजा करने लगे।
बाढ़ और भूस्खलन के बाद बड़ी बड़ी चट्टाने मंदिर के पास आने लगी और वहीं रूक गई, जो अभी तक जस की तस है, लेकिन उसी में से एक चट्टान भी आई, जो मंदिर का कवच बन गई। इस चट्टान की वजह से ही मंदिर की एक ईंट को भी नुकसान नहीं पहुंचा। जिसके बाद इस चट्टान को भीम शिला का नाम दिया गया। यह चट्टान मंदिर के परिक्रमा मार्ग के बिल्कुल पीछे है।
लेकिन अब धाम में पहले के मुकाबले काफी बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। केदारनाथ धाम भव्य हो गया है। चारों ओर सुरक्षा की दृष्टि से त्रिस्तरीय सुरक्षा दीवार बनाई गई है। मंदाकिनी व सरस्वती नदी में बाढ़ सुरक्षा कार्य किए गए हैं।
वर्ष 2013 से पहले जहां सीमित संख्या में तीर्थयात्री केदारनाथ दर्शन को पहुंचते थे, वहीं अब केदारपुरी के संवरने के बाद यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। आपदा में केदारनाथ पैदल मार्ग ध्वस्त हो गया था। यद्यपि, केदारनाथ यात्रा के पहले पड़ाव गौरीकुंड से लेकर धाम तक की पैदल दूरी अब 19 किलोमीटर हो गई है, लेकिन यह मार्ग तीन से चार मीटर चौड़ा किया गया है।
वर्ष 2019 से धाम में तो स्थिति यह हो गई है कि दर्शन के लिए मंदिर को पूरी रात खुला रखना पड़ रहा है। कोरोनाकाल में जरूर तीर्थ यात्रियों की संख्या सीमित रही, लेकिन वर्ष 2022 के बाद अब इस वर्ष 2023 भी तीर्थ यात्रियों का सैलाब उमड़ रहा है और प्रतिदिन 20 हजार से अधिक तीर्थयात्री दर्शन को पहुंच रहे हैं।
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