क्या भारत में CBI की कार्यप्रणाली लचर है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
तमिलनाडु सरकार ने घोषणा की है कि उसने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (Delhi Special Police Establishment- DSPE) अधिनियम, 1946 की धारा 6 के तहत केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली है।
- मिज़ोरम, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल, झारखंड, पंजाब और मेघालय ने मार्च 2023 तक CBI को दी गई अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो:
- CBI की स्थापना गृह मंत्रालय के एक संकल्प द्वारा की गई थी और बाद में इसे कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया, जो वर्तमान में एक संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य कर रहा है।
- इसकी स्थापना की सिफारिश भ्रष्टाचार निवारण पर बनी संथानम समिति ने की थी।
- CBI, DSPE अधिनियम, 1946 के तहत काम करती है। यह न तो संवैधानिक है और न ही वैधानिक निकाय है।
- यह रिश्वतखोरी, सरकारी भ्रष्टाचार, केंद्रीय कानूनों के उल्लंघन, बहु-राज्य संगठित अपराध और बहु-एजेंसी या अंतर्राष्ट्रीय मामलों से संबंधित मामलों की जाँच करता है।
भारत में CBI की कार्यप्रणाली:
- पूर्व अनुमति का प्रावधान:
- CBI को केंद्र सरकार और उसके अधिकारियों में संयुक्त सचिव एवं उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों द्वारा किये गए किसी अपराध का परीक्षण या जाँच करने से पहले केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
- हालाँकि वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अवैध घोषित किया, साथ ही दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम की धारा 6A के आधार को वैध माना, जो संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के अधिकारियों को भ्रष्टाचार के मामलों में CBI द्वारा प्रारंभिक जाँच का सामना करने से भी सुरक्षा प्रदान करता है, यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन था।
- सीबीआई के लिये सामान्य सहमति सिद्धांत:
- CBI के लिये राज्य सरकार की सहमति विशिष्ट या “सामान्य” मामले में हो सकती है।
- आमतौर पर राज्यों द्वारा अपने राज्यों में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की निर्बाध जाँच में CBI की सहायता प्राप्त करने के लिये सामान्य सहमति दी जाती है।
- यह अनिवार्य रूप से डिफॉल्ट के रूप में सहमति है, जिसका अर्थ है कि CBI पहले से दी गई सहमति के आधार पर जाँच प्रारंभ कर सकती है।
- सामान्य सहमति के अभाव में CBI को प्रत्येक व्यक्तिगत मामले में छोटी-छोटी कार्रवाई करने से पहले राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता होगी।
CBI के सामने चुनौतियाँ:
- स्वायत्तता का अभाव:
- इसके कामकाज़ में राजनीतिक हस्तक्षेप, प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
- संसाधन की कमी:
- CBI को बुनियादी संरचना, पर्याप्त जनशक्ति और आधुनिक उपकरणों की कमी का भी सामना करना पड़ता है।
- साक्ष्य प्राप्त करने के संदिग्ध तरीकों और नियम पुस्तिका का पालन करने में अधिकारियों की विफलता से संबंधित ऐसे कई मामले हैं।
- कानूनी सीमाएँ:
- यह एजेंसी वर्तमान में पुराने कानून के तहत कार्य करती है, जो समकालीन चुनौतियों को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करते हैं।
- परिणामस्वरूप इसके अधिकार क्षेत्र में अस्पष्टता, पारदर्शिता का अभाव एवं अपर्याप्त जवाबदेही सहित कई मुद्दे सामने आए हैं।
- प्रक्रियात्मक विलंब:
- लंबी कानूनी और अदालती प्रक्रियाएँ CBI के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती हैं।
- तलाशी लेने हेतु वारंट प्राप्त करने, बयान दर्ज करने और न्यायालय में साक्ष्य पेश करने में अधिक समय लगने के कारण जाँच पूरी करने तथा सज़ा निर्धारित करने में भी विलंब हो सकता है।
CBI में संस्थागत सुधारों की आवश्यकता:
- स्वतंत्रता और स्वायत्तता:
- CBI को केंद्र सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण से पृथक एक स्वतंत्र जाँच एजेंसी के रूप में स्थापित करना।
- राजनीतिक अथवा नौकरशाही प्रभावों के अनुचित हस्तक्षेप के बिना जाँच करने के लिये कार्यात्मक स्वायत्तता सुनिश्चित करना।
- CBI की स्वायत्तता और निष्पक्षता की रक्षा के लिये कानूनी प्रावधानों को मज़बूत करना।
- क्षेत्राधिकार और समन्वय:
- राज्य पुलिस बलों के साथ संघर्ष से बचने के लिये अधिकार क्षेत्र की सीमाओं का स्पष्ट होना और सुचारु समन्वय सुनिश्चित करने तथा प्रभावी जाँच के लिये राज्य एजेंसियों के साथ सहयोग एवं सूचना साझा करने की व्यवस्था सुनिश्चित करना।
- कानूनी ढाँचा:
- जाँच संबंधी शक्तियों को बढ़ाने के लिये मौजूदा कानूनों की समीक्षा और अद्यतन करना, जाँच तकनीकों को वैधानिक समर्थन प्रदान करना तथा जाँच एवं परीक्षण में तेज़ी लाने के लिये कानूनी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना।
- तकनीकी उन्नयन:
- डिजिटल फोरेंसिक, डेटा विश्लेषण और अपराध की गंभीरता तय करने के लिये CBI को आधुनिक उपकरणों से लैस करने के लिये उन्नत प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
CBI को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- कोलगेट मामला:
- वर्ष 2013 में न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने CBI को “अपने मालिक की आवाज़ में बोलने वाला एक पिंजरे का तोता” (a caged parrot speaking in its master’s voice) बताया।
- CBI बनाम CBI मामला:
- CBI बनाम CBI मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि CBI के निदेशक को हटाने/छुट्टी पर भेजने की शक्ति, चयन समिति में निहित है, न कि केंद्र सरकार के पास।
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला तब सुनाया जब CBI निदेशक ने बिना उसकी मर्जी के उसे छुट्टी पर भेजने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी थी।
आगे की राह
- वैधानिक समर्थन:
- कई समितियों ने सुचारु कामकाज़ और परिचालन स्वायत्तता सुनिश्चित करने हेतु CBI को वैधानिक दर्जा देने का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए उपायों में बिना किसी बाहरी प्रभाव के जाँच शुरू करने, चार्जशीट दाखिल करने और मामलों पर मुकदमा चलाने का अधिकार देना शामिल है।
- मुखबिर का संरक्षण:
- CBI के भीतर मुखबिरों की सुरक्षा, पारदर्शिता सुनिश्चित करने, भ्रष्टाचार को उजागर करने और गोपनीय रिपोर्टिंग तंत्र के माध्यम से प्रतिशोध से कदाचार की रिपोर्ट करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा हेतु कानून में प्रावधान शामिल किये जाने चाहिये।
- क्षमता निर्माण:
- नए कानून के लिये CBI कर्मियों के कौशल, ज्ञान और समझ को बढ़ाने हेतु नियमित प्रशिक्षण एवं पेशेवर विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिये जिससे वे जटिल मामलों को प्रभावी ढंग से संभालने में सक्षम हो सकें।
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