4 जुलाई 1976 को हुए ‘ऑपरेशन थंडरबोल्ट’ को इज़रायली का सबसे कठिन ऑपरेशन माना जाता है,कैसे?
जो आज 4 जुलाई 1976 को हुआ है, ना पहले हुआ था, ना आगे होगा
‘युगांडा का कसाई’ भी ना रोक पाया इज़रायल को!
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
27 जून, 1976 को रविवार का दिन था. इजरायल की राजधानी तेल अवीव के बेन गूरियन इंटरनैशनल एयरपोर्ट से एक प्लेन उड़ान भरता है. फ़्लाइट नंबर 139. प्लेन में क्रू को मिलाकर कुल 259 लोग बैठे हुए थे. प्लेन का डेस्टिनेशन पेरिस था. लेकिन रास्ते में वो ग्रीस की राजधानी एथेंस लैंड हुआ. एथेंस से जैसे ही प्लेन ने दुबारा उड़ान भरी, एक बड़ी गड़बड़ हो गई.
प्लेन के पायलट कैप्टन मिशेल बाकोस ने कुछ तेज आवाज़ें सुनीं. उन्होंने मुख्य इंजिनियर को भेजा. जैसे ही इंजिनियर ने कॉकपिट का दरवाजा खोला, सामने एक शख़्स एक हाथ में रिवॉल्वर और दूसरे हाथ में हथगोला लिए खड़ा था. इस शख़्स का नाम था विलफ्रेड बोस. उसके साथ में एक लड़की भी थी. दोनों तेज़ी से कॉकपिट के अंदर घुसे और और प्लेन को अपने क़ब्ज़े में ले लिया. विलफ्रेड बोस ने पायलट से प्लेन लीबिया की ओर मोड़ने को कहा. प्लेन अब अपने डेस्टिनेशन से दूसरी दिशा में जा रहा था. लेकिन कहां, ये बात ना पाइलट को पता थी, ना यात्रियों को.
कुछ घंटे बाद प्लेन एक एयरपोर्ट पर उतारा. प्लेन का दरवाज़ा खुला, और भारी भरकम काया वाला एक शख़्स प्लेन के अंदर घुसा. यात्रियों ने जैसे ही उसे देखा, उन्हें समझ आ गया, वो पूर्वी अफ़्रीका के देश युगांडा पहुंच चुके हैं. प्लेन में दाखिल होने वाला शख़्स और कोई नहीं, युगांडा का राष्ट्रपति, ईदी अमीन दादा(Idi Amin) था. ईदी अमीन- जिसे युगांडा का कसाई कहा जाता था,
प्लेन किसने हाईजैक किया था, और क्यों?
दरअसल प्लेन के दो मुख्य हाइजैकर जर्मनी के एक आतंकवादी संगठन- रिवॉल्यूशनरी सेल्स (RZ) के मेम्बर थे. RZ ने पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन नाम के एक संगठन के साथ मिलकर इस प्लेन हाइजैक की प्लानिंग की थी. और उनका उद्देश्य था अपने 51 साथियों की रिहाई. जिनमें से 40 इज़रायल की जेल में बंद थे.
1976 तक ईदी अमीन इज़रायल का कट्टर दुश्मन बन चुका था. इसलिए जब उसे प्लेन हाईजैकिंग का पता चला, उसने खुले हाथों आतंकियों को मदद पेश की. हाइजैक हुआ प्लेन युगांडा के एंताबे एयरपोर्ट पर उतारा गया था. इज़रायल में अधिकतर लोगों ने एंताबे का नाम भी नहीं सुना था. सरकार परेशान थी. आधिकारिक पॉलिसी के अनुसार वो आतंकियों से कोई बात नहीं कर सकते थे. लेकिन इस बार स्थिति विकट थी.प्लेन में 90 के क़रीब इज़रायली नागरिक थे. उनके परिवार वाले किसी भी हालत में अपने लोगों की रिहाई चाहते थे. उन्होंने सरकार पर आतंकियों से बातचीत करने का दबाव डाला.
सरकार के पास दो दिन का वक्त था. हाइजैकर्स ने धमकी दी थी कि इसके बाद वो लोगों को मारना शुरू कर देंगे. इन दो दिनों में हाइजैकर्स ने एक और काम किया. उन्होंने इज़रायली और नॉन इज़रायली लोगों को अलग अलग कर दिया. और नॉन इज़रायली लोगों को रिहा कर उनके देश भेज दिया गया. इज़रायल का दावा है कि हाइजैकर्स का इरादा यहूदी लोगों को ग़ैर यहूदियों से अलग करने का था. हालांकि इस घटना पर किताब लिखने वाले इतिहासकार Saul David के अनुसार रिहा किए गए लोगों में कुछ यहूदी भी थे, इसलिए ये बात पूरी तरह सही नहीं कि हाइजैकर्स यहूदियों को निशाना बना रहे थे.
इजरायल का प्लान
कई दिनों की प्लानिंग के बाद एक ऑपरेशन की रूप रेखा बनी. प्लान यूं था कि इज़रायली नेवी के कमांडो को युगांडा की विक्टोरिया झील में ड्रॉप किया जाएगा. इसके बाद वो लोग एक रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देंगे और आतंकियों को मार गिराएंगे. इसमें बड़ा सवाल था कि इज़रायली नागरिकों को वापस कैसे लाया जाएगा? ईदी अमीन की मंज़ूरी के बिना ये काम नहीं हो सकता था. इसलिए इज़रायल की सरकार ने ईदी अमीन को मनाने की कोशिश शुरू कर दी. कई डिप्लोमेटिक चैनल्स का इस्तेमाल किया गया.
इसके बाद एक दूसरे ऑपरेशन की रूप रेखा बनी. ऑपरेशन थंडरबोल्ट. इस ऑपरेशन की प्लानिंग के पीछे एक दिलचस्प वाक़या है. हुआ यूं कि जब इज़रायली सुरक्षाबल बंधकों को बचाने के रास्ते ढूंढ रहे थे. उन्हें एक नक़्शे का पता चला. जैसा पहले बताया, एक वक्त में इज़रायल और युगांडा के रिश्ते अच्छे थे.तब इज़रायल की कई कम्पनियां युगांडा में व्यापार करती थीं. इत्तेफ़ाक से इन्हीं में से एक कम्पनी ने एंताबे एयरपोर्ट की वो इमारत बनाई थी, जहां बंधकों को रखा गया था. कम्पनी का एक इंजिनीयर एक रोज़ अपने मेज़ की दराज में कुछ ढूंढ रहा था, जब उसे ये नक़्शा मिला. उसने ये जाकर सुरक्षा बलों को दे दिया. इस नक़्शे के बल पर अब इज़रायल ने नए रेस्क्यू ऑपरेशन की प्लानिंग की. मोसाद(Mossad) ने रिहा किए गए यात्रियों से जाकर बात की. उनमें से एक को बिलकुल ठीक ठीक याद था कि हाईजैकेर कितने हैं, और उनके पास कौन कौन से हथियार हैं.
हाईजैकेर्स ने धमकी दी थी कि वो 1 जुलाई के बाद यात्रियों को मारना शुरू कर देंगे. इज़रायली सरकार ने 30 जून को ऐलान किया कि वो हाईजैकेर्स से बात करने को तैयार है. इस तरह उन्हें तीन दिन की और मोहलत मिल गई. अब थी ऑपरेशन की बारी. सबसे बड़ी दिक़्क़त ये थी कि इज़रायल और युगांडा के बीच साढ़े चार हज़ार किलोमीटर की दूरी थी. प्लेन को जाकर वापस भी लौटना था और कोई विमान बिना रिफ़्यूल किए, इतनी लम्बी यात्रा नहीं कर सकता था. इज़रायल के पास हवा में रिफ़्यूलिंग की क्षमता भी नहीं थी. ऐसे में उन्हें यात्रा के बीच में पड़ने वाले किसी देश की मदद की ज़रूरत थी.
रेस्क्यू ऑपरेशन
दोपहर 1 बजकर बीस मिनट पर दो लॉकहीड C- 130 हरक्यूलीज विमान मिशन के लिए रवाना हुए. इनमें से एक के अंदर 200 कमांडो, 1 काली मर्सडीज़ और दो लैंड रोवर गाड़ियां थीं. एक तीसरा प्लेन भी था, जो ख़ाली था. इनके पीछे पीछे चल रहे थे दो बोईंग- 707. ये सभी हवा में सिर्फ़ 40 फ़ीट की ऊंचाई पर उड़ान भर रहे थे. ताकि युगांडा के पड़ोसी देशों के रडार में ना आ सकें. हर प्लेन का अपना अलग मिशन था. एक प्लेन ख़ाली रखा गया था ताकि यात्रियों को वापस ले जा सके. एक बोईंग 707 केन्या में लैंड किया गया. इसे एक हवाई अस्पताल की तरह इस्तेमाल किया जाना था. दूसरा बोईंग एक कमांड पोस्ट की तरह काम कर रहा था, जो पूरे ऑपरेशन के दौरान एयर पोर्ट के ऊपर चक्कर लगाता रहा.
अब बात उस मर्सडीज़ और दो लैंड रोवर गाड़ियों की जो पहले विमान के अंदर रखी थी. इन्हें क्यों लाया गया था? मोसाद को मिली इंटेलिजेन्स के अनुसार ईदी अमीन ऐसी ही एक काली मर्सिडीज़ का इस्तेमाल करता था. और उसके पीछे लैंड रोवर में उसके गार्ड्स रहते थे. प्लान यूं था कि कमांडोज का एक ग्रुप इस मर्सिडीज़ में बैठकर टर्मिनल की तरफ़ जाएगा. ताकि एयरपोर्ट पर खड़े युगांडा के सुरक्षा बलों को लगे कि ईदी अमीन यात्रा से वापस आ रहा है. इस तरह वो लोग उस इमारत के ज़्यादा से ज़्यादा नज़दीक पहुंच सकते थे, जिसमें बंधकों को रखा गया था.
पहला हरक्यूलीज 11 बजे एंताबे एयरपोर्ट पर लैंड हुआ. उसका पीछे का दरवाज़ा पहले से खोलकर रखा गया था, ताकि गाड़ियां और कमांडोज जल्द से जल्द उतारे जा सकें. काली मर्सिडीज़ में बैठकर पहली यूनिट पुराने टर्मिनल की तरफ़ बढ़ी जहां, बंधकों को रखा गया था. एक यूनिट ने रनवे को सम्भाला ताकि उसे ख़ाली रखा जा सके. डर था कि ईदी अमीन के लोग उनकी वापसी की फ़्लाइट रोकने के लिए रनवे पर ट्रक खड़े कर सकते थे. एक तीसरी यूनिट उस खाली प्लेन की रक्षा में तैनात थी, जिससे बंधकों को वापस ले ज़ाया जाना था. एक और यूनिट का काम था,एयर पोर्ट पर खड़े सभी जेट विमानों को नष्ट करना ताकि वो उनका पीछा ना कर सकें. पूरे मिशन के लिए एक घंटे की समय सीमा तय की गई थी. अब देखिए ऑपरेशन के दौरान क्या हुआ?
नेतान्याहू की यूनिट मर्सिडीज़ और लैंड रोवर में आगे बढ़े. लेकिन शुरुआत में ही उनके प्लान को एक बड़ा झटका लग गया. उन्हें उम्मीद थी एयरपोर्ट के गार्ड उन्हें राष्ट्रपति का क़ाफ़िला समझेंगे लेकिन गार्ड्स ने उन्हें देखते ही रुकने का आदेश दिया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मोसाद से एक गलती हो गई थी. उन्हें नहीं पता था कि ईदी अमीन ने कुछ दिनों पहले ही अपनी गाड़ी बदल ली थी. और अब वो काली नहीं सफ़ेद मर्सिडीज़ से चलता था. नेतान्याहू के पास वक्त कम था. उन्होंने गार्ड्स पर गोली चलाने का आदेश दिया. लेकिन इस चक्कर में उनसे एक और गलती हो गई. गोली चलाने से पहले बंदूक़ में साइलेंसर लगाना भूल गए. लिहाज़ा गोली की आवाज़ पूरे एयरपोर्ट में सुनाई दे गई, और युगांडा के गार्ड्स सतर्क हो गए.
इज़रायली फ़ोर्सेस के पास जो सर्प्राइज़ फ़ैक्टर था, वो ख़त्म हो चुका था. अब उन्हें और भी तेज़ी से काम करना था. इसलिए सभी कमांडो तेज़ी ने पुराने टर्मिनल की तरफ़ दौड़े. उन्होंने मेगाफ़ोन से घोषणा की
ज्यां मैमूनी नाम का एक 19 साल का लड़का वक्त पर नीचे नहीं झुक पाया और ग़लतफ़हमी में उसे गोली लग गई. दो और बंधकों की भी गोली लगने से जान चली गई. इन सभी को एक कमरे में रखा गया था. जिसमें सिर्फ़ हाई जैकर्स के लीडर, विलफ्रेड बोस को जाने की इजाज़त थी. एक बंधक ने बाद में बताया था,
इस बात का फ़ायदा इज़रायली फ़ोर्सेस को मिला. फुर्ती से ऑपरेशन को अंजाम देते हुए उन्होंने विलफ्रेड बोस और उसके सात साथियों को मार गिराया. इस काम में सिर्फ़ 6 मिनट लगे. इतनी देर में युगांडा के सैनिकों ने भी जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी. इज़रायली फ़ोर्सेस के साथ 20 मिनट चली मुठभेड़ में युगांडा के 45 सैनिक मार डाले गए. इसके बाद रेस्क्यू टीम ने जल्दी जल्दी बंधकों को विमान में बिठाया और उसे रवाना कर दिया. एक दूसरी यूनिट से एयर पोर्ट पर खड़े सभी जेट विमानों को भी नष्ट कर डाला, ताकि उनका पीछा ना हो सके. इसके बाद वो लोग भी अपने विमान में बैठे और वापस लौट गए. ऑपरेशन थंडरबोल्ट पूरा हो गया.
ऑपरेशन थंडरबोल्ट को विदेशी ज़मीन पर हुआ दुनिया का सबसे हैरतंगेज़ और ख़तरनाक कमांडो मिशन माना जाता है. लेकिन आधिकारिक तौर पर इज़रायल में इसे ऑपरेशन योनातन के नाम से जाना जाता है. इसलिए क्योंकि इस ऑपरेशन के दौरान योनातन नेतान्याहू वो इकलौते सैनिक थे, जिनकी जान चली गई थी. एक बंधक को बचाते हुए उन्हें गोली लगी और उन्होंने एयरपोर्ट पर ही दम तोड़ दिया. इस मौत ने उन्हें इज़रायल में हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर दिया. इज़रायल आज भी उन्हें अपना सबसे बड़ा हीरो मानता है.
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