भारतीय राज्यों के लिये राजस्व घाटे को कम करने के क्या लाभ हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय राज्यों की कुल राजस्व में एक तिहाई से अधिक हिस्सेदारी होती है और यह संयुक्त सरकारी व्यय के 60% भाग का व्यय करते हैं और सरकारी उधार में लगभग 40% की हिस्सेदारी रखते हैं। राज्यों के राजकोषीय परिचालन के आकार को देखते हुए उनके वित्त की अद्यतन समझ रखना महत्त्वपूर्ण है ताकि देश की राजकोषीय स्थिति पर साक्ष्य-आधारित निष्कर्ष निकाले जा सकें।

हालाँकि, व्यक्तिगत राज्य बजट डेटा के एकत्रीकरण के अभाव के कारण, सामान्य सरकारी वित्त का एक समेकित दृष्टिकोण आसानी से उपलब्ध नहीं है। प्रत्येक वर्ष यह डेटा भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा ‘राज्यों के वित्त पर वार्षिक अध्ययन’ (Annual Study on State Finances) के प्रकाशन के बाद ही उपलब्ध होता है। नवीनतम प्रकाशन में वर्ष 2023-24 के लिये राज्यों के व्यक्तिगत बजट के प्रमुख आँकड़ों के आधार पर राज्यों की वित्तीय स्थिति का खुलासा किया गया है।

यह आँकड़ा 17 प्रमुख राज्यों का है जो सभी राज्यों के कुल व्यय में 90% से अधिक की हिस्सेदारी रखते हैं। इस प्रकार, उनके बजट के राजकोषीय मुद्दे भारत में राज्यों के वित्त की स्थिति को दर्शाते हैं। भारतीय राज्यों ने कोविड-19 महामारी के बाद से उल्लेखनीय राजकोषीय समेकन दिखाया है, लेकिन उन्हें अभी भी अपने राजस्व घाटे को नियंत्रित करने में राजकोषीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

भारतीय राज्यों ने राजकोषीय समेकन के मामले में कैसा प्रदर्शन किया है?

  • राजकोषीय समेकन:
    • राजकोषीय समेकन (Fiscal consolidation) परिव्यय और राजस्व नीतियों को समायोजित करके राजकोषीय घाटे एवं सार्वजनिक ऋण को कम करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
    • भारतीय राज्यों ने कोविड-19 महामारी के बाद उल्लेखनीय राजकोषीय समेकन हासिल किया है, जिससे उनका राजकोषीय घाटा वर्ष 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 4.1% से घटकर वर्ष 2023-24 (BE) में सकल घरेलू उत्पाद का 2.9% रह गया है।
  • उल्लेखनीय राजकोषीय समेकन:
    • कोविड-19 की चरम अवधि के दौरान राजस्व में संकुचन के बावजूद भारतीय राज्य, राजकोषीय रूप से विवेकपूर्ण बने रहने में सफल रहे।
    • राज्यों ने महामारी के दौरान स्वास्थ्य व्यय और आजीविका के लिये आपातकालीन प्रावधान प्रदान करने के लिये केंद्र सरकार के साथ समन्वय किया।
    • राज्यों ने अपने परिव्यय की नवीन प्राथमिकता तय की और राजकोषीय घाटे पर तुरंत ही नियंत्रण पा लिया।
    • वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) संग्रह में सुधार और केंद्रीय राजस्व में वृद्धि से प्रेरित उच्च कर हस्तांतरण से राज्यों को लाभ मिला।
    • महामारी के बाद राज्यों के गैर-GST राजस्व में भी सुधार देखा गया।

भारतीय राज्यों के समक्ष विद्यमान राजकोषीय चुनौतियाँ: 

  • राजकोषीय घाटे में कमी के बावजूद, भारतीय राज्यों को अभी भी राजकोषीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से अपने राजस्व घाटे को नियंत्रित करने के संबंध में, जिसमें राजकोषीय घाटे के अनुपात में गिरावट नहीं आई।
    • राजस्व घाटा किसी वित्तीय वर्ष में राजस्व आय पर राजस्व व्यय की अधिकता को संदर्भित करता है।
    • राजस्व संबंधी चुनौतियाँ:
      • आर्थिक गतिविधि और कर संग्रह पर कोविड-19 महामारी का प्रभाव।
      • GST राजस्व और मुआवजे की अनिश्चितता एवं अस्थिरता।
      • केंद्र से कर हस्तांतरण और उसके फ़ॉर्मूला-आधारित आवंटन पर निर्भरता।
      • GST के अंतर्गत विभिन्न करों के समाहित होने से राजकोषीय स्वायत्तता का क्षरण।
      • उपयोगकर्ता शुल्क (user charges), फीस (fees) जैसे गैर-कर राजस्व जुटाने की सीमित गुंजाइश।
      • संपत्ति कर, स्टांप ड्यूटी जैसे स्वयं के करों को एकत्र करने से जुड़े अनुपालन संबंधी और प्रशासनिक मुद्दे।
  • राजस्व घाटे वाले प्रमुख राज्य:
    • 17 प्रमुख राज्यों में से 13 राज्य राजस्व घाटे की स्थिति रखते हैं और 7 राज्यों में राजस्व घाटा उनके राजकोषीय घाटे का मुख्य प्रेरक है।
      • ये राज्य हैं: आंध्र प्रदेश, हरियाणा, केरल, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल।
      • इनका ऋण-GSDP अनुपात (debt to GSDP ratios) भी अधिक है।
  • व्यय संबंधी चुनौतियाँ:
    • महामारी और जनसांख्यिकीय कारकों के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाओं की बढ़ती मांग।
    • विकास और रोज़गार को समर्थन देने के लिये अवसंरचना और शहरी विकास में निवेश की आवश्यकता।
    • गरीबों और कमज़ोर वर्गों के लिये विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं एवं सब्सिडी के राजकोषीय निहितार्थ।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के लिये पेंशन और वेतन देनदारियों का बोझ।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और अन्य संस्थाओं को दी गई गारंटी, ऋण आदि से उत्पन्न होने वाली आकस्मिक देनदारियाँ।
    • वर्षों से संचित ऋण स्टॉक की संवहनीयता और सेवाप्रदायता (सर्विसिंग)।

राजस्व घाटे के फिर से उभरने के पीछे के कारक: 

  • कोविड-19 महामारी और विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के कारण राजस्व व्यय पर दबाव।
  • संरचनात्मक और चक्रीय कारकों के कारण आर्थिक विकास एवं कर राजस्व में मंदी।
  • केंद्र सरकार द्वारा GST की कमी के लिये अपर्याप्त मुआवजा।
  • वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान आदि प्रतिबद्ध देनदारियों के कारण राजस्व व्यय में लचीलेपन का अभाव।

भारतीय राज्य अपने राजस्व घाटे को कैसे कम कर सकते हैं?

  • भारतीय राज्य विभिन्न उपायों को अपनाकर अपने राजस्व घाटे को कम कर सकते हैं, जैसे:
    • सार्वजनिक व्यय को कम करना, विशेषकर गैर-उत्पादक या अनावश्यक वस्तुओं पर, जैसे कि अत्यधिक सब्सिडी, प्रशासनिक लागत आदि।
    • राजस्व बढ़ाना—विशेष रूप से कर और गैर-कर स्रोतों से, जैसे कर अनुपालन में सुधार लाना, कर आधार का विस्तार करना, कर दरों को तर्कसंगत बनाना या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की आय में वृद्धि करना आदि।
    • तेज़ आर्थिक वृद्धि प्राप्त करना, जिससे राजस्व संग्रह को बढ़ावा मिल सकता है और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर व्यय कम हो सकता है।
    • केंद्र सरकार से प्राप्त ब्याज-मुक्त ऋण या अनुदान को राजस्व घाटे में कमी लाने के लक्ष्यों से जोड़ना, जो राजकोषीय अनुशासन के लिये प्रोत्साहन पैदा कर सकता है।
    • वित्त आयोगों (FCs) द्वारा सुझाए गए दृष्टिकोणों के आधार पर राजस्व घाटे में कमी के लिये प्रदर्शन प्रोत्साहन अनुदान लागू करना।

भारतीय राज्यों के लिये राजस्व घाटे को कम करने के क्या लाभ हैं?

  • राजकोषीय स्वास्थ्य और राज्य वित्त की स्थिरता में सुधार करना तथा उनके ऋण बोझ को कम करना।
  • व्यय की गुणवत्ता को बढ़ाना और कुल व्यय में पूंजीगत व्यय का हिस्सा बढ़ाना।
  • आधारभूत संरचना और मानव पूंजी में सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देना, जो आर्थिक वृद्धि और विकास को बढ़ावा दे सकता है।
  • राज्य के वित्त में निवेशकों और लेनदारों की विश्वसनीयता एवं भरोसे को सुदृढ़ करना।
  • व्यापक आर्थिक स्थिरता (macroeconomic stability) और केंद्र सरकार के साथ समन्वय को सुनिश्चित करना।

आगे की राह:

  • एक विश्वसनीय और संवहनीय राजकोषीय समायोजन योजना अपनाना:
    • अल्पकालिक और दीर्घकालिक राजकोषीय उद्देश्यों को संतुलित किया जाए।
    • प्रत्येक राज्य के आर्थिक और संस्थागत संदर्भ को ध्यान में रखा जाए।
    • लागत में कटौती करने और राजस्व बढ़ाने के उपायों को चिह्नित किया जाए तथा इन्हें लागू किया जाए।
  • राजकोषीय पारदर्शिता और जवाबदेहिता में सुधार लाना:
    • बजटीय प्रदर्शन और परिणामों पर समयबद्ध एवं विश्वसनीय डेटा प्रदान किया जाए।
    • वित्त आयोगों और FRBM अधिनियमों द्वारा निर्धारित राजकोषीय नियमों एवं लक्ष्यों का पालन किया जाए।
    • राजकोषीय प्रदर्शन और परिणामों की नियमित रूप से निगरानी एवं मूल्यांकन हो।
  • राजकोषीय क्षमता और स्वायत्तता बढ़ाना:
    • कर संरचना और प्रशासन को तर्कसंगत बनाया जाए।
    • राजस्व स्रोतों में विविधता लाई जाए।
    • परिसंपत्तियों और संसाधनों का लाभ उठाया जाए।
    • प्रतिस्पर्द्धी दरों पर बाज़ार उधारी तक पहुँच बनाई जाए।
  • राजकोषीय सहयोग और समन्वय को बढ़ावा देना:
    • GST मुआवजे और हस्तांतरण से संबंधित लंबित मुद्दों का समाधान किया जाए।
    • राजकोषीय नीतियों और संकेतकों में सामंजस्य स्थापित किया जाए।
    • अंतर-सरकारी मंचों और तंत्रों में भागीदारी की जाए।
    • सर्वोत्तम अभ्यासों और अनुभवों की साझेदारी हो।

FRBM अधिनियम क्या है?

  • परिचय:
    • राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (Fiscal Responsibility and Budget Management- FRBM) अधिनियम को अगस्त 2003 में लागू किया गया था।
    • इसका उद्देश्य केंद्र सरकार को राजकोषीय प्रबंधन और दीर्घकालिक व्यापक-आर्थिक स्थिरता के संबंध में अंतर-पीढ़ीगत समानता सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार बनाना है।
    • इस अधिनियम में केंद्र सरकार के ऋण और घाटे की सीमा निर्धारित करने की परिकल्पना की गई है।
    • इसमें राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक सीमित कर दिया गया है।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि राज्य भी वित्तीय रूप से विवेकपूर्ण हों, वर्ष 2004 में 12वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं में राज्यों को प्रदत्त ऋण राहत को उनके द्वारा समान कानूनों के प्रवर्तन से संबद्ध किया गया।
    • तब से राज्यों ने अपने-अपने वित्तीय उत्तरदायित्व विधान (Financial Responsibility Legislation) लागू किये हैं, जो उनके वार्षिक बजट घाटे पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GDP) के 3% की सदृश सीमा निर्धारित करते हैं।
  • यह केंद्र सरकार के राजकोषीय परिचालन और मध्यम आवधिक ढाँचे में राजकोषीय नीति के परिचालन में अधिक पारदर्शिता को भी अनिवार्य बनाता है।
  • केंद्र सरकार के बजट में एक मध्यम आवधिक राजकोषीय नीति वक्तव्य (Medium-Term Fiscal Policy Statement) शामिल होता है जो तीन-वर्षीय समय सीमा में वार्षिक राजस्व और राजकोषीय घाटे के लक्ष्यों को निर्दिष्ट करता है।
  • इस अधिनियम को लागू करने के नियमों को जुलाई 2004 में अधिसूचित किया गया था। इन नियमों में वर्ष 2018 में संशोधन किया गया था और हाल ही में एक संशोधन के साथ मार्च 2023 के लिये 3.1% का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
  • एन.के. सिंह समिति (वर्ष 2016 में गठित) ने अनुशंसा की थी कि सरकार को 31 मार्च, 2020 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक करने का लक्ष्य रखना चाहिये, जिसे घटाकर वर्ष 2020-21 में 2.8% और वर्ष 2023 में 2.5% करना चाहिये।
  • FRBM अधिनियम के तहत छूट:
    • एस्केप क्लाउज़ (Escape Clause):
      • इस अधिनियम की धारा 4(2) के तहत, केंद्र कुछ आधारों का हवाला देते हुए वार्षिक राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के बाहर जा सकता है। ये आधार हो सकते हैं:
        • राष्ट्रीय सुरक्षा, युद्ध
        • राष्ट्रीय आपदा
        • कृषि का पतन
        • संरचनात्मक सुधार
        • किसी तिमाही में वास्तविक उत्पादन वृद्धि में पिछली चार तिमाहियों के औसत से कम से कम तीन प्रतिशत अंक की गिरावट।
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