आधुनिक युवाओं के लिये बुद्ध की प्रासंगिकता क्यों है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत के राष्ट्रपति ने धर्म चक्र प्रवर्तन दिवस (3 जुलाई) के अवसर पर युवाओं से भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से सीखने, खुद को समृद्ध बनाने और एक शांतिपूर्ण समाज, राष्ट्र तथा विश्व के निर्माण में योगदान देने का आह्वान किया।
- राष्ट्रपति ने यह स्मरण कराया कि आषाढ़ पूर्णिमा पर ही भगवान बुद्ध ने अपने पहले उपदेश के माध्यम से धम्म के मध्य मार्ग की शुरुआत की थी।
भगवान बुद्ध:
- परिचय:
- भगवान बुद्ध (सिद्धार्थ गौतम) का जन्म दक्षिणी नेपाल के तराई मैदानी क्षेत्र में स्थित लुम्बिनी में शाक्य वंश के शाही परिवार में हुआ था।
- 29 वर्ष की आयु में उन्होंने घर त्याग दिया और अपने शाही जीवन को अस्वीकार करते हुए तपस्या, आत्म-अनुशासन की जीवनशैली को अपना लिया।
- लगातार 49 दिनों की ध्यान-साधना के बाद गौतम को बिहार के बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे बोधि (ज्ञान) की प्राप्ति हुई।
- बुद्ध ने उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास सारनाथ में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन अपना पहला उपदेश दिया था। इस घटना को धर्म चक्र प्रवर्तन (टर्निंग द व्हील्स ऑफ लॉ) के रूप में जाना जाता है।
- इस दिन को बौद्धों और हिंदुओं दोनों द्वारा अपने गुरुओं के सम्मान में गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
भगवान बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएँ:
- अस्तित्व के तीन चिह्न: ये सभी घटनाओं की विशेषताएँ हैं जिन्हें हर किसी को समझना और स्वीकार करना चाहिये। ये हैं- अनित्यता (अनिच्च), असंतोषजनकता (दुक्खा) और गैर-आत्म (अनत्ता)।
- चार आर्य सत्य: ये दुख, दुख समुदय, दुख निरोध और दुख निरोध मार्ग के विषय में हैं। दुख का कारण अज्ञान, राग एवं द्वेष है।
- आर्य आष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करके दुखों का निवारण संभव है:
- चार उदात्त अवस्थाएँ: ये सकारात्मक मानसिक गुण हैं जिन्हें व्यक्ति को विकसित करना चाहिये तथा सभी प्राणियों में प्रसारित करना चाहिये। ये हैं- प्रेम-कृपा (मेट्टा), करुणा (करुणा), सहानुभूतिपूर्ण आनंद (मुदिता) और समभाव (उपेक्खा)।
- इन अवस्थाओं को विकसित करके व्यक्ति सद्भाव, सहानुभूति, परोपकारिता तथा शांति को बढ़ावा दे सकता है।
- पाँच उपदेश: ये बुनियादी नैतिक सिद्धांत हैं जो बुद्ध ने अपने सामान्य अनुयायियों के लिये निर्धारित किये थे।
- ये हैं- हत्या, चोरी करना, यौन दुराचार, झूठ बोलना और नशा करने से बचना।
- ये स्वयं एवं दूसरों को नुकसान पहुँचाने से बचने, जीवन और संपत्ति का सम्मान करने, पवित्रता एवं ईमानदारी बनाए रखने तथा स्पष्टता और जागरूकता बनाए रखने में सहायता करते हैं।
युवा जीवन की चुनौतियाँ और बुद्ध के प्रेरक प्रसंग:
- मूल आधार के रूप में सचेतन (Mindfulness): बुद्ध की शिक्षाओं के केंद्रीय सिद्धांतों में से एक है सचेतन का अभ्यास।
- सचेतन व्यक्तियों को वर्तमान क्षण के विषय में गहरी जागरूकता पैदा करने, उनके विचारों, भावनाओं और कार्यों की बेहतर समझ को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहित करता है।
- युवा लोग विकर्षणों से भरे विश्व में पूर्ण रूप से उपस्थित और सलग्न रहने की बुद्ध की अवधारण से प्रेरित हो सकते हैं।
- सचेतन का अभ्यास करके युवा तनाव को प्रबंधित करना सीख सकते हैं, ध्यान एवं एकाग्रता में सुधार कर सकते हैं और आत्म-जागरूकता की भावना का पोषण कर सकते हैं, जिससे मानसिक कल्याण तथा व्यक्तिगत विकास में सुधार हो सकता है।
- नश्वरता और अनासक्ति: बुद्ध की शिक्षाएँ सभी घटनाओं की नश्वरता (केवल एक सीमित अवधि तक बने रहने की स्थिति या तथ्य) और लगाव की निरर्थकता पर ज़ोर देती हैं।
- तात्कालिक संतुष्टि से प्रेरित भौतिकवादी समाज में युवा इस समझ के साथ सांत्वना और प्रेरणा पा सकते हैं कि सब कुछ क्षणिक है।
- आनंद एवं पीड़ा दोनों की नश्वरता को पहचानकर युवा व्यक्ति एक ऐसी मानसिकता विकसित कर सकते हैं जो अनुकूलनीय, लचीली और परिवर्तनशील हो।
- परिणामों, संपत्तियों और यहाँ तक कि रिश्तों के प्रति लगाव का त्याग काना युवाओं को अनावश्यक पीड़ा से मुक्त कर सकता है तथा उन्हें अधिक शांति के साथ जीवन को अपनाने की अनुमति दे सकता है।
- करुणा और सहानुभूति: समकालीन विश्व में जहाँ विभाजन और संघर्ष जारी है, युवा प्रेम-कृपा तथा करुणा पर आधारित बुद्ध की शिक्षाओं से प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।
- युवा सहानुभूति का विकास करके तथा दूसरों के संघर्षों से गहरी समझ विकसित कर एकता एवं संपर्क की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं।
- आत्म-खोज और आंतरिक परिवर्तन: युवा, जो सामन्यत: पहचान और उद्देश्य के प्रश्नों से जूझते रहते हैं, आत्म-अन्वेषण पर बुद्ध की शिक्षाओं से प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।
- आत्म-निरीक्षण और आत्म-चिंतन में संलग्न होकर युवा अपने वास्तविक स्वभाव, जुनून के साथ आकांक्षाओं में अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं।
- सामाजिक और पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी में संलग्न होना: बुद्ध की शिक्षाएँ सभी प्राणियों के परस्पर संपर्क पर बल देती हैं, साथ ही एक ज़िम्मेदार कार्रवाई की वकालत करती हैं।
- युवा समानता, न्याय और टिकाऊ प्रथाओं की दिशा में कार्य करके सामाजिक एवं पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी में सक्रिय रूप से शामिल हो सकते हैं।
- वे सामुदायिक पहलों में भाग ले सकते हैं, साथ ही हाशिए पर खड़े समूहों की वकालत कर सकते हैं और पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी बन सकते हैं।
- इन शिक्षाओं को मूर्तरूप देकर वे एक अधिक न्यायसंगत, सामंजस्यपूर्ण और पर्यावरण के प्रति जागरूक समाज के निर्माण में योगदान देते हैं.
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