ममता बनर्जी का दबदबा है कायम,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पश्चिम बंगाल के लोगों ने पंचायत चुनाव में ममता बनर्जी के ऊपर जमकर प्यार लुटाया है. तृणमूल कांग्रेस ने लिए ये चुनाव सुकून देने वाला है. बंगाल के लोगों ने जिस तरह से ममता बनर्जी पर भरोसा जताया है, उससे ममता बनर्जी जरूर ये दावा कर सकती हैं कि अभी भी प्रदेश में उनका और उनकी पार्टी का ही एकछत्र वर्चस्व है.
ग्रामीण इलाकों में बीजेपी की पकड़ कमजोर
बीजेपी ने जिस तरह से 2019 के लोकसभा चुनाव और 2021 के विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन किया था, उसकी वजह से बीजेपी को उम्मीद थी कि उसका जनाधार पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में तेजी से बढ़ेगी. हालांकि नतीजों से बीजेपी को निराशा हाथ लगी है. 2019 और 2021 में बीजेपी का जो भी प्रदर्शन रहा था, उसमें शहरी इलाकों में पार्टी की मजबूत होती पकड़ का ज्यादा प्रभाव था. बीजेपी इन दोनों चुनाव के बाद प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए काफी मेहनत कर रही थी. बीजेपी के तमाम आला नेता भी दिल्ली से आकर लगातार बंगाल का दौरा कर रहे थे. बीजेपी को उम्मीद थी कि इस बार के पंचायत चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन काफी बेहतर होगा.
कैडर आधारित राजनीति में ममता आगे
पश्चिम बंगाल में 2011 की जनगणना के मुताबिक 68 फीसदी से ज्यादा आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है. जब तक ग्रामीण इलाकों में बीजेपी की पकड़ मजबूत नहीं होगी, तब तक पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के वर्चस्व को चुनौती देना बीजेपी के लिए आसान नहीं है. पश्चिम बंगाल में कैडर आधारित राजनीति की परंपरा रही है. इस कैडर आधारित राजनीति की शुरुआत गांव-देहातों में कैडर मॉड्यूल के विकास से होती है. सीपीएम का यहां जून 1977 से लेकर मई 2011 के बीच लगातार 34 साल शासन रहा. सीपीएम की जीत का मुख्य कारण उसके कैडर का मजबूत होना ही रहता था.
कैडर आधारित राजनीति का रहा है इतिहास
ममता बनर्जी ने जनवरी 1998 में कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस की नींव रखी. ममता बनर्जी ने 2011 में सत्ता में आने से पहले 13 सालों तक उसी मॉड्यूल पर काम किया जिसकी बदौलत सीपीएम ने पश्चिम बंगाल पर अपना एकछत्र राज स्थापित कर लिया था. ममता बनर्जी ने गांव-देहातों में पार्टी का कैडर तैयार किया. पश्चिम बंगाल में कैडर का मॉड्यूल बाकी राज्यों से थोड़ा अलग है. यहां कैडर पार्टी के लिए जान देने और जान लेने के भी तैयार रहते हैं. यही वजह है कि देश के बाकी राज्यों में अब चुनावी हिंसा न के बराबर देखने को मिलता है, लेकिन पश्चिम बंगाल में अभी भी चुनावी हिंसा बहुतायत में देखने को मिलती है. उसमें भी पंचायत चुनावों में ये चरम पर पहुंच जाता है क्योंकि पार्टी के कैडर का आधार गांवों से ही शुरू होता है.
गांवों में जनाधार के लिहाज से पंचायत चुनाव अहम
ऐसे तो सामान्य तौर से पंचायत चुनावों का विधानसभा और लोकसभा चुनावों से कोई समानता नहीं होती है. मतदाताओं के लिए मुद्दों का महत्व अलग-अलग कैटेगरी के चुनावों के लिए अलग-अलग होता है. यही वजह है कि तीनों तरह के चुनावों में आम तौर से वोटिंग पैटर्न भी अलग-अलग होते हैं. बाकी राज्यों में तो ये देखा जाता है, लेकिन पश्चिम बंगाल की राजनीति में औम तौर पर अलग ही हालात देखे जाते रहे हैं. यहां एक अवधि के दौरान जो भी पार्टी प्रदेश की सरकार में होती है,
उसका स्थानीय निकाय चुनावों ( पंचायत और नगर निगम दोनों), विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में एक समान तरीके से प्रभुत्व देखा जाता है. इस कारण से पार्टी की पकड़ को बरकरार रखने के लिहाज से पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनावों का महत्व काफी ज्यादा है और इस नजरिए से बीजेपी के राजनीतिक मंसूबों को पंचायत चुनाव के नतीजों से करारा झटका लगा है.
पश्चिम बंगाल में ममता का जादू बरकरार
वहीं 2011, 2016 और 2021 के विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाने के बाद ममता बनर्जी ने पंचायत चुनाव नतीजों से एक बार फिर साबित किया है कि दिल्ली से चाहे राजनीतिक विश्लेषक या बीजेपी के तमाम बड़े नेता जो भी दावा करें, पश्चिम बंगाल में उनके जादू अभी भी उसी तरह से बरकरार है.
पंचायत चुनाव नतीजों में एक बार और भी उभरी है. भले ही बीजेपी को मनमुताबिक जीत नहीं मिली हो, लेकिन इसके बावजूद उसके लिए भविष्य में उम्मीदें बरकरार है, इस बात का संकेत जरूर मिला है. पश्चिम बंगाल में ग्राम पंचायतों में कुल 63,229 सीटें, पंचायत समितियों में 9730 सीटें और जिला परिषद में 928 सीटें हैं.
पश्चिम बंगाल में 63,229 ग्राम पंचायत सीटों में से 35 हजार से ज्यादा पर टीएमसी ने जीत दर्ज की है. वहीं बीजेपी को इन पंचायत सीटों में से 9,800 से ज्यादा सीटों पर जीत मिली है.सीपीएम को 3 हजार के आसपास और कांग्रेस को 26 सौ के आसपास पंचायत सीटों पर जीत मिली है.
उसी तरह से पंचायत समिति में टीएमसी को कुल 9730 सीटों में से साढ़े छ हजार के आस पास सीटें टीएमसी के पास गई हैं. वहीं बीजेपी के खाते में एक हजार के आस पास सीटें गई है.
जिला परिषद की बात करें तो कुल 928 में से 8 सौ से भी ज्यादा सीटों पर टीएमसी ने कब्जा कर लिया है, जबकि बीजेपी के खाते में 30 से भी कम सीटें आई हैं.
2018 के मुकाबले बीजेपी के प्रदर्शन में सुधार
पिछले यानी 2018 के पंचायत चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो ग्राम पंचायत सीटों पर भले ही इस बार भी बीजेपी, तृणमूल कांग्रेस से काफी पीछे रह गई है, लेकिन पिछली बार के मुकाबले बीजेपी के प्रदर्शन में काफी सुधार हुआ है. 2018 में बीजेपी को 5,779 ग्राम पंचायत सीटों पर जीत मिली थी. यानी इस बार बीजेपी पिछली बार से अपने प्रदर्शन में दोगुना इजाफा करने से थोड़ा कम रही.
पंचायत समिति में भी पिछली बार बीजेपी को 769 सीटें मिली थी, जो इस बार हजार तक के करीब पहुंच गई है. पिछली बार बीजेपी को जिला परिषद की महज़ 22 सीटों पर जीत मिली थी,. जिला परिषद में इस बार भी बीजेपी 30 के आंकड़े को पार नहीं कर पाई है.
भले ही इस बार भी टीएमसी का दबदबा पंचायत चुनावों में बरकरार रहा, लेकिन बीजेपी ग्राम पंचायतों और पंचायत समितियों में तो पिछली बार से बहुत ज्यादा सीटें बढ़ाने में कामयाब रही है. वहीं जिला परिषद में भी कुछ सीटें बढ़ाने में बीजेपी सफल रही है. ये एक तरह से बीजेपी के लिए राहत की बात है कि ग्रामीण इलाकों में उसकी पकड़ धीरे-धीरे ही सही , बढ़ रही है. यही बात ममता बनर्जी के लिए भविष्य के नजरिए से टेंशन बढ़ाने वाली साबित हो सकती है.
बीजेपी को नई रणनीति पर करना होगा काम
टीएमसी, बीजेपी समेत तमाम दल पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों को आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से प्रदेश की जनता का रुख भांपने के प्रयास में जुटे थे. पंचायत चुनाव के नतीजों से ये स्पष्ट है कि अब बीजेपी को यहां अपने राजनीतिक मंसूबों को पंख देने के लिए नई रणनीति पर काम करनी होगी. बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में 42 में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर अपनी रणनीतियों को आगे बढ़ा रही है.
इसके साथ ही बीजेपी 2026 में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी को सत्ता से बेदखल करने का दंभ भर रही है. लेकिन पंचायत चुनाव के नतीजों से बीजेपी के इन दोनों दावों को झटका तो जरूर लगा होगा. लोकसभा चुनाव में अभी भी 9 से 10 महीने का वक्त बचा है, ऐसे में इतना जरूर है कि पंचायत चुनाव के नतीजे बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को पश्चिम बंगाल के लिए नई रणनीति पर काम करने के बारे में सोचने पर जरूर मजबूर करेगा. पंचायत चुनाव नतीजों से बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की टेंशन जरूर बढ़ गई होगी. पश्चिम बंगाल में 2019 के प्रदर्शन को दोहराना या फिस उससे भी आगे जाना बीजेपी के लिए इतना आसान नहीं है.
- यह भी पढ़े…………..
- ईडी प्रमुख के तीसरे विस्तार को सुप्रीम कोर्ट ने बताया ‘अवैध’,क्यों?
- राशि उपलब्ध रहने के बाद नियोजित शिक्षकों काे नहीं मिल रहा वेतन