भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के जनक विक्रम साराभाई है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत आज अंतरिक्ष मिशन में पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा रहा है। 14 जुलाई को देश ने ऐतिहासिक चंद्रयान-3 लॉन्च कर अंतरिक्ष में एक नई छलांग लगाई। देश को अंतरिक्ष के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले और आज की बुलंदियों की बुनियाद रखने वाले डॉ विक्रम साराभाई कौन हैं?
जब आप भीड़ से ऊपर खड़े होते हैं, तो आपको अपने ऊपर फेंके जाने वाले पत्थरों के लिए भी तैयार रहना चाहिए।’
ऐसे अनमोल विचार देने वाले विक्रम साराभाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है। वह एक भारतीय भौतिक विज्ञानी और उद्योगपति थे, जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान (Space Reaserch) शुरू किया और भारत में परमाणु ऊर्जा विकसित करने में मदद की। विक्रम ने विविध क्षेत्रों में बड़ी संख्या में संस्थानों की स्थापना की। इसके अलावा उन्होंने महज 28 साल की उम्र में अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बता दें, साराभाई भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के संस्थापक भी थे।
जब अपने रिसर्च से सुर्खियों में आ गए थे साराभाई
डॉ विक्रम अंबालाल साराभाई का जन्म 12 अगस्त, 1919 को अहमदाबाद के एक उद्योगपति परिवार में हुआ था। गुजरात कॉलेज से अपनी शुरुआती पढ़ाई करने के बाद वह इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शिफ्ट हो गए। यहां से उन्होंने 1940 में प्राकृतिक विज्ञान में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की।
द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के बाद साराभाई वापस भारत लौट आए और भारतीय विज्ञान संस्था, बैंगलोर में भारतीय भौतिक विज्ञानी सर चन्द्रशेखर वेंकट रमन के अधीन कॉस्मिक किरणों में अनुसंधान किया, जिससे वह सुर्खियों में आ गए। इसके बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने उन्हें डीएससी की उपाधि से सम्मानित किया।
भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना
कैम्ब्रिज से भारत लौटने के बाद, साराभाई ने अहमदाबाद में एक शोध संस्थान स्थापित किया। 11 नवंबर, 1947 को भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की गई। 1966 से 1971 तक साराभाई ने इस संस्था की सेवा की। 1947 में, साराभाई ने अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज रिसर्च एसोसिएशन की स्थापना की और 1956 तक इसके मामलों की देखभाल की। साराभाई ने अहमदाबाद स्थित विभिन्न उद्योगपतियों के साथ मिलकर 1962 में अहमदाबाद में भारतीय प्रबंधन संस्थान की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विक्रम साराभाई द्वारा स्थापित सबसे प्रसिद्ध संस्थान
- अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला
- भारतीय प्रबंधन संस्थान के अलावा
- सामुदायिक विज्ञान केंद्र
- प्रदर्शन कला के लिए दर्पण अकादमी
- अहमदाबाद में अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र
- कलकत्ता में परिवर्तनीय ऊर्जा साइक्लोट्रॉन परियोजना
- तिरुवनंतपुरम में साराभाई स्पेस सेंटर
- कलपक्कम में फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर
- बिहार के जादूगुड़ा में यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड
- हैदराबाद में इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत
1960 के दशक में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत हुई। अमेरिकी सैटेलाइट ‘सिनकॉम-3’ ने संचार उपग्रहों की शक्ति का प्रदर्शन करते हुए 1964 के तोक्यो ओलंपिक का सीधा प्रसारण किया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, अमेरिका के इस कदम को देखकर साराभाई ने भारत के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के लाभों को पहचाना। रूस द्वारा पहला कृत्रिम पृथ्वी उपग्रह स्पुतनिक 1 लॉन्च करने के बाद, साराभाई ने भारत सरकार को भारत जैसे विकासशील देश के लिए अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व के बारे में आश्वस्त किया।
भारत में पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन किया स्थापित
1962 में, अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों का नेतृत्व करने के लिए परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की स्थापना की गई थी। अगस्त 1969 में INCOSPAR के स्थान पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना की गई।
भारत के परमाणु विज्ञान कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने भारत में पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन स्थापित करने में साराभाई का समर्थन किया। थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन भूमध्य रेखा से निकटता के कारण अरब सागर के तट पर थुम्बा में स्थापित किया गया था। 1966 में, साराभाई ने अहमदाबाद में एक सामुदायिक विज्ञान केंद्र की स्थापना की जो अब विक्रम ए साराभाई सामुदायिक विज्ञान केंद्र के रूप में जाना जाता है।
परमाणु अनुसंधान में विक्रम साराभाई की भूमिका
1966 में भाभा की मृत्यु के बाद साराभाई को भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। साराभाई ने परमाणु अनुसंधान के क्षेत्र में भाभा के काम को आगे बढ़ाया। भारत के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना और विकास में उनका भारी योगदान रहा। साराभाई ने रक्षा उद्देश्यों के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी के स्वदेशी विकास की नींव भी रखी। 1966 में साराभाई को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 1972 में उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।