चांद सभी का तो चंद्रयान क्यों नहीं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
चंद्रमा एक ऐसा खास आकर्षण जिसने सदियों से हमारे मन और कल्पनाओं पर अधिकार जमाया हुआ है। हमारे अतीत की कुंजी और भविष्य की ओर ले जाने वाला मार्ग। हम सब के बचपन में चांद से जुड़ी लोरियों और कहानियों की एक अलग जगह बनी हुई है। चांद हमेशा से हमारे लिए किसी रहस्य से कम नहीं है। चांद को मुट्ठी में करने सपनों की उड़ान पर हिन्दुस्तान निकल पड़ा है।
14 जुलाई 2023 की तारीख देश के लिए एक ऐतिहासिक दिन साबित हुआ। दोपहर के 2:30 मिनट पर भारत का चंद्रयान-3 चांद की ओर रवाना हो गया। चांद को छूना औरों की तरह हमारा भी सपना रहा है। चंद्रयान-3 पृथ्वी कक्षा में स्थापित हो गया। 40 दिन बाद पहले पृथ्वी और फिर चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगाएगा। उसके बाद चांद पर उतरेगा। अभी पृथ्वी पर भी एक नया चक्कर चल रहा है। चंद्रयान-3 के रवाना होते ही उसे लेकर क्रेडिट की लड़ाई भी शुरू हो गई है।
नेहरू और इसरो की स्थापना
डॉक्टर विक्रम साराभाई और डॉक्टर रामानाथन ने 16 फरवरी 1962 को Indian National Committee for Space Research (INCOSPAR) की स्थापना की गई। जो आगे चलकर 15 अगस्त 1969 को इसरो (ISRO) बन गया। बहुत सारे लोगों ने यह सवाल उठाया है कि जब इसरो की स्थापना से पहले ही नेहरू का देहांत हो गया था, तो वो इस संस्थान की स्थापना कैसे कर सकते हैं? इसरो की आधिकारिक वेबसाइट पर भी अंतरिक्ष रिसर्च एजेंसी की स्थापना में नेहरू और डॉक्टर साराभाई के योगदान का जिक्र है। वेबसाइट पर लिखा है कि भारत ने अंतरिक्ष में जाने का फैसला तब किया था जब भारत सरकार ने साल 1962 में इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना की थी।
मोदी सरकार में क्या बदला है?
नेतृत्व की नीति और इच्छाशक्ति को भी देखना जरूरी है। 2014 तक साइंस एंड टेक्नोलॉजी का बजट 5 हजार 400 करोड़ रुपए थे। भारत के विज्ञान को हम इससे किस दिशा में ले जा सकते हैं। कहा तो ये भी जाता है कि सारे पैसे वेतन और लैबोरेट्री के मेंटेनेंस में ही चले जाते थे। लेकिन 2022 में 14 हजार 217 करोड़ हो गया है। यानी 2014 से लेकर 2022 तक इसके बजट में तीन गुणा इजाफा हुआ है। इसके अलावा पीएम मोदी की सरकार में साइंस टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन पॉलिसी को लाकर एक नई क्रांति को जन्म दिया। अगले पांच साल में भारत अमेरिका और रूस से हर क्षेत्र में आगे बढ़ने वाला है। वही वैज्ञानिक स्टालिन और जार के युग में थे। वहीं वैज्ञानिक वाशिंगटन और लिंकन के युग में भी थे। दोनों का काम अलग अलग था।
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