चंद्रयान-3 मिशन को 40 दिन क्यों लग रहे हैं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-3 मिशन (Mission chandrayaan-3) को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग (Soft Landing) की प्रयास के लिए 14 जुलाई को लॉन्च किया था। अंतरिक्ष यान वर्तमान में अंतरिक्ष में घूम रहा है और 5 अगस्त तक चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने की उम्मीद है। सॉफ्ट-लैंडिंग का प्रयास 23 अगस्त को होने की संभावना है। अंतरिक्ष यान पृथ्वी और चंद्रमा के बीच लगभग 3,84,000 किलोमीटर की दूरी लगभग 40 दिनों में तय करेगा। 40 दिन, जो नासा (NASA) द्वारा लॉन्च किए गए अपोलो मिशन (Apollo Mission) से कहीं अधिक लंबा है।
इतना लंबा रास्ता क्यों अपना रहा है चंद्रयान-3?
अंतरिक्ष में कैसे काम कर रहा है चंद्रयान-3?
पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की अंडाकार कक्षा का मतलब है कि हमारे ग्रह से इसकी दूरी अलग-अलग है, जिससे मिशन में जटिलता की एक और परत जुड़ गई है। एक शक्तिशाली रॉकेट की कमी का मुकाबला करने के लिए, इसरो चंद्रमा के चारों ओर अपना रास्ता बनाने के लिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का उपयोग करता है, उसी तरह जैसे उसने मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) यानी मंगलयान को मंगल की ओर धकेलने के लिए ग्रह के चारों ओर गुलेल का उपयोग किया था।
चंद्रयान-3 अपनी कक्षाओं को धीरे-धीरे बढ़ाने और चंद्रमा की कक्षा के साथ तालमेल बिठाने के लिए पृथ्वी से जुड़ी युक्तियों और चंद्र कक्षा सम्मिलन की एक श्रृंखला को नियोजित करता है। इन मिशनों में “द्वि-अंडाकार स्थानांतरण” की एक श्रृंखला नामक एक विधि का उपयोग किया गया था, जिसमें अंतरिक्ष यान की ऊर्जा को धीरे-धीरे बढ़ाने और इसके ट्रेजेक्टरी को एडजस्ट करने के लिए कई इंजनों को जलाना शामिल था।
यह विधि अधिक ईंधन-कुशल और लागत प्रभावी मिशनों की अनुमति देती है, लेकिन अपोलो मिशनों द्वारा उपयोग किए जाने वाले प्रत्यक्ष ट्रेजेक्टरी की तुलना में अधिक समय लेती है।
इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “गुलेल का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अंतरिक्ष यान चंद्रमा की ओर यात्रा करने के लिए अपने वेग को बढ़ाने के लिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का उपयोग करता है। यह खगोल विज्ञान और भौतिकी की एक जटिल गतिशीलता है।” हालांकि, यह अपोलो मिशन की तुलना में लागत प्रभावी और ईंधन कुशल है, लेकिन कक्षाओं को ऊपर उठाने के लिए अधिक मात्रा में ईंधन की खपत करता है।
चंद्रयान-3 मिशन को लेकर एक अच्छी खबर आ रही है। दरअसल, मंगलवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ट्वीट कर के जानकारी दी है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान की तीसरी कक्षा बढ़ाने की प्रक्रिया (पृथ्वी-बाउंड अपभू फायरिंग) को सफलतापूर्वक निष्पादित किया है। अगली फायरिंग 20 जुलाई 2023 को दोपहर 2 से 3 बजे के बीच करने की योजना है।
ट्वीट में कहा गया है, “मिशन तय समय पर है। तीसरी कक्षा बढ़ाने की तीसरी प्रक्रिया (पृथ्वी-बाउंड अपभू फायरिंग) ISTRAC/ISRO, बेंगलुरु से सफलतापूर्वक किया गया है। अगली फायरिंग 20 जुलाई, 2023 को दोपहर 2 से 3 बजे IST के बीच करने की योजना है।”
विशेष रूप से, 14 जुलाई को, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से LVM3-M4 रॉकेट पर चंद्रयान -3 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था। दोपहर 2.35 बजे उड़ान भरने के 17 मिनट बाद, उपग्रह को सटीक कक्षा में स्थापित किया गया। शनिवार को तिरुवनंतपुरम में पत्रकारों से बात करते हुए, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक एस उन्नीकृष्णन नायर ने कहा कि प्रक्षेपण यान ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और अंतरिक्ष यान के लिए आवश्यक प्रारंभिक शर्तें “बहुत सटीक” प्रदान की गई हैं।
चंद्रयान-3 मिशन का उद्देश्य
इसरो का स्पेसक्राफ्ट चंद्रयान-3 अपने साथ कई साइंटिफिक उपकरणों को ले जा रहा है, जो वैज्ञानिकों को चंद्रमा को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे। लेकिन, इस मिशन का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग कराना है।
इससे पहले चंद्रयान-2 के समय भी इसका का उद्देश्य चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंड करना ही था, जो अंतिम समय में फेल हो गया था। उस वक्त इसरो का लैंडर ‘विक्रम’ चांद की सतह पर लैंडिंग के दौरान क्रैश हो गया था। पिछले मिशन की तरह ही इस बार भी इसके लैंडर का नाम ‘विक्रम’ और रोवर का नाम ‘प्रज्ञान’ रखा गया है।
अगर इस बार चंद्रयान 3 के साथ इसरो चांद की सहत पर सॉफ्ट लैंडिंग में सफल हो जाता है तो भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले अमेरिका, पूर्व सोवियत यूनियन और चाइना ऐसा करने में सफल रहे हैं।
बता दें कि, चंद्रयान 2 से पहले इजरायल की स्पेश एजेंसी ने चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए अपना मिशन लॉन्च किया था, जिसमें वे फेल हो गए थे। इसके साथ इस साल की शुरुआत में जापान भी चांद की सतह पर सेफ लैंडिंग करने में असफल हो गया था।
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