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क्या गरीबी मिटाने के लिये उच्चतर विकास दर की आवश्यकता है? - श्रीनारद मीडिया

क्या गरीबी मिटाने के लिये उच्चतर विकास दर की आवश्यकता है?

क्या गरीबी मिटाने के लिये उच्चतर विकास दर की आवश्यकता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कोविड-19 के नियंत्रण में होने और रूस-यूक्रेन युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान की उम्मीद के साथ अब भारत को अपनी भविष्य की विकास रणनीति की योजना तैयार करने में जुट जाना चाहिये। हमारा मुख्य लक्ष्य प्रति व्यक्ति औसत आय को अगले 25 वर्षों में लगभग छह गुना बढ़ाना होना चाहिये, जो वर्ष 2022-23 में लगभग 2,379 अमेरिकी डॉलर थी। इससे लोगों के जीवन स्तर में सुधार होगा और गरीबी कम होगी। इस क्रम में इस उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में भारत के सामने आने वाली चुनौतियों की पहचान करना और उन्हें दूर करने के लिये आवश्यक कार्रवाई एक महत्त्वपूर्ण कार्य होगा।

भारत में गरीबी की वर्तमान स्थिति: 

  • नीति आयोग के राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार भारत की 14.96% आबादी बहुआयामी गरीबी में रह रही थी।
    • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बहुआयामी गरीबी की स्थिति 19.28% थी।
    • शहरी क्षेत्रों में गरीबी दर 5.27% थी।
  • विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, लगभग 10% भारतीय आबादी प्रतिदिन 2.15 अमेरिकी डॉलर से कम पर जीवनयापन करती है, जो निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा का निर्माण करती है।

भारत में बहुआयामी गरीबी के पीछे के प्रमुख कारण:

  • समावेशी आर्थिक विकास का अभाव: भारत ने हाल के दशकों में प्रभावशाली आर्थिक विकास हासिल किया है, लेकिन समाज के विभिन्न वर्गों के बीच इसका समान रूप से वितरण नहीं हो सका है।  गिनी गुणांक—जो आय असमानता की माप करता है, वर्ष 1983 में 0.32 से बढ़कर वर्ष 2019 में 0.36 हो गया है।
    • इसके अलावा, भारत की वृद्धि काफी हद तक सेवा क्षेत्र द्वारा संचालित रही है, जो कार्यबल के केवल एक छोटे से हिस्से को ही रोज़गार प्रदान करती है।
    • बहुसंख्य आबादी अभी भी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है, जिसकी उत्पादकता और आय निम्न है।
  • कृषि क्षेत्र का कमज़ोर प्रदर्शन और गरीबी: कृषि, भारतीय आबादी के लगभग 50% के लिये आजीविका का मुख्य स्रोत है, लेकिन यह सकल घरेलू उत्पाद में केवल 17% का योगदान देती है। कृषि क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जैसे खंडित एवं उप-विभाजित भूमि जोत, पूंजी की कमी, नई प्रौद्योगिकियों के बारे में अशिक्षा, खेती के पारंपरिक तरीकों का उपयोग, भंडारण के दौरान बर्बादी, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ।
  • भूमि सुधारों का कार्यान्वयन न होना: भूमि, ग्रामीण निर्धनों के लिये एक महत्त्वपूर्ण संपत्ति होती है, लेकिन भारत में इसका वितरण अत्यधिक असमान है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 5% ग्रामीण परिवारों के पास 32% भूमि थी, जबकि 56% ग्रामीण परिवारों के पास केवल 10% भूमि थी। भूमि सुधार (जैसे अधिशेष भूमि का पुनर्वितरण, पट्टेदारी/किरायेदारी में सुधार, भूमि जोत की सीमा/सीलिंग और महिलाओं एवं हाशिये पर स्थित समूहों के लिये भूमि अधिकार) अधिकांश राज्यों में प्रभावी ढंग से लागू नहीं किये गए हैं।
  • तीव्र जनसंख्या वृद्धि: समय के साथ भारत की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हुई है। पिछले 45 वर्षों के दौरान इसमें प्रति वर्ष 2.2% की दर से वृद्धि हुई है, जिसका अर्थ है कि हर साल देश की आबादी में औसतन लगभग 17 मिलियन अतिरिक्त लोग जुड़ जाते हैं। इससे उपभोग वस्तुओं की मांग भी काफी बढ़ जाती है।
    • लेकिन इस मांग की पूर्ति कर सकने के लिये अवसरों और संसाधनों का पर्याप्त विस्तार नहीं हुआ है।
    • जनसंख्या वृद्धि पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर भी दबाव डालती है, जो पहले से ही कमी और अवनति की स्थिति में हैं।
  • बेरोज़गारी और अल्प-रोज़गार: बेरोज़गारी भारत में गरीबी का एक अन्य कारण है। लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण रोज़गार की मांग रखने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है। लेकिन इस मांग के अनुरूप रोज़गार के अवसरों का पर्याप्त विस्तार नहीं हुआ है।
    • सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, अप्रैल 2023 में भारत में बेरोज़गारी दर 8.11% थी। अप्रैल 2020 के बाद से यह भारत में सर्वोच्च बेरोज़गारी दर की स्थिति है।
    • इसके अलावा, बहुत से लोग जो नियोजित हैं वे अल्प-रोज़गार की स्थिति रखते हैं या निम्न-गुणवत्ता के ऐसे रोज़गार से संलग्न हैं जो पर्याप्त आय या सामाजिक सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं।
  • संगठित क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों की धीमी वृद्धि: रोज़गार में भारत के संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी कुल रोजगार का केवल 10% है। अधिकांश कार्यबल असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है, जहाँ कम वेतन, खराब कार्य करने की दशा, सामाजिक सुरक्षा का अभाव और आघातों के प्रति उच्च संवेदनशीलता की स्थिति पाई जाती है।
    • कौशल विसंगति, कठोर श्रम कानून, व्यवसाय करने की उच्च लागत और अवसंरचना की कमी जैसे विभिन्न कारणों से संगठित क्षेत्र असंगठित क्षेत्र से पर्याप्त श्रमिकों को शामिल करने में सक्षम नहीं है।
  • बुनियादी सेवाओं तक पहुँच का अभाव: गरीबी केवल आय की कमी को इंगित नहीं करती, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, जल, स्वच्छता और बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुँच की कमी को भी प्रकट करती है। ये सेवाएँ मानव विकास और कल्याण के लिये आवश्यक हैं। लेकिन भारत में सामर्थ्य, उपलब्धता, गुणवत्ता और भेदभाव जैसे विभिन्न कारणों से बड़ी संख्या में लोगों की इन सेवाओं तक पहुँच नहीं है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 (NFHS-5) के अनुसार भारत में अनुमानित रूप से 6-17 आयु वर्ग के 16.2 मिलियन बच्चे स्कूल नहीं जा रहे थे।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल (NHP) 2019 के अनुसार 10,926 लोगों पर केवल एक सरकारी चिकित्सक और 1,844 लोगों पर सरकारी अस्पताल में केवल एक बिस्तर ही उपलब्ध है।

आगे की राह: 

  • निरंतर वृद्धि की तलाश करना: अगले 25 वर्षों के लिये 7% की निरंतर वृद्धि की आवश्यकता है। इसके लिये 4 अनुपात के वृद्धिशील पूंजी-उत्पादन अनुपात (ICOR) को ध्यान में रखते हुए 28% की सकल स्थिर पूंजी निर्माण दर की आवश्यकता है। 4 का अनुमानित अनुपात पूंजी के बेहतर उपयोग पर आधारित है।
    • वृद्धिशील पूंजी उत्पादन अनुपात (ICOR) वस्तुतः अतिरिक्त उत्पादन के सृजन के लिये अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता को संदर्भित करता है।
  • निवेश बढ़ाना: भारत को अगले 25 वर्षों में आवश्यक निवेश दर हासिल करने की दिशा में कार्य करने की ज़रूरत है जो सकल घरेलू उत्पाद के 30-32% की सीमा में हो सकती है। यह स्वीकार करते हुए भी कि सार्वजनिक निवेश में वृद्धि हुई है, इस बात पर बल देना आवश्यक है कि व्यापार क्षेत्र (कॉर्पोरेट और गैर-कॉर्पोरेट दोनों) द्वारा निवेश में वृद्धि होनी चाहिये।
    • निवेश उन क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होना चाहिये जो विकास और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
    • जबकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का स्वागत किया जाना चाहिये, विशेषकर नए उभरते तकनीकी क्षेत्रों में, निवेश का बड़ा हिस्सा देश के अंदर से ही प्राप्त होना चाहिये।
  • बहुआयामी रणनीति अपनाना: चीन और दक्षिण कोरिया जैसी निर्यात-आधारित विकास रणनीति भारत के लिये अनुकूल सिद्ध नहीं भी हो सकती है, विशेष रूप से बदली हुई वैश्विक व्यापार स्थिति के संदर्भ में। इसलिये कृषि एवं संबंधित गतिविधियों, विनिर्माण और निर्यात पर बल दिया जाना चाहिये। सेवा क्षेत्र में भारत पहले से ही मज़बूती से उभर रहा है।
  • भारत में AI को अपनाने और रोज़गार प्रभाव से संबंधित चुनौती को हल करना: भारत नई प्रौद्योगिकियों, विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और इसके व्यापक निहितार्थों को आत्मसात करने से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण समस्या का सामना कर रहा है। AI से उत्पादकता और उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की उम्मीद है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि यह नए रोज़गार अवसर भी सृजित करे। यह भारत जैसे अत्यधिक आबादी वाले देशों के लिये विशेष चिंता का विषय है। इस चुनौती से सफलतापूर्वक निपटने के लिये एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाना होगा।
    • AI-संचालित भविष्य के रोज़गार बाज़ार में आगे बढ़ने के लिये छात्रों को आवश्यक कौशल से लैस करने के लिये शैक्षिक प्रणाली को नया रूप देना आवश्यक है। AI-संबंधित क्षेत्रों पर बल देना और निरंतर सीखने की संस्कृति को बढ़ावा देना अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।
    • श्रम-केंद्रित आर्थिक गतिविधियों की पहचान करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जो रोज़गार के संभावित अवसरों के रूप में कार्य कर सकते हैं। उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके जो AI-संचालित ऑटोमेशन के प्रति कम संवेदनशील हैं, हम रोज़गार पर इसके प्रभाव को कुछ हद तक कम कर सकते हैं।
  • बुनियादी आय के लिये प्रावधान: बुनियादी आय से संबद्ध कई मुद्दे हैं जिन्हें हल करने की आवश्यकता है। बुनियादी आय का स्तर और लाभार्थियों का कवरेज कुछ मानक विचारों तथा वित्तीय क्षमता को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाना चाहिये।
    • बुनियादी आय के साथ हमें खाद्य सब्सिडी के अलावा अधिकांश अन्य सब्सिडी में कटौती करने के लिये तैयार रहना चाहिये।
    • एक अनिश्चित विश्व में बुनियादी आय के प्रावधान की आवश्यकता और भी तात्कालिक हो गई है।
  • शांतिपूर्ण माहौल पर ध्यान केंद्रित करना: यह सतत विकास के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हाल के यूक्रेन-रूस संघर्ष ने इस माहौल पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। यदि तनाव जारी रहता है तो यह भविष्य के विकास के लिये एक उल्लेखनीय खतरा रखता है। इसके अलावा, हमें तेल जैसे आवश्यक आयात की आपूर्ति में व्यवधान पर भी सूक्ष्मता से नज़र बनाए रखना होगा, क्योंकि इन व्यवधानों का न केवल विकासशील देशों पर बल्कि विकसित देशों पर भी गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

निष्कर्ष: 

 

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