Breaking

अर्थ प्रधान युग में शिक्षा की उपयोगिता क्या है?

अर्थ प्रधान युग में शिक्षा की उपयोगिता क्या है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार में 1.7 लाख शिक्षकों का चयन होना है। इस पर बहस हो रही है कि शिक्षक बाहरी हों या भीतरी? इस पूरी चर्चा में यह प्रसंग भी समाज हित में होगा कि शिक्षक कैसे हों? ‘21वीं शताब्दी’ ज्ञान की सदी है। शिक्षा की पूंजी से गरीब इंसान आज टाटा, बिड़ला, फोर्ड (तात्पर्य किसी घराने से नहीं) की श्रेणी में पहुंच सकता है।

बचपन में हमने इन घरानों, राजा या जमींदारों के नाम विशेषण के रूप में सुने, एक घराने के रूप में नहीं। अब एक सर्वहारा अपनी शैक्षणिक पूंजी के बल पर, सर्वसमर्थ वर्ग में अपनी जगह बना सकता है। पुरानी धारणा थी कि इस वर्ग तक पहुंचने के लिए भाग्य ही सहारा है।

जन्मना ही लोग इस वर्ग तक पहुंचते हैं। कर्मणा नहीं। पर ज्ञान की सदी में अपनी प्रतिभा से, ईमानदारी से नारायण मूर्ति, अजीम प्रेमजी, नंदन नीलेकणि, बिल गेट्स, स्टीव जॉब्स, मार्क जुकरबर्ग, सैम अल्टमैन (एआई के ईजादकर्ता) लीजेंड बने।

बिहार के गरीब बच्चों को ‘सुपर 30’ जैसे प्रयासों ने सुनहला भविष्य दिया। सर्वोदयी दादा धर्माधिकारी ने एक जगह लिखा है कि इतिहास को मार्क्स की सबसे बड़ी देन है यह विचार कि कुलीनतंत्र नियति की देन नहीं, व्यवस्था की उपज है। ज्ञानयुग में शिक्षा की पूंजी ने यह साबित किया है।

हमारे मनीषियों-ऋषियों ने शिक्षा की इस ताकत को पहचाना था। इस कारण कहा- ‘विद्वत्वं च नृपत्वं च न एव तुल्ये कदाचन्। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।’

यानी राजा की पूजा अपने राज्य में होती है, पर विद्वान की पूछ सर्वत्र। आज दुनिया भविष्य के एक नए मोड़ पर खड़ी है। शिक्षा और शोध से उपजी टेक्नोलॉजी नया संसार गढ़ रही है। हर्बर्ट स्पेंसर ने 1854 और 1859 के बीच शिक्षा पर निबंधों की एक शृंखला किताब के रूप में लिखी- ‘एजुकेशन ः इंटेलेक्चुअल, मॉरल एंड फिजिकल’। इसमें परंपरागत शिक्षा पद्धति पर गंभीर सवाल थे।

इस पुस्तिका का यक्ष प्रश्न था कि शिक्षा की उपयोगिता क्या है? कहा, क्या बदलते युग की नब्ज के प्रतिकूल, पुरानी पड़ी चीजों को पढ़ना ही शिक्षा है या बदलते समय के अनुरूप बच्चों को गढ़ना शिक्षा है? कहने की जरूरत नहीं कि युवा विचारक इंजीनियर की इस छोटी पुस्तक ने औद्योगिक क्रांति की बुनियाद डाली।

18वीं सदी में ब्रिटेन, यूरोप, अमेरिका, जापान समेत दुनिया में परंपरागत पाठ्यक्रमों एवं पढ़ाई को इस किताब ने बदल डाला। आज एआई का बदलाव दुनिया के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। दुनिया में 6.9 करोड़ नई नौकरियां आ रही हैं। (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट- 2023) इसी दौरान 8.3 करोड़ पुरानी नौकरियां स्वतः अनुपयोगी हो जाएंगी।

अनुमान है कि डेटा एंट्री, एकाउंटिंग, टिकट क्लर्क, कैशियर वगैरह से जुड़ी 2.6 करोड़ नौकरियां अप्रासंगिक हो जाएंगी। बदलाव के दूसरे दौर में हर साल 10.2 फीसदी की दर से नए जॉब्स पैदा होंगे। साथ ही सालाना परंपरागत 12.3 प्रतिशत जॉब्स घटेंगे।

विशेषज्ञ बताते हैं कि आने वाले पांच सालों के दौरान संसार में एक-चौथाई (23 प्रतिशत) नौकरियों का स्वरूप बदल जाएगा। मिकेंजी ग्लोबल रिपोर्ट का आकलन है कि 2030 तक 37 करोड़ लोगों को अपना मौजूदा काम बदलना पड़ सकता है।

हमारी स्कूली शिक्षा, इस बदलते भविष्य के अनुरूप बच्चों को तराशे, यह काम तो स्कूली अध्यापकों का ही है। यह चिंता और सरोकार भी समाज के होने चाहिए। अभावों से घिरे इन्हीं सरकारी स्कूलों से देश के शीर्ष नेता, नौकरशाह, अध्यापक, वैज्ञानिक भी निकले. आज सरकारी स्कूलों के प्रति लोकधारणा क्यों बदल गई है, यह भी समाज में बहस-विचार का विषय हो।

Leave a Reply

error: Content is protected !!